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अमीर आदमी

अमीर आदमी

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लघुकथा- “अमीर आदमी”

आज अमीर आदमी का जन्मदिन था, हर साल की तरह इस साल भी वो मंदिर के बाहर पहुँच गया,भिखारियों में खाना और कपड़े बाँट कर पुण्य कमाने के लिए, मगर आज तो कमाल ही हो गया आज मंदिर के बाहर उसे एक भी भिखारी नहीं मिला अमीर आदमी परेशान हो गया कि अब वो पुण्य कैसे कमाऐगा ?, फिर उसने फूल वाले से पूछा कि सारे भिखारी कहाँ चले गये ? तो फूल वाले ने बताया कि “कल रात सारे भिखारी अमीर हो गये और यहाँ से चले गये” ये सुनकर अमीर आदमी उस फूल वाले पे भड़क गया "पगला गये हो क्या तुम" ऐसे कोई रातों-रात अमीर बनता है क्या ?,ज़रूर पुलिस वालों ने भगा दिया होगा” और फिर अमीर आदमी ने अपनी कार ग़रीबों की कच्ची बस्ती की तरफ मोड़ ली और जब वो ग़रीबों की कच्ची बस्ती में पहुँचा तो हैरान रह गया, क्योंकि कल तक जहाँ कच्ची बस्ती हुआ करती थी आज वहाँ पक्के घर थे, गंदे-फटे कपड़े में घूमने वाले लोग आज साफ़-सुथरे कपड़े पहन कर घूम रहे थे पूछने पर वहाँ भी उसे यही जवाब मिला कि “कल रात सारे ग़रीब अमीर हो गये”. अब अमीर आदमी और भी परेशान हो गया,.इस तरह से अमीर आदमी शहर की हर उस जगह पर गया जहाँ-जहाँ ग़रीब और भिखारी लोग रहते थे, पर हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी...पंडित जी ने कहा था कि राहु की दशा है दान करो पुण्य मिलेगा..पर अब किसे दान करे वो? कैसे पुण्य कमाऐ ?...परेशान हो के उसने अपने मंत्री मित्र को फोन करके पूछा कि “शहर के सारे ग़रीब- भिखारी कहाँ चले गये ? उसकी बात सुन के मंत्री जी भी परेशान हो गये कि अगर शहर में कोई ग़रीब नहीं रहा तो उनके चुनाव का क्या होगा किससे झूठे वादे करके चुनाव जीतेंगे वो ?

इधर अमीर आदमी की बीवी भी परेशान थी क्योंकि आज उसकी काम वाली बाई ने काम छोड़ दिया था अब वो भी अमीर हो गयी थी इसलिए नौकरानी का काम नहीं करेगी वो,आज से मालकिन को ख़ुद झाड़ू-बर्तन करना होगा आज अमीर आदमी का दफ़्तर का चपरासी भी नहीं    आया था, उसका ड्राईवर भी गायब था. आज तो कार भी उसे ख़ुद ही ड्राइव करनी पड़ी और फिर अचानक उसने देखा कि सड़क पर जैसे कारों का हुज़ूम निकल आया है,शहर का हर ग़रीब आदमी कार में सफ़र कर रहा है,.उसका चपरासी, उसके घर की काम वाली,बाई, होटल का वो वेटर जिसे वो दस रुपऐ की टिप देकर एहसान जताने वाली नज़रों से देखा करता था,आज वो सब उसकी बराबरी करते हुऐ  उसकी ही कार के साथ रेस लगाते दिख रहे थे, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि अचानक से ये सब क्या हो गया.? उसे ऐसा लगा कि उसका अस्तित्व महत्वहीन होने लगा है..अमीर आदमी चिल्ला उठा ..”नहीं ये नही हो सकता”..कितनी मेहनत की थी उसने बड़ा आदमी बनने के लिए और पर आज सारी मेहनत मिट्टी में मिल गयी थी.शहर का वो तबका जो उसे झुक कर सलाम किया करता था अगर उसके बराबर में आ के खड़ा हो गया तो फिर उसे बड़ा आदमी कौन मानेगा ? जो काम वेटर, चपरासी, नौकर, ड्राइवर किया करते थे वो सब काम अगर अमीर आदमी ख़ुद करेगा..तो फिर उनमें और उसमे क्या फ़र्क रह जाएगा ? माना की वो ख़ुद भी ग़रीबों का उद्दार चाहता है..लेकिन ऐसे नहीं    कि उसका अपना अस्तित्व ही महत्वहीन हो जाऐ और फिर वो रोने लगा-चिल्लाने लगा “नहीं ........... ये नहीं हो सकता, ये कभी नहीं हो सकता..”हे प्रभु ! ये तूने क्या कर दिया ?,सब ख़त्म हो गया-सब ख़त्म हो गया….,..”.

और फिर अचानक उसकी नींद खुल गयी.. उसने देखा कि..उसकी पत्नी घबराई हुई सी उसके पास खड़ी उस से पूछ रही थी ”क्या हुआ ?क्यों चिल्ला रहे हो ? कोई बुरा सपना देखा क्या ? अमीर आदमी बोला " हाँ बहुत बुरा सपना था....." पत्नी बोली.. “घबराओ मत ..सपने कभी सच थोड़े ही ना होते है” तब अमीर आदमी की जान में जान आई और वो बोला “शुक्र है ख़ुदा का कि सपने सच नहीं होते वरना पता नहीं    क्या होता” पत्नी बोली “ सपने को भूल जाइऐ और जल्दी से तैयार हो जाइऐ आज आपका जन्मदिन है आपको मंदिर जाना हैं ग़रीबों और भिखारियों को खाना बाँटने”…. ये सुनकर अमीर आदमी के चेहरे पे पसीना उभर आया सपने का भय अब तक उसके चेहरे पे साफ़ नज़र आ रहा था…..

                                        

 


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