प्रोफेशनल
प्रोफेशनल
"अरे वाह... बहुत सुंदर फोटो आई है हमारी मैडम की, " सुमन की ओर फ्लाइंग किस उछालते हुए राकेश ने कहा।
"हाँ फोटो तो अच्छी है पर है बड़ा बदजात .. एक नम्बर का घटिया " कहते हुए सुमन की आँखों में गुस्सा साफ - साफ दिखाई दे रहा था।
"क्यों ....ऐसे कैसे बोल रही हो ...यह तो शहर का जाना - माना, एक नम्बर का फोटोग्राफर है।"
"हाँ है तो, पर मालूम है आज क्या हुआ? " सुमन ने हाथों को नचाते हुए कहा।
"क्या हुआ.... अब बताओ भी" राकेश ने पूछा।
"अरे या , मुझे मेरी एक बहुत ही सुन्दर फोटो चाहिए था इसलिए उसके पास गई थी। एक फोटो का एक हजार रूपए फिर भी उसमें भी सिर्फ़ पासपोर्ट साइज दिया और पोस्टर साइज सिर्फ़ मेल में, अगर पोस्टर चाहिए तो पाँच सौ रुपये अलग से। मैनें कहा था सिर्फ मेल में दे दो और उसने मुझे मेल कर दिया।"
"फिर क्या प्रोब्लम है यार " राकेश ने झुझलाते हुए कहा।
"अरे यार, आज अपना पासपोर्ट साइज लेने गई थी। उसने पासपोर्ट साइज के साथ मेरा पोस्टर भी बना दिया था। मैनें कहा - इसका तो मैंने कहा ही नहीं था।"
"उसने आर्डर फार्म देखा और कहा ग़लती से बन गया। उसने मेरा पोस्टर उठाकर रख दिया।"
"मैनें कहा ये ग़लती से बन गया, आपके तो किसी काम का नहीं है तो मुझे ही दे दो।"
"कहने लगा - पैमेंट करो और ले जाओ।"
"मैनें कहा - मैनें तो आर्डर नहीं दिया पर अब जब बन गया तो मेरा पोस्टर मुझे दे दो क्यों कि आपके तो किसी काम का है नहीं।"
"पर उसने नहीं दिया। जानते हो पोस्टर इतना सुन्दर था कि मैनें तो उसको आधे पैसे भी ऑफर किया पर फिर भी नहीं दिया।"
" कह रहा था डिस्ट्राय करना मंज़ूर है पर आधे पैसों में नहीं दे सकता।"
"मैं भी वहीं छोड़कर आ गई " गुस्से से सुमन ने कहा।
"अरे इसे ही कहते हैं, प्योरली प्रोफेशनल...." राकेश ने सपाट स्वर में कहा।
"अरे काहे का प्रोफेशनल, भावनाओं की कोई कद्र नहीं, पैसा... पैसा... पैसा...हद है यार..." सुमन ने कहा।
" अब दिल छोटा क्यों करती हो। प्रोफेशनल लोग ऐसे ही होते है। अब तुम चाय बनाओ यार, कब से तलब हो रही है " राकेश ने कहा।
चाय के उबलते हुए पानी के साथ सुमन प्रोफेशनल लोगों की मानसिकता, पैसों के प्रति लगाव, भावनाओं की अनदेखी के बारे में सोच रही थी।