इस पर हक तुम्हारा भी है
इस पर हक तुम्हारा भी है
नीरा के पति का बिजनेस में घाटा हुआ। घर गाड़ी सब बिक गया। अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा।
नीरा के भाई अमन ने, नीरा को घर ले आया। पर नीरा आना नहीं चाहती थी। इस तरह मायके मे रहना उसे अच्छा नहीं लग रहा था पर भइया को मना ना कर सकी।
जब से माँ चल बसी थी.... मायके आने का मन ही नहीं करता था। माँ की यादें हर कोने में सताती थी। आज भी माँ की याद बहुत आ रही थी।
नीरा की भाभी सुजाता ने भी नीरा से कहा, "दीदी ये घर आपका है। आप जब तक चाहे रह सकती है। "
पर नीरा समझती थी मायका तो मायका है पूरी जिंदगी तो यहाँ नहीं रह सकती। नीरा के पति जगत भी नई नौकरी ढूढने लगे। नीरा ने भी स्कूल ज्वाइन कर लिया जगत को भी नौकरी मिल गई धीरे-धीरे स्थिति सुधरने लगी। नीरा भी अब जाने का विचार करने लगी।
एकदिन नीरा ने कहा "भइया,अब हम दोनो कमा रहे है हम अच्छा सा फ्लैट लेकर सिफ्ट होना चाहते है।"
"पर क्यू नीरा.. हमारे साथ ही रहो देखो कितना घर भरा भरा लग रहा है। तुम चली जाओगी तो घर फिर से खाली हो जायेगा।"
"पर भइया कब तक यहां रहूंगी......है तो ये मायका ही ना।"
अमन ने बहुत चाहा कि नीरा ये घर छोड़कर ना जाये पर नीरा नहीं मानी और जाने की तैयारी करने लगी।
एकदिन नीरा ये लो तुम्हारा हक.....
ये क्या है भइया.....
खोलकर देखो.....
ये क्या आपने जायदाद का आधा हिस्सा मेरे नाम कर दिया? पर क्यू इसपर तो मेरा हक ही नहीं है।
किसने कहा कि इसपर तुम्हारा हक नहीं है। इस जायदाद पर हम दोनो का बराबर हक है।
पर भइया लड़कियो को हिस्सा नहीं मिलता है जायदाद मे माँ भी तो यही कहती थी।
अपने माता पिता के सम्पत्ति पर पुत्र पुत्री का बराबर का हक रहता है और उनका अधिकार भी रहता है। मैने तुझे पहले नही बताया क्योकि कागज तैयार नही था। पर अब पूरे हक से इसे रख ले।