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नए ज़माने की लड़की

नए ज़माने की लड़की

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'तुम्हें पता है क्या परिमल, जितनी आसानी से मैं तुमसे कनेक्ट हो जाती हूँ, उतनी आसानी से किसी से कनेक्ट नहीं हो पाती' मरीन ड्राइव में समुद्र किनारे बैठी रश्मि समुद्र की फेनिल लहरों को निहारते हुए बोली।

परिमल ने उसे बाँहों में भर लिया फिर उसके कानों में फुसफुसा कर बोला– 'अब हुई हो सही ढंग से कनेक्ट'

अपने आप को उसके बाँहों के घेरे से छुड़ाती हुई रश्मि बोली 'छोड़ो यह लिपटना-चिपटना और मुझे बताओ, शादी कब कर रहे हो मुझसे?'

शादी की बात ने परिमल को गंभीर बना दिया, ऐसा नहीं था कि उसे रश्मि से प्रेम नहीं था। कॉलेज के प्रथम वर्ष में ही वह रश्मि के प्रेम में पड़ गया था और अब तक दोनों साथ थे। इस बीच कॉलेज के कितने प्रेमी जोड़ों में ब्रेकअप हुआ पर रश्मि और परिमल का प्रेम मिसाल की तरह कायम था अब तो वे प्रेम के उस पायदान पर पहुँच गए थे कि विवाह करने का सोच रहे थे, किंतु परिमल के परिवार वाले, इस अंतर्जातीय विवाह के खिलाफ थे और परिमल बिना उनकी अनुमति के विवाह करना नहीं चाहता था।

फिर भी वह रश्मि के बालों में उँगलियाँ फँसाते हुये बोला 'जल्दी ही कर लेंगे, फ़िक्र मत करो तुम, मेरे प्यार के समक्ष मेरे परिवार वालों को झुकना ही पड़ेगा, वे अवश्य तुम्हें स्वीकार करेंगे।'

रश्मि नये ज़माने की लड़की थी तुरंत बोली' परिमल मुझे तुम्हारे परिवार की सिर्फ स्वीकृति नहीं बल्कि पूरा सम्मान चाहिए। आय वांट रिस्पेक्ट फ्रॉम योर फेमिली।

परिमल ने कोई जवाब नहीं दिया पर जिस तरह, वह धीरे-धीरे उसके बाल सहला रहा था मानो कह रहा हो, जो तुम कह रही हो वैसा ही होगा।

उस रात, रश्मि को उसके घर छोड़ने के बाद परिमल देर रात तक सोचता रहा कि किस तरह माता-पिता को मनाएगा। पिता तो किसी तरह मान जाएंगे पर माँ तो प्रेमविवाह करने वाली विजातीय लड़की को चरित्रहीन ही समझेंगी रश्मि आधुनिक होते हुए भी कितनी भावुक और भोली है, वह जानता था। माँ के ताने सुनकर तो उसका दिल ही टूट जायएगा, यही सब सोचते-सोचते उसे नींद आ गई।

सुबह उठा तो माँ ने चाय के समय बताया कि आज पारिख जी के यहाँ उनकी लड़की देखने जाना है। सुनकर तो परिमल के तन-बदन में आग लग गई। चिढ़कर बोला 'तुम क्या चाहती हो माँ, एक बार लड़की देखकर, उसे जाने-समझे बिना शादी कर लूँ?'

'बेटा, देखी-सुनी खानदानी लड़की है और देखने में भी बहुत खूबसूरत है, तू फोटो देख तो सही....'

माँ की बात पूरी होने से पहले, परिमल डायनिंग टेबल पर से उठ गया और जाते-जाते बोलकर गया 'माँ तुम अच्छी तरह जानती हो कि मैं रश्मि से प्यार करता हूँ, शादी करूँगा तो उससे ही वरना कुंवारा रहूँगा।

अब तो माँ सकते में आ गईं, उन्हें मालूम था कि परिमल जिस बात की ज़िद पकड़ लेता है पूरा करके ही मानता है, और वे नहीं चाहती थी कि वह उम्र भर कुंवारा रहे। परिमल की ज़िद के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए। रश्मि के माता-पिता को तो इस विवाह से कोई आपत्ति नहीं थी। स्वयं उनका भी अंतर्जातीय विवाह ही हुआ था, बस वे यह चाहते थे कि रश्मि सिर्फ एक हाउसवाइफ बन कर न रह जाये, खुद का करियर भी बनाए।

दोनों पक्ष से सहमति मिल गई थी और विवाह की तारीख भी तय हो गई। कॉलेज के सहपाठियों ने सुना, तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा उनकी जोड़ी तो पिछले तीन वर्षों से 'मेड फॉर इच अदर' के नाम से पूरे कॉलेज में प्रसिद्ध थी। परिमल और रश्मि को कंधों पर बैठाकर सहपाठियों ने नृत्य प्रारंभ कर दिया। बहुत ही कम लोगों का प्यार सफल हो, विवाह के मक़ाम तक पहुँचता है। उस दिन सभी दोस्तों के साथ रश्मि और परिमल ने भी जश्न मनाया।

उनका विवाह भी धूमधाम से संपन्न हुआ। शहर के सभी प्रतिष्ठित लोग इस आयोजन में पधारे थे, कॉलेज के विद्यार्थी एवं कुछ प्रोफेसर भी इस विवाह में सम्मिलित हुए। हमारे देश में विवाह दो व्यक्तियों का नहीं दो परिवारों का मिलन होता है। कुछ हिचकते हुए, फिर भी पूरे आत्मविश्वास के साथ, रश्मि ने सांखला परिवार में कदम रखा। हरदम जींस और टॉप पहनने वाली रश्मि कोटा, साढ़े पाँच मीटर साड़ियों में लिपटने को विवश थी, पर उसने खुशी से स्वीकार कर लिया। जब प्यार किया है तो कुछ त्याग तो अवश्य ही करना पड़ेगा। उसके ससुर का टाइल्स का बिज़नेस था और वे शहर के गणमान्य व्यक्तियों में गिने जाते थे। जबकि रश्मि के पिता आर्मी ऑफिसर थे। उसके घर में ज़्यादातर अंग्रेजी ही बोली जाती थी, पार्टियों में शराब पीना आम बात थी पर यहाँ तो शुद्ध शाकाहारी भोजन ही किया जाता था। रश्मि के पिता पंजाबी और माँ उत्तर भारतीय थी। रश्मि की सास का स्वाभाव सख्त़ था। उनका हृदय जीतना रश्मि को असंभव लग रहा था, पर रश्मि के ससुर और परिमल के छोटे भाई ने उसे खुशी से अपना लिया था।

एक बार परिमल की माँ को अस्थमा का दौरा पड़ा, घर पर दो नौकरानियों को छोड़ और कोई न था। तब रश्मि ने फैमिली डॉक्टर से बात की, उन्होंने तुरंत अस्पताल आने को कहा। रश्मि तुरंत खुद गाड़ी ड्राइव कर, उन्हें हॉस्पिटल ले गईं और उसके पूर्व प्राथमिक उपचार भी किए। इस घटना के बाद रश्मि की सास उसे बहुत मानने लगी, अब तो उनकी सहेलियों के सामने, वे रश्मि की तारीफ करते थकती नहीं।

कुल मिलाकर सब कुछ ठीक हो गया था, पर जैसे किसी की नज़र लग गई थी उनके सुखी परिवार को, कुछ अनहोनी होनी थी और हो गई। रश्मि आज भी उस दिन को कोसती है जब स्वामी आलोकानंद उनके घर पधारे थे। इधर व्यापार में उसके ससुर को घाटा हो रहा था, यूँ लग रहा था ग्रहदशा ठीक नहीं चल रही है। राजस्थान में रह रहे उनके भाई ने स्वामी आलोकानंद का नाम बताया और कहा उनके प्रताप से सारी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और उन्होंने परिमल के पिता को उनके आश्रम में जाने को कहा। रश्मि के ससुर राजमल जी एक धार्मिक व्यक्ति थे, उन्हें लगा एक बार तो बाबा के आश्रम में जाकर उनसे मिलकर आना चाहिए। परिमल को साथ ले वे राजस्थान रवाना हुए। परिमल के साथ राजमल जी का व्यवहार सख्त था, लाख चाहने पर भी उन्होंने परिमल को नौकरी नहीं करने दी। वे कहते थे इतना बड़ा व्यापार है, तुझे नौकरी करने की क्या ज़रुरत है, इसे ही संभाल। परिमल का पालन-पोषण इस ढंग से हुआ था कि वह आत्मविश्वासी कम धर्मभीरु ज़्यादा हो गया था।

पिताजी, चाचाजी एवं परिमल जब स्वामी आलोकानंद के आश्रम में पहुँचे, तो देखा मुख्य द्वार से ही सुरक्षा व्यवस्था प्रारंभ हो गई है। जहाँ उनके बैगों की जाँच मशीन द्वारा की गई, उन तीनों को भी खुद की चैकिंग करवानी पड़ी, उन्हें ऐसा लग रहा था की वे बाबा के आश्रम में नहीं अंतर्राष्ट्रीय संस्था के किसी ऑफिस में जा रहे हो। भीतर जाकर देखा तो जगह-जगह फूलों के बन्दनवार लगे हुए थे, स्वामी जी की तस्वीरें और उनके कट आउट भी दिखाई दे रहे थे, अगरबत्ती, धूप की खुश्बू इस तरह वातावरण में समाई थी मानो अभी-अभी हवन हुआ हो। स्वामी जी के शिष्य और शिष्याएं, शुभ्र वस्त्र धारण किए हुए यहाँ-वहाँ दिखाई दे रहे थे, इनमें से कुछ विदेशी भी थे, कुल मिलाकर सब कुछ प्रभावशाली था। एक सम्मोहन से बंधे तीनों भीतर चले जा रहे थे। अंदर एक विशाल कक्ष में भक्तों का जमघट लगा था, जो अपना-अपना चढ़ावा लिये स्वामी जी की प्रतीक्षा कर रहे थे। परिमल अपने पिता और चाचाजी के साथ कक्ष में बैठ गया। ठीक 10.30 को स्वामी आलोकानंद इलेक्ट्रॉनिक कमल के आसन के आकार की लिफ्ट से स्टेज के मध्य भाग पर उतरें, आश्रम की दो शिष्याओं ने दोनों हाथ पकड़कर लिफ्ट से उतारा और मंच पर स्थापित भव्य आसन पर बिठा दिया। स्वामी जी पाँच मिनिट तक ध्यानमग्न अवस्था में बैठे रहे, उनके मुखारविंद से बोल फूटे 'हरि ओम...हरि ओम...'

कक्ष में बैठे स्त्री-पुरुष एक साथ बोल उठे हरि ओम...हरि ओम। परिमल भी अध्यात्म के इस रंग में रंग चुका था। वह भी सबके सुर में सुर मिला कर बोल रहा था 'हरि ओम ...हरि ओम।

हरि ओम की करतल ध्वनि लगभग पाँच मिनिट तक गूँजती रही। तत्पश्चात मानवीय जीवन में, ईश्वरीय महत्ता पर स्वामी जी का बड़ा ही सधा, नपा-तुला भाषण हुआ, न एक छटांक कम, न एक छटांक ज़्यादा, निश्चित ही सभी लोग उनके भाषण से प्रभावित हुए। जयजयकार की आवाजों से हॉल गूँजने लगा 'स्वामी आलोकानंद की जय'.....'स्वामी आलोकानंद की जय'

तभी स्वामी जी खड़े होकर दोनों हाथ फैलाकर भक्तों को आशीर्वाद देने लगे, परिमल ने देखा स्वामीजी का व्यक्तित्व भव्य था लगभग पाँच फुट दस इंच का कद, भरा-पूरा शरीर, बड़े-बड़े दिव्य नेत्र जिनमें किसी को भी सम्मोहित कर लेने की शक्ति थी, उन्होंने सफेद धोती-कुर्ता पहना था और गेरुआ रंग का रामनामी छापे का गमछा जैसा वस्त्र उनके गले के चारों और लिपटा था। माथे पर चन्दन का टीका था और कंधे पर खुले हुए केश थे ।

आशीर्वाद देकर स्वामीजी अपने व्यक्तिगत कक्ष में चले गए अब स्वामीजी से मिलने एक एक कर लोग जाने लगे। जिसने जितने ज़्यादा रूपये की रसीद फाड़ी थी उसे उतने जल्दी प्रवेश मिल रहा था, सभी स्वामीजी के समक्ष अपनी-अपनी समस्यायें रख रहे थे। राजमल जी ने पच्चीस हजार की रसीद ली थी सो उनका नंबर जल्दी ही लग गया। स्वामीजी अपने समक्ष कोई भी भेंट नहीं स्वीकारते थे , सारे चढ़ावे और धनराशि उनके ऑफिस में जमा होती थी। स्वामीजी को देखते ही राजमल जी भावविवश होकर उनके चरणों में गिर गए उनकी आँखों से आँसू बहने लगे।

उनकी दशा देख स्वामीजी ने पूछा 'क्या हुआ वत्स?'

राजमल जी बोले 'स्वामी जी पिछले साल से व्यापार में करोड़ों का घाटा हुआ है, कितनी मेहनत की, पैसे लगाये, पर कोई फायदा नहीं।'

स्वामीजी ने तीक्ष्ण नज़रों से परिमल की ओर देखा फिर बोले 'यह कौन है?'

राजमल जी ने उत्तर दिया 'बेटा है मेरा।'

हूँ कह कर स्वामीजी ने गंभीर सी मुद्रा बना आँखें बंद कर लगभग पाँच मिनट का मौन धारण कर लिया, फिर आँखें खोलकर, जैसे कोई गंभीर रहस्य पता चला हो ऐसी मुद्रा बनाई, फिर पूछा 'पिछले वर्ष परिवार में कोई नया सदस्य आया?'

'स्वामीजी मेरी बहू आई है, पिछले वर्ष ही मेरे बेटे का विवाह हुआ है।'

'बहू का नाम क्या है?' स्वामीजी ने इस तरह पूछा जैसे कोई गूढ़ बात पूछ रहे हो।

'जी रश्मि नाम है उसका'

स्वामीजी ने अंततः रहस्योद्घाटन कर ही दिया 'मुझे लगता है आपकी बहू के पग में कुचक्र है जो आपकी ग्रहदशा बिगाड़ रहा है।'

'यह क्या कह रहे हैं, आप स्वामीजी हमारी बहू तो साक्षात लक्ष्मी का अवतार है।'

'मुझ पर भरोसा नहीं, और यहाँ चला आया।' स्वामीजी ने क्रोधित होकर गर्जना की।

उनके क्रोध को देख राजमल जी घबरा गए, भाई ने भी आँखों से इशारा किया चुप रहो, और आगे खुद ही स्वामीजी से प्रश्न पूछने लगे 'स्वामीजी इसके निवारण का कोई उपाय तो होगा?'

'हाँ पूरनमल तुम मुझे भली-भांति जानते हो, बता दो अपने भाई को, मेरा कहा कभी गलत नहीं होता। और यदि सब ठीक करना है तो बहू को अमावस्या की रात यहाँ लाना पड़ेगा, कुछ पूजापाठ और हवन करने पड़ेंगे, यदि मेरे बताये अनुसार करते रहे तो सब ठीक हो जायेगा'। स्वामीजी यह सब एक ही सांस में कह गए।

'हाँ हाँ स्वामीजी ज़रूर' अबकी राजमल जी हाथ जोड़ कर बोले।

स्वामीजी ने एक बार और घूरकर परिमल को देखा, ऐसा लग रहा था की वह सम्मोहित हो गया था फिर परिमल से बोले 'इस बीच मेरी भी एक यात्रा मुंबई की है, यदि तुम अपने घर निमंत्रण देना चाहो तो काउंटर पर बुकिंग अवश्य करा लेना।'

परिमल तुरंत बोला 'जी ज़रूर'।

लौटते हुए परिमल ने स्वामीजी को खुद के घर निमंत्रित कर, अगले माह की 15 तारीख की बुकिंग करवा ली।

घर आकर जब परिमल ने सारा किस्सा रश्मि को सुनाया, तब उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। वह चिढ़ कर बोली 'आर यू क्रेज़ी परिमल?' इक्कीसवीं सदी में तुम इन बाबा-वाबा की बातों पर विश्वास कर रहे हो।'

'क्या हुआ यदि बाबा के थोड़े से पूजापाठ से घर की स्थिति सुधरती हो, तुम्हें कुछ मालूम भी है, पिताजी को करोड़ों का नुकसान हुआ है, कुछ तो करना ही पड़ेगा।

'परिमल बाबाजी के पास जाने से किसी भी प्रॉब्लम का कोई सलूशन नहीं मिलता बल्कि तुम ऑफिस जाओ और देखो की प्रॉब्लम कहाँ पर है फिर नये ढंग से काम शुरू करो।' लगभग विनती करते हुए रश्मि बोली।

रश्मि की बातें सुनकर परिमल नाराज़ हो गया और पैर पटकते हुए बाहर निकल गया। स्वामीजी के कारण परिवार में एक अलग ही वातावरण निर्माण हो गया, वे एक-दूसरे की बातों को महत्व देने की बजाये स्वामीजी की बातों को ही महत्व देने लगे। तुरंत स्वामीजी का बड़ा सा फोटो फ्रेम ड्राइंगरूम की दीवार पर लटका दिया गया। यह सब देख-देख कर रश्मि का खून जल रहा था। आखिर वह अपने परिवारवालों को समझाए तो कैसे?

फिर वह दिन भी आ गया जब स्वामी आलोकानंद जी उनके घर पधारे, इच्छा न होते हुए भी उसे उनके स्वागत में खड़ा रहना पड़ा। उनके लिये विविध खाद्य सामग्रियाँ पकानी पड़ी, उनके हाथ से भव्य पूजा भी की गई उनका घर उस दिन किसी मंदिर की तरह लग रहा था। जहाँ कॉलोनी भर के लोग स्वामीजी का आशीर्वाद लेने आ रहे थे। स्वामीजी ईश्वर तुल्य नहीं बल्कि साक्षात ईश्वर जान पड़ रहे थे और यह बात रश्मि को पल-पल अखर रही थी। एक अदना सा आदमी स्वयं को भगवान कह रहा है और लोग मान भी रहे हैं। क्या ये सब इतने बेवकूफ हैं या आत्मविश्वासविहीन जिन्हें अपनी आम परेशानियों के लिये बाबाजी का सहारा लेना पड़ रहा है और एक साधारण से मनुष्य को भगवान समझना पड़ रहा है।

स्वामीजी के जाने के बाद परिमल और रश्मि में ज़ोरदार झगड़ा हुआ क्योंकि रश्मि ने सुन लिया था बाबा कह रहे थे की बहू को लेकर अगली अमावस्या को आश्रम में आ जाओ, रश्मि इस तरह के स्वामीजी के आश्रम में कभी भी नहीं जाना चाहती थी यह उसके उसूलों के खिलाफ था उसने भरपूर विरोध किया पर यह क्या, एक साधारण से बाबा के लिये परिमल सम्बन्ध-विच्छेद की बातें करने लगा। इन दिनों उसने परिमल में भी बहुत बड़ा बदलाव देखा, वह रोज़ धोती-कुर्ता पहन स्वामीजी की प्रतिमा के सामने मंत्रोच्चार करता रहता। फिर वह परिवार के सभी सदस्यों को बैठाकर हवन करता, बाबाजी ने शायद कोई नशीला पदार्थ उसे रोज़ सेवन के लिए दिया था, वह अक्सर झूमता सा दिखाई देता। परिमल की इन सब हरकतों ने रश्मि को तोड़कर रख दिया, जिस परिमल से उसने इतना प्यार किया था। वह इस तरह बदल जायेगा सोचा भी नहीं था। रश्मि ने परिमल से सच्चा प्यार किया था, वह उसे इस अवस्था में नहीं देख सकती थी। बहुत सोचने के बाद, उसने एक योजना बनाई, जिसमें पापा के दोस्त पुलिस कमिश्नर सहगल साहब ने सम्पूर्ण सहयोग दिया। अब योजना पर अमल करना था, उसने परिमल से स्वामीजी के आश्रम में जाने के लिए हाँ कर दी।

स्वामी आलोकानंद के भव्य आश्रम के द्वार पर रश्मि ठिठक कर खड़ी हो गई थी। हाथ में बांधी घड़ी ठीक की, यह घड़ी बाहर खड़े पुलिस इंस्पेक्टर को दिशा संकेत दे रही थी कि वह कहाँ पर है, अपने बालों में उसने छोटा सा माइक्रोफोन छिपाया था जिससे वह उनसे बात कर सकती थी। कमिश्नर साहब ने उसे हिदायत दी थी की वह आश्रम का प्रसाद या अन्य खाद्यसामग्री का सेवन न करे। वही सुरक्षा द्वार, वही भव्य कक्ष, वही हरि ओम की ध्वनि....। जब वह परिमल के साथ स्वामीजी से मिली तो उन्होंने रात 12 बजे रश्मि को अकेले पूजा के लिए बुलाया, परिमल के आने से विघ्न उत्पन्न होगा, ऐसा कह परिमल को आने से मना कर दिया।

जब रात 12 बजे वह पहुँची तो आश्रम की शिष्याएं उसे स्नान कराने ले गई और सारे कपड़े निकालकर उसे श्वेत सूती साड़ी पहनने को दी, फिर वे उसे बाबा के कक्ष में ले जाने लगी। जब उसने पूछा उसे वहाँ क्यों ले जाया जा रहा है, तो शिष्याएं बोली, स्नान से तुम पूर्ण रूप से शुद्ध नहीं हुई हो, बाबा तुम्हारा शुद्धिकरण करेंगे। रश्मि शुद्धिकरण का अर्थ भली-भांति जानती थी फिर भी वह भीतर गई क्योंकि वह बाबा को रंगे हाथों पकड़वाना चाहती थी। सादे कपड़ों में पुलिस चारों ओर फैली हुई थी। जैसे ही बाबा ने उसे कपड़े उतारने का आदेश दिया, रश्मि को पेशोपेश में देखकर बाबा खुद करीब आकर उसकी साड़ी उतारने ही वाले थे कि पुलिस भीतर आ गई। रश्मि ने कमरे के भीतर जाने से पहले ही पुलिस को भीतर आने का सन्देश दे दिया था, आते ही उन्होंने बाबा को धर दबोचा, बाबा रंगे हाथ पकड़े गए थे।

स्वामी आलोकानंद के आश्रम से तलाशी लेने पर करोड़ों की संपत्ति, नशीली वस्तुएं, अश्लील साहित्य, पोर्न फिल्में और लडकियाँ बरामद हुई। बाबा का बेटा एवं स्वयं बाबा इन लड़कियों पर बलात्कार करते थे। यदि यहाँ रश्मि अकेली आती तो बचकर जाना संभव न होता, उसकी योजना कामयाब हुई थी।

बाबा को हथकड़ियाँ पहना दी गई थी। जब रश्मि पुलिस सुरक्षा में बाहर आई और स्वयं कमिश्नर साहब ने सारी बातें परिमल को बताई और जब उसने स्वामीजी के आश्रम से बरामद हुई वस्तुएं देखी तब उसे ज्ञात हुआ कि वे सब कितने बड़े गिरोह की गिरफ्त से निकले हैं। उसने रश्मि को बाँहों में भर लिया वह उसके प्रति कृतज्ञ था, ऐसी बहादुर बीवी पर उसे नाज़ था।

सारे अख़बार और न्यूज चैनल बाबा जी के कारनामों का कच्चा चिट्ठा खोल रहे थे, रश्मि के ससुर राजमल जी की आँखें भी खुल गई थी। उनकी प्यारी बहू ने एक बात और कहकर उन्हें चौंका दिया था कि वह अब व्यापार में उनका हाथ बटाएगी और उनकी परेशानियाँ कोई बाबा नहीं बल्कि वे खुद दूर करेंगे।


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