मजबूरी
मजबूरी
मंजू का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था । सामने गंगू की लाश पड़ी थी । सारा मोहल्ला इकट्ठा हो गया था । और अंत्येष्ठि की तैयारी कर रहा था ।
मंजू नही चाहते हुए भी सोचने को मजबूर हो रही थी कि अभी अंत्येष्ठि तो ये लोग उधार देके करवा देंगे । मगर बाद का क्या होगा , घर मे तो अभी एक दाना भी नही है ।
एक महीने पहीले ही तो अम्मा गुजरी थी , उनके काज करने में ही गंगू की जान निकल गयी थी ,कितनी मुश्किल से सब इंतेजाम हुआ था , तेरहवीं होते होते तो गंगू गले तक कर्ज में डूब गया था , अब उसी को उतारने में , दुगनी तिगुनी मेहनत करके बीमार पड़ गया और बिना इलाज के ही चला गया ।
नही मंजू चीखी मैं अपने कलुआ को दूसरा गंगू नही बनने दूंगी , नही बनने दूंगी।
कुछ सोचकर मंजू बोली , रुको सब गंगू अपनी आखरी इच्छा बता के गया है ।
" गंगू की अंतिम इच्छा थी कि उसकी देह की अंत्येष्ठि न करके उसका देह दान किया जाय , और ब्राह्मण भोज न कराकर उसका पैसा , भिखारियों में बाट दे "