जननी बनती शक्ति
जननी बनती शक्ति
अपने दोनों जुड़वा बच्चों को नहला-धुला कर जैसे ही तैयार करके रीना उन्हें काला टीका लगाने लगी इतनी ही देर में सामने बैठी रीना की सास ने बड़ी व्यंग्य से बोला-
"अरे इन्हें क्या काले टीके की जरूरत, यह दोनों तो मानसिक और शारीरिक रूप से अपाहिज है इन्हें भला कौन नजर मारेगा ? समझाया था, तुझे खूब मत पैदा कर ऐसे बच्चों को लेकिन तुझे समझ नहीं आई अब लगी रह सारी जिंदगी इन की सेवा करने में।"
रोज रीना की सास उसे उसके बच्चों का अपाहिज होने का ताना देकर उससे अतीत की दुःखमयी यादों में ले जाती, जब एक ओर तो डॉक्टर ने उसे जुड़वा बच्चे पैदा करने की अच्छी खबर सुनाई थी लेकिन कुछ ही दिनों बाद हुई जांच परीक्षण में उसे पता चला था कि उसके दोनों बच्चे सामान्य नहीं है और डॉक्टर के साथ साथ सभी घरवालों ने उसे अपनी इस प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की सलाह दी थी, लेकिन रीना और उसके पति को यह कतई मंजूर नहीं था। इसलिए दोनों ने भगवान के ऊपर विश्वास व इन्हें उसका उपहार समझते हुए बच्चों को जन्म देना ही उचित समझा। अपनी डिलीवरी के बाद रीना ने कभी भी अपने बच्चों की देखरेख व परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। इसमें उसके पति भी हाथ बंटाते, कहने को तो दोनों बच्चे सात माह के हो गए थे लेकिन उनका विकास केवल अभी दौ माह के शिशु के अनुसार ही हुआ था।
रीना ने कभी कोई मलाल नहीं रखा था कि उसकी कोख ने इस तरह के बच्चों को जन्म दिया, वो तो यह सोचती थी कि इनमें इनका क्या कसूर ? शायद यही तो एक माँ की शक्ति ठहरी।
जब भी रीना अपने बच्चों का ध्यान रखती उसकी सास हमेशा उसे कोई ना कोई ताना देकर अपनी संकीर्ण मानसिकता वाली सोच का उदाहरण दे ही जाती लेकिन आज यह काला टीका वाली बात सुनकर रीना ने अभी गुस्से का घूट पीया ही था कि उसकी सास द्वारा समय पर चाय ना मिलने के कारण रीना के दोनो बच्चों को मनहूस कह कर इस दुनिया में ना लाने की की बात सुनकर रीना का गुस्सा उमड़ पड़ा और वो बिना सहन किये तपाक से बोल पड़ी- “अच्छा ही हुआ मांजी मैंने दिव्या दीदी की तरह आपकी बात ना मानते हुए इन बच्चों को जन्म दे दिया, नहीं तो आज जिस तरह उन्हें एक बच्चा कोख में ही गिराने के बाद उनके ससुराल में बांझ का खिताब मिला है, ऐसा ही कोई खिताब आपने मेरे लिए भी सोच रखा होता।”
रीना यह बात सुनकर कमरे में सन्नाटा पसर गया।