अवांछित
अवांछित
"साब, मेरा वोटर कार्ड बना देव न साब ।"
क्लर्क साब ने साब शब्द से प्रभावित होकर उसे ऊपर से नीचे तक देखा । फटे चीथड़ों में लिपटा; बदरंग शरीर और हड्डी के ढाँचे जैसे शारीर वाले आवारा भिखारी को देख भौंहे चढ़ गयी । सरकार ऐसे लोगों को कहीं छुपा क्यों नहीं देती ? इन लोगों का यूँ खुले आम घूमने पर रोक लगनी चाहिए । पता है, कोई विदेशी इन्हें देख ले; या कोई फोटो खीँच ले तो ? कितनी बदनामी होगी देश की । देश के सम्मान की तो किसी को परवाह ही नहीं । देश के कर्णधारों को ही परवाह नही तो क्या करें ।
चल ठीक है....
"नाम ?"
".... ...." उसने नाम बता दिया ।
"पता ?"
"पता तो कुछ नहीं है,साब ।"
"अबे पता बता; पता ।"
"पता तो नहीं है साब ।"
"ऐसे कैसे नहीं है ? सबका होता है ।"
"सबका नहीं होता साब ।"
"कैसे नहीं होता ? अरे, कहीं तो रहता होगा ।"
"सड़क पर साब ।"
"किस सड़क पर ।"
"किसी भी सड़क पर ।"
"क्यों ? घर नहीं है ?"
"नहीं साब ।"
"तो, कौनसी सड़क पे रहता है ।"
"जहाँ रात हो जाये ।"
"काम क्या करता है ।"
"जब जो काम मिल जाए ।"
"अरे यार, जीने के लिए काम करना पड़ता है । तू जीने के लिए क्या काम करता है ।"
"सबके पास काम नहीं होता है न साब । इस लिए जब जो काम मिल जाये ।"
"आधार कार्ड लाया है ।"
"नहीं है साब ।"
"समझ गया, सबका नही होता; है न ?"
"आप लोग तो पढ़े लिखे हो साब; इसीलिए सब जानते हो साब ।"
"अरे यार ! तेरे पास आधार कार्ड नहीं है । काम नहीं है । पता नहीं है तो वोट डालकर क्या करेगा ?"
"इसी के लिए तो वोट देता है न साब...."
"अरे यार ! इन्हें कोई देश से बहार क्यों नहीं निकालता ? देश का नाम बदनाम करते हैं ...." क्लर्क बड़बड़ाने लगा ।