पछतावा
पछतावा
एक दिन की बात है एक कौआ आकर छत पर बैठ गया, तब महेश अपने बेटे सोनू को लेकर छत पर घूमने निकल पढ़े। सोनू की उम्र लगभग आठ वर्ष थी सोनू ने छत पर बैठे उस कौवे को देख पिता से पूछा "पिता जी ये क्या है" महेश ने कहा "बेटे ये कौआ है ये एक पंछी है" सोनू ने यही प्रश्न बार बार दोहराया और महेश बार बार उसे जवाब देता रहा लगभग महेश सौ बार उसे बता चुका था की बेटे ये कौआ है।
महेश ने सोनू के बचपन की हर हरकत को एक डायरी में लिखकर रखा था, ताकि सोनू जब बढ़ा हो जायेगा तब उसे उसका बचपन याद दिला सके। पच्चीस साल बाद जब सोनू बढ़ा हो चुका था और महेश बूढ़ा तब एक रोज़ वे दोनों वापिस छत पर बैठे हुए थे तभी अचानक एक कौआ आकर वहां बैठ गया। महेश को तभी सोनू का बचपन याद आ गया उसने सोनू से पूछा "बेटे ये क्या है सोनू बोला पिता जी ये कौआ है" महेश ने दूसरी बार सोनू से कहा "बेटे ये क्या है" सोनू ने जवाब दिया "अरे बूढ़े तुम्हें समझता नहीं क्या ये कौआ है।"
सोनू के इस लहजे को देख महेश का दिल भर आया उसने फ़ौरन अपनी अलमारी में रखी डायरी लाके सोनू को बताया की बचपन में उसके सौ बार प्रश्न करने पर भी महेश ने उसे हर बार जवाब दिया था ये देखते ही सोनू को उसकी ग़लतियों का अहसास हुआ वो रोते हुए महेश से माफ़ी मांग कर गिड़गिड़ाने लगा कहने लगा "उससे बहुत बढ़ी ग़लती हुई जो उसने अपने पिता जी का अपमान किया" महेश ने सोनू को गले लगाकर माफ़ कर दिया और महेश बहुत खुश था क्योंकि आज उसका बेटा उसके साथ था।