भारत के नाम ख़त
भारत के नाम ख़त
प्रिय भारत
मुझे तुम्हारी माँ का ख़त मिला। वे तुम्हें लेकर अत्यंत चिंतित थीं। वे माँ हैं, और तुम्हें विपरीत परिस्थितियों में घिरा देखकर उनकी फ़िक्र बढ़ जाती है। पर वे एक बात से आश्वस्त थीं कि तुम हर परिस्थितियों का बहादुरी से सामना करोगे क्योंकि तुमने अपने अंदर सकारात्मकता का दीपक जलाए रखा है। प्रयत्न तो अवश्य हुए उसे बुझाने के, पर आंधी ये नहीं जानती की तुमने कैसी-कैसी परिस्थितियों में भी उगते सूर्य की भांति सोने की दमक लिए अपनी पहचान बनाई है।
मैं अपने इस ख़त से तुम्हारा मनोबल और ऊँचा करुँगी ताकि तुम ऊर्जावान बने रहो।
पिछले ख़त में तुमने सपनों के भारत का जिक्र किया था और मेरी भी राय मांगी थी। एक स्त्री होने के नाते मैं यही चाहूँगी की मेरे सपनों का भारत ऐसा हो जहां हर स्त्री सुरक्षित हो। उसके मान सम्मान पर कोई ठेस न पहुंचे, क्योंकि जिस प्रकार पंछी केवल एक पंख से उड़ान नहीं भर सकता, उसी प्रकार बिना स्त्रियों के, विकास का पहिया सदैव अधूरा ही रहेगा।
सपनों के भारत में केवल शांति का ध्वज हो। भले ही भारत में विभिन्न धर्मों के, विभिन्न रंगों के ध्वज लहराते हो। पर, अगर सभी रंगों को मिला दिया जाए तो अत्युज्ज्वल श्वेत रंग की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार मंदिर की घंटी, मस्जिद का नमाज़, गुरुद्वारे की वाणी, यीशु की प्रार्थना केवल एक को ही पुकारती है। उसी प्रकार हमारा भारत भी एक होगा। उसके कोई टुकड़े नहीं होंगे, हर धरती समान होगी। मानो धरती माँ, अपनी गोद फैलाये सबको खिला रही हो। कितना सुंदर और अदभुद होगा वह क्षण।
ये सारी बातें भारतवासी अवश्य समझेंगे। तुम निराश मत होना, धैर्य और सकारात्मकता का दामन थामे रहना क्योंकि तुम्हारी सबसे बड़ी प्रेरणा तुम्हारी माँ हैं। जिन्हें हम गर्व के साथ भारत माँ कहते हैं, बातें और भी हैं, पर वह अगले ख़त में। माँ को मेरी तरफ़ से सादर प्रणाम। तुम अपना ख्याल रखना और सकारात्मक की लौ को जलाए रखना। सपनों का भारत अवश्य होगा, प्रबुद्ध होगा।