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एक खत बेटियों के नाम

एक खत बेटियों के नाम

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 बेटी प्रिय

बहुत सारा प्यार।

आज तुम्हेंं खत लिख रही हूँ। बहुत सारी बातें होती है जो हम सामने नहीं कह पाते !या वक्त के साथ वो निकल जाता है। पर मैं चाहूंगी इस खत को सम्हाल के रखना । कल का क्या भरोषा मैं रहूँ या न रहूँ। पर मेंरा ये खत आने वाले कल मेंं न जाने कितने तुम्हारे सवालों के जवाब दे, तब जब बेटी बढ़ी होती है, तब जब बेटी ससुराल जाती है। और न चाहकर भी मन के किसी कोने मेंं ससुराल व मायके को लेकर तुलना हो जाती है। फर्क तो होता है न पर यही नियति है जिसे हमेंं खुशी खुशी स्वीकार करना चाहिए। नहीं तो गृहकलह के अलावा कुछ नहीं मिलता। ओर इन सब उलझनों मेंं इंसान अपना बौद्धिक विकास नहीं कर पाता। इंसान की जिंदगी कुछ करने, कुछ कर गुजरने के लिए होती है ! न जाने किस पवित्र उद्देश्य के लिए हम इस धरा मेंं आये है। अपने लक्ष्य को पूरा तो करना पर अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए।

बेटियों को अक्सर बहुत सारी नसीहतें, सलाह, उपदेश दिए जाते हैं। माता पिता, परिवार रिश्तेदारों के द्वारा। धीमा बोलो, जोर से हंसों नहीं, सब खाओ जो तुम्हें पसंद नहीं वो भी ससुराल मेंं कैसे करोगी क्योंकि बेटियों से उम्मीदें ज्यादा होती है। "बेटियां दो कुलों को जोड़ने वाली होती है।"

रामायण का एक प्रसंग है जो कभी मेरे जेहन से जाता नहींं...

"प्रभु राम से जब मिलने भरत जी के साथ पूरा कुटुम्ब आता है। तब जनक जी कहते है, जानकी से सास के पास जाओ उनकी सेवा करो, फिर मां के पास आना। क्योकि विवाह के बाद मां से भी ऊँचा स्थान सास का होता है। "यही हमारी भारतीय संस्कृति व संस्कार है जिन्हें हमें ही आगे ले जाना है। "आज पाश्यात्य सभ्यता का कितना अंधानुकरण होते जा रहा है। लोग अपने रीतियों परम्पराओं से दूर होते जा रहे"। तुम आधुनिक तो बनना पर विचारों से, समय के साथ जो चलना।

एक बात और इस बेटी से बहु के सफर मेंं ये याद रखना की तुम एक इंसान भी हो जिसे जीने का खुश होने का पूरा हक है। सबको खुश करने की कोशिश मेंं खुद को न भुल जाना। क्योंकि सबको खुश कर पाना संभव नहीं है पर हम स्वयं सही राह चले। अपना हर कर्तव्य निभाये। कौन क्या कहता है इसपर जाए तो जीना मुश्किल हो जाएगा। और कैसी भी परिस्तिथि आये डटकर सामना करना। अगर परिस्थितियों मेंं संघर्ष नहीं करोगी तो आगे नहीं बढ़ पाओगी। भाग्य के भरोसे बैठे रहना भी तो गलत है। ईश्वर उन्ही की सहायता करते है जो अपनी मदद स्वयं करें। तुम अपने सपनों को जीना। सबको खुश रखने की कोशिश मेंं खुद को नहीं भूल जाना। हमने तुम्हें बहुत लाड़, प्यार व अनुशासन मेंं पाला है। तुम हमारा गुरुर भी, और मान भी। कभी आंसुओं पर प्याज को इल्जाम न लगाना, न डिग्रियों को चूल्हे मेंं झोंकना। न सपने देखना बुरा है, न घर के काम करना। तुममें इतना सामर्थ्य है कि तुम सब सम्हाल सकती हो। आस पास अच्छे लोग न मिले कोई बात नहीं, ईश्वर हमें सुख दुख का एहसास करवाने के लिए ही तो विपरीत स्वाभाव वालो से मिलवाता है। और हाँ पराई तो कभी नहीं होओगी। इस घर में हर जमा पूंजी मेंं हमारे प्यार मेंं तुम दोनों भाई बहन का बराबर का हिस्सा रहेगा। गर्व से कहना मेंरा घर , मेंरा घर है आज भी हमेंशा। ताकि कभी कोई तुम्हें ये एहसास न दिलाये की तुम्हारा घर कौन सा है। कभी बचपन की याद आ जाये तो आकर रहना। जी भरकर अपने घर में। मैं रहूँ या न रहूँ। पर तुम्हारा घर हमेंशा तुम्हारा रहेगा। जिंदगी जिंदादिली से जीना। खुलकर हँसना, गलत बात का विरोध करना। सिवाय ईश्वर के किसी से उम्मीद न करना। लोगो मेंं कमियाँ नहीं उनके गुणों को देखना। हर किसी के अंदर कोई न कोई अच्छाई होती है। मुस्कुराना अपनी आदत मेंं शुमाद करना। और बस सही राह चलना तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं। तुम्हारे हर कदमों के पीछे मैं हूँ न।


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