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डोर

डोर

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सूरज सिंह अपने कमरे में बैठा था। चारों तरफ कठपुतलियां थीं। वह देश का माना हुआ कठपुतली कलाकार था। विदेशी मुल्कों में भी उसकी कला के प्रशंसक थे। 

खेल दिखाने के लिए वह अपने हाथों से कठपुतलियां बनाता था। उनके लिए किस्से गढ़ता था। फिर उसके हिसाब से उन्हें नचाता था।

कठपुतलियाों का तमाशा दिखा कर ही उसने धन, संपदा, मान सम्मान सब कमाया था। पर आज वह उन्हीं कठपुतलियों के बीच उदास था। 

सूरज सिंह एक अच्छा कलाकार था। पर हर व्यक्ति में एक कमज़ोरी होती है। उसकी कमज़ोरी थी उसका इकलौता बेटा आदर्श। आदर्श को वह दुनिया की हर वस्तु से अधिक चाहता था। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद तो अपने बेटे में ही उसके प्राण बसते थे। 

अपने बेटे से उसके अंधे प्यार का यह हाल था कि छोटी उम्र से ही आदर्श उससे अपनी हर सही ग़लत मांग मनवा लेता था। उसके आसपास के लोग अक्सर उसे इस बात के लिए समझाते थे। उससे कहते थे कि उसका अपने बेटे के लिए मोह एक दिन उसे डुबो देगा। पर उसने कभी किसी की बात नहीं सुनी।

सूरज सिंह का एक सहायक था रंजन। सूरज सिंह की प्रतिष्ठा बढ़ाने में उसका महत्वपूर्ण योगदान था। सूरज सिंह इस बात के लिए उसे पूरा मान देता था। यही कारण था कि रंजन सूरज सिंह के साथ ही उसके बंगले पर रहता था। रंजन के विवाह पर सूरज सिंह ने एक बड़ी दावत दी थी। 

उसी दावत में आदर्श की नज़र रंजन की पत्नी ममता पर पड़ी। ममता बहुत सुंदर थी। आदर्श का दिल उस पर आ गया। उसने कभी भी मर्यादा का पालन करना नहीं सीखा था। इसलिए यह जानते हुए भी कि ममता रंजन की पत्नी है, वह उसे पाने की इच्छा रखता था।

अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वह सही मौके की तलाश कर रहा था। एक बार जब रंजन सूरज सिंह के साथ एक शो के लिए गया था, तब उसने ममता को अकेला पाकर उसके साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की। लेकिन ममता ने डट कर मुकाबला किया और उसका मंसूबा पूरा नहीं होने दिया।

ममता ने जब अपने पति रंजन को सारी बात बताई तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने सूरज सिंह से शिकायत की। उन्हें धमकी दी कि वह यह मामला पुलिस के पास लेकर जा रहा है। 

सूरज सिंह ने उसे समझाने का प्रयास किया। उससे कहा कि वह शांत हो जाए। वह आदर्श को समझाएंगे। उससे माफी मांगने को कहेंगे। उन्होंने आदर्श को समझाया कि माफी मांग कर मामला खत्म कर दे। यदि बात पुलिस में चली गई तो बदनामी होगी। 

आदर्श भी नहीं चाहता था कि मामला आगे बढ़े। उसने माफी मांग ली। रंजन सूरज सिंह से अलग हो गया। मामला शांत हो गया।

आदर्श ने माफी तो मांग ली थी। पर मन ही मन वह ममता से चिढ़ गया था। वह बदला लेने का अवसर देखने लगा। ममता से माफी मांगने‌ के बाद से ही आदर्श बहुत चुपचाप रहता था। वह अपनी जलन में भीतर से घुला जा रहा था। सूरज सिंह उसकी यह दशा नहीं देख पाते थे।

रंजन सूरज सिंह से अलग हो गया था पर उसके पास अपने दम पर अलग पहचान बनाने की काबिलियत नहीं थी। वह सूरज सिंह का सहायक होने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। उसके सामने जीवन निर्वाह की समस्या आ गई। कुछ महीनों तक भटकने के बाद जब कुछ नहीं हो सका तो वह सूरज सिंह से मिला। उसने कहा कि जो हुआ उसे भूल कर हम दोबारा एक साथ काम करते हैं। सूरज सिंह ने सोंचने के लिए समय मांगा।‌

सूरज सिंह का भी काम रंजन के बिना नहीं चल पा रहा था। वह उसे दोबारा काम पर रखने को तैयार थे। पर आदर्श को जब सारी बात का पता चला तो उसने एक शर्त रखने को कहा। सूरज सिंह ने जब वह शर्त सुनी तो उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया।

लेकिन आदर्श ने हमेशा की तरह उन पर दबाव बनाया। एक बार फिर वह पुत्र मोह में अंधे हो गए। उन्होंने वह अमर्यादित शर्त रंजन के सामने रख दी। 

कई दिनों तक जीविका के लिए हाथ पैर मारने के बाद भी रंजन को सफलता नहीं मिली थी। वह हताश होकर सूरज सिंह के पास आया था। सूरज सिंह की शर्त अमर्यादित थी। पर वह भी अपने स्वार्थ में अंधा हो गया था। उसने शर्त स्वीकार कर ली। 

मीडिया में खबर आई कि मशहूर कठपुतली कलाकार सूरज सिंह के इकलौते बेटे की एक होटल के कमरे में हत्या हो गई। गुनाहगार ने खुद को पुलिस के हवाले कर दिया। 

ममता अपने आप को खिलौना बनने देने को तैयार नहीं थी।

मोह, हवस और लालच की डोर से बंधी तीन कठपुतलियां अपने ही जाल में फंस गई थीं।


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