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क़त्ल का राज़ भाग 5

क़त्ल का राज़ भाग 5

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क़त्ल का राज़ 

भाग 5

                   दूसरे दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई। भारी ऐश ट्रे से खोपड़ी पर जानलेवा प्रहार हुआ था सर के पिछले हिस्से में हुए वार ने मंगतानी को सम्भलने का भी मौका नहीं दिया था। ऐश ट्रे पर कई लोगों की उँगलियों के निशान थे क्यों कि काफी लोग भिन्न कारणों से उसे छुआ करते थे अब पुलिस के सामने उन निशानों से कातिल के निशान छांटने और उसे दबोचने की चुनौती थी जो बेहद आसान साबित हुई। सुबह अमर सिंह अपने ऑफिस में बैठा बारी-बारी से सबके बयान सुन रहा था। चौधरी और उसके गुर्गों की आपबीती चल रही थी और कान्ता चपरासी सोनू और कामवाली चन्द्रा बाहर बेंचपर बैठे हुए थे कि एक हवलदार ने आकर अमर सिंह से कहा साहब! एक शराबी आदमी बाहर आया है जो कह रहा है कि मंगतानी का खून उसी ने किया है! यह सुनकर अमर सिंह बुरी तरह चौंक उठा। उसने तुरंत चौधरी को बाहर जाकर बैठने को कहा और हवलदार को शराबी को ले आने का संकेत किया। कुछ ही पलों में सम्यक बाबलानी हवलदार के साथ कमरे में दाखिल हुआ। उसकी झोलझाल हालत और सूजे हुए पपोटे बता रहे थे कि वह रात भर सोया नहीं है और शायद रोता भी रहा है। अमर सिंह ने उसे सामने बैठने का इशारा किया फिर उसके इशारे पर हवलदार ने एक गिलास पानी लाकर उसे दिया जो सम्यक ने मना कर दिया। 

तुम्हारा नाम?

सम्यक बाबलानी

क्या करते हो?

जमीन जायजाद खरीदने बेचने में मदद करवाता हूँ 

ओह! ब्रोकर हो जिसे आम बोलचाल में दलाल कहते हैं

जी हाँ

मंगतानी को कैसे जानते थे?

पहले बिजनेस के ही सिलसिले में मिला था बाद में जातभाई होने की वजह से दोस्ती हो गई थी 

फिर दोस्ती इतनी दुश्मनी में कैसे बदली कि क़त्ल की नौबत आ गई?

जवाब में सम्यक ने पैसों के लेनदेन और मंगतानी के बुरे व्यवहार और उससे उपजे झगड़े के बारे में सब कुछ विस्तार से बताया। अमर सिंह विचारमग्न हो सुनता रहा। जब उसका बोलना थमा तो अमर सिंह बोला, लेकिन मंगतानी तो कान्ता के सामने ही ऑफिस से चला गया था और उसके पहले ही तुम निकल गए थे तो फिर तुम दोनों उसके ऑफिस में कैसे पहुंचे और क़त्ल कैसे हुआ?

जवाब में सम्यक ने बेचैन होकर इधर उधर ताका और अपने सूखे होठों पर जीभ फेरने लगा। अमर सिंह की अनुभवी आँखों ने परिस्थिति भांप ली। उसने आँखों ही आँखों में आश्वस्त करने का इशारा करते हुए हामी भर दी। सम्यक ने फ़ौरन पतलून की जेब से छोटी सी बोतल निकाली और कुछ घूंट गटकते ही उसमें साहस का संचार हो गया। 

सर! सम्यक आगे बोला, जब मैं ऑफिस से निकला तब बेहद गुस्से में था। मंगतानी साफ़-साफ़ बेईमानी कर रहा था। पर मैं बेबस था। मैं अपने पसंदीदा रौनक बार में जाकर ड्रिंक करने लगा इतने में मंगतानी का फोन आया। उसने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ हूँ? मेरे रौनक बार बताने पर उसने कहा कि क्या मैं उसके ऑफिस आ सकता था? मेरे कारण पूछने पर उसने बताया कि वो मेरा हिसाब किताब साफ़ करके झंझट मिटा देना चाहता था। मुझे लगा कि मंगतानी को सद्बुद्धि आ गई है। अंधा क्या चाहे दो आँखें! मैं फौरन उसके ऑफिस पहुंचा। आधी रात से ऊपर का समय हो गया था। सारा इलाका सूनसान पड़ा था। मैं चुपचाप मंगतानी के ऑफिस में दाखिल हुआ। मंगतानी अपनी कुर्सी पर बैठा कुछ लिख रहा था मेरी आहट सुनकर उसने सर उठाया और मुझे बैठने का संकेत करके फिर लिखने लगा। थोड़ी देर बाद फारिग होकर मंगतानी बोला, सम्यक साईं! तू मेरा दोस्त है। तेरा पैसा दे देता हूँ। इतना कहकर मंगतानी ने एक लाख रूपये की गड्डी टेबल पर धर दी। रूपये देखते ही मेरी आँखें चमकी तो संतुष्ट होकर मंगतानी बोला, ये एक लाख अभी ले जा! कल चार लाख दे दूंगा और बाकी के बीस लाख जब भी जरुरत हो धीरे-धीरे ले जाया करना। 

लेकिन मेरा तो साढ़े तीन ही बाकी है गुरुबख्श!

सुन सम्यक साईं! ये पेपर पढ़ ले, कहकर मंगतानी ने वो पेपर मेरी ओर बढ़ा दिया। पेपर पढ़कर मेरा होश खराब हो गया। मेरा सहारा, मेरा एकमात्र बचा हुआ आसरा,मेरे सर की छत मंगतानी हड़पना चाहता था। मेरी बुरी हालत का फायदा उठाकर वो दरिंदा मेरा खून पीना चाहता था। मैं किसी भी  हालत में अपनी बेटी ईशा के लिए यह घर बचा कर रखना चाहता था। मंगतानी जल्दी-जल्दी मुझे कुछ समझा रहा था पर मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था उसने जबरदस्ती मेरे हाथों में कलम पकड़ा दी और साइन करवाने का उपक्रम करने लगा। अचानक मेरे सर पर खून सवार हो गया मैंने आव देखा न ताव ऐश ट्रे उठाकर उसके सर पर पटक दी उसके मुंह से हल्की सी चीख निकली और वो कुर्सी पर ढेर हो गया। मैं तुरन्त वहां से भाग निकला। आज सुबह मुझे न्यूज द्वारा पता चला कि मंगतानी मर गया है तो मैं यहाँ चला आया। इतना कह कर सम्यक सुबकने लगा। अमर सिंह को उसपर दया आई पर वो कानून के हाथों मजबूर था। उसने फ़ौरन कार्यवाही आरम्भ की। सम्यक के इकबालिया बयान के मद्देनजर सारी बात आईने की तरह साफ़ थी फिर भी प्रोसीजर का पालन जरुरी था। सम्यक की उँगलियों के निशान लेकर आलाए क़त्ल अर्थात ऐश ट्रे से उठाये गए निशानों से मिलाये गए तो हूबहू मिल गए। अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी सम्यक को गिरफ्तार करके बाकियों को विदा कर दिया गया। अमरसिंह की नजर में अब सम्यक को कड़ी सजा से कोई नहीं बचा सकता था लेकिन अगले दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने सम्यक बाबलानी की जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया।

 

कहानी अभी जारी है ........

आखिर क्या हुआ सम्यक के साथ?

क्या इस ओपन एंड शट केस में भी कोई झोल था?

पढ़िए भाग  6


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