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हमारा साहित्यिक सफरनामा 2019

हमारा साहित्यिक सफरनामा 2019

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बीते हुए वर्ष में हमने क्या खोया और क्या पाया यह सोचने जब बैठे आंख बंद करने पर लगा वाकई में वर्ष के 363 दिन तो निकल गए और वास्तव में कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर खोया ज्यादा या पाया ज्यादा। हां तो बताते चलें नए साल की शुरुआत में 1 जनवरी को सबको नए साल की बधाई देने के साथ ही 2 जनवरी को अपनी दिलो जान से प्यारी 35 साल पुरानी सहेली सुनीता के बेटे शुभम को जन्मदिन की बधाई दी। इसके बाद अपने लाडले भाई आशीष को 24 जनवरी पर जन्मदिन की बधाई दी। और फिर छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस के साथ जिठानी की बिटिया और सबकी लाङली अर्चिता का जन्मदिन मनाया।


खुशनुमा जनवरी का माह बीतने के बाद फरवरी की 17 फरवरी को भाभी का भौजाई का जन्मदिन व 19 को भाई भोजाई के विवाह के वर्षगांठ की बधाई के साथ इक्कीस तारीख को माँ श्रीमती कमल सक्सेना का शुभ जन्मदिवस पर हमनें जीवन में पहली बार उनको समर्पित करते हुए एक कविता लिखी।


सन 18 में ही मैंने एक तरह से लेखन की सही तरीके से शुरुआत की थी। इससे पूर्व में दिल की बातें यूं ही पुरानी कॉपी के कागज के पन्नों पर लिखकर छुपा कर रख देती थी या खतों के द्वारा अपनी सहेलियां स्वजनों को लिखा करती थी। फेसबुक पर इस क्षेत्र में दूसरों की पोस्ट पर कमेंट लिख कर ही हमने लेखन की शुरुआत की थी। शुरुआत में मुझे मेरे बेटे व उसके दोस्तों ने बहुत प्रोत्साहित किया।


सन सोलह की बात है मैं बच्चों के बाहर रहने से बहुत परेशान रहने लगी थी। बड़ा बेटा उस समय दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था और छोटा बेटा दिन भर कॉलेज में हालांकि लखनऊ में ही रहता था और ये दिनभर ऑफिस में तो मैं अकेलेपन से बहुत परेशान हो गई थी। ऐसे में मुझे बेटे और उसके दोस्तों ने प्रोत्साहित किया कि फेसबुक पर बहुत सारे फूडीज ग्रुप चल रहे हैं आप भी अपना बनाया खाना उसमें पोस्ट किया करिए। आपका मन भी लगेगा और हमको खाने की विधियां पता चल जाएंगी। दूर रहने पर हम लोग बहुत कुछ नहीं बना पाते हैं आप बना कर पोस्ट करेंगी तो हम लोग देखकर बना लिया करेंगे। जब अपने द्वारा बनाये भोजन की पोस्ट डालने लगे तो लोगों ने विधि पूछनी शुरू कर दी थोड़ा-थोड़ा बताते बताते ही वहीं से लिखने का सिलसिला शुरू हो गया।


वैसे मुझे लिखने का शौक हमेशा से ही रहा। शुरू में तो पढ़ाई करते समय जब गुरू जी पढ़ाते थे तो लंबे लंबे खर्रे लिखना ही पड़ते थे। वैसे मुझे चिट्ठियां लिखने का भी बहुत शौक था। मेरे पापा की स्थानांतरण वाली नौकरी होने की वजह से मुझे हमेशा अपनी सहेलियों से बिछड़ना पड़ा।एक पत्र ही होते थे जिनकी वजह से हम आपस में जुड़ाव महसूस कर पाते थे। सबसे पहले मैंने खत लिखा था अपनी सहेली वाणी रंजन को तब हम बनारस में रहते थे। वहां से जब हम अलग हुए तो हमने एक दूसरे से ख़तों का पहली बार आदान-प्रदान किया था। और मजे की बात 35 साल बाद उसने मुझे खत के पते पर लिखे पापा के नाम से ही फेसबुक पर ढूंढ निकाला। पर उस समय हमारे खतों का आपस में भेजने का सिलसिला थोड़े समय ही चला।


उसके बाद हम फैजाबाद में रहे बनारस के बाद मेरी सहेली शशि जो हमारी बहुत पक्की व खास दिल के पास रही उसको हम खत लिखा करते थे और वह हमको लिखती थी। हम लोग एक दूसरे से दिल की बातें करते थे। उसके बाद लंबे समय तक यानी हमारी शादी के बाद भी हम खत लिखते रहे। धीरे-धीरे हम लोगों की शादी के लम्बे समय बाद व्यस्तता के कारण बंद हो गया। सुनीता के साथ भी खतो का काफी आदान प्रदान रहा। यहां एक बात और बताना चाहूंगी हमारे घर में हमारी दादी को भी लंबे-लंबे खत लिखने का बहुत शौक था। उनका यह गुण मुझ में आया। मैं जब 1 महीने के लिए अपने घर परिवार से दूर रही, मैं अपने पापा को एक बार में तीन-चार पन्ने (रजिस्टर के) भरे हुए खत लिखा करती थी।


फेसबुक पर लेखन के क्षेत्र में तो मैंने बस दूसरों की पोस्ट पर कमेंट करते करते हुए ही लिखना शुरु किया। तभी किसी ने एक साहित्यिक समूह से मुझे जोड़ दिया। वहां पर कई विधाओं में लिखना सिखाया जा रहा था। मैं भी नई विधाओं में यानी ग़ज़ल काव्य वगैरा लिखने लगी। मुझे तो नहीं पता मैं कैसा लिखती थी, पर लोग पसंद करने लगे, प्रोत्साहन वाली प्रतिक्रिया देने लगे तो मेरा उत्साह बढ़ने लगा और मैं और अधिक लिखने लगी। आज मैं जो कुछ भी लिख रही हूँ वह आपके सामने है।


लघु कथा के परिंदे समूह से जुड़कर लघुकथा की गहराइयों को जाना फिर नया लेखन से जुड़ी इसमें भी मैं रोज कुछ नया ही सीख रही हूँ। अभी भी कायदे से लिख नहीं पाती हूं। बस लिखती रहती हूं, जो दिल में आता है करती रहती हूं। चरैवेति चरैवेति के सिद्धांत का पालन कर जो मैं कर रही हूँ उससे एक दिन अवश्य ही मंजिल पाऊंगी। इस आशा में आगे बढ़ती जाती हूं और अब मैं मगसम समूह से जुड़ी हूं जहां की पहली संगोष्ठी में मैं परसों शामिल हुई थी। जहां मुझे बहुत ही अच्छा लगा। वहां का तौर तरीका मुझे बहुत ही पसंद आया सभी रचनाकारों को मौका दिया गया, अपनी बात कहने का और संचालक महोदय का व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा।


इस वर्ष की शुरुआत में शुरुआत से ही हमने साहित्य क्षेत्र में कदम रख दिया था और कई समूहों से जुड़ना शुरू हो गया था और इस वर्ष के अंत होते-होते भी मैं एक सुव्यवस्थित सुंदर मगसम समूह से जुड़ी। मेरा तो वर्ष बहुत ही अच्छा बीता और हाँ आगे मैं यह बताना चाहूंगी इस वर्ष एक काम और हुआ है कि लखनऊ शहर में भोपाल से संचालित लघु कथा शोध केंद्र द्वारा लखनऊ में भी लघुकथा की संगोष्ठी की शुरुआत हुई जो कि हर महीने किसी न किसी साथी सदस्य के घर में होती है। जहां हम लोग एक लघुकथा पढ़ कर उसकी समीक्षा करके कुछ सीखते ही हैं, आपस में सकारात्मक व रचनात्मक बातें कर अच्छा लगता है। किसी किटी पार्टी से ज्यादा अच्छा हमको इस तरह की साहित्यिक संगोष्ठी में लगता है। मुझे लगता है जीवन में खोना पाना तो सब चलता रहता है पर इस वक्त जो कभी नहीं सोचा था वह काम यानी साहित्य क्षेत्र में लिखने के विषय में मैंने कभी नहीं सोचा था मैंने वो काम किया है।


मैंने लिखा और जो मुझे अच्छा ही नहीं बहुत अच्छा लगा। सन 18 में साहित्य समूहो में शिरकत करने का जो सफर शुरू किया था सन् उन्नीस में भी जारी है। अभी भी मैं साहित्य क्षेत्र समूह से जुड़ रही हूं, मेरा यह सफर मुझे किस मंजिल ले जाएगा नहीं जानती मैं। हालांकि इतना तो पता है मंजिल बहुत सुंदर होगी। इस वर्ष हमने बहुत सी साहित्य संगोष्ठियों मैं शिरकत की। बहुत सारे साहित्यिक साथियों से मिलना हुआ। जीवन में अच्छे लोगों से मिलकर नई ऊर्जा का संचार होता है यह हमने अपने अनुभवों से जाना। जनवरी की शुरुआत 21 फरवरी मां को जन्मदिन की बधाई देने के साथ शुरू कर अंत में 8 दिसंबर को पिताजी के पिच्चासीवें जन्मदिन की बधाई के साथ 2019 के समापन के समय में और आज तीस दिसंबर को सबको विदाई व नये वर्ष के स्वागत का नमस्कार करती हूँ।


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