शराफत का मुखौटा
शराफत का मुखौटा
शादी के पहले मंजरी के पिता ने, मंजरी के लिए क्या-क्या सपना देखा था । कि" एक राजकुमार जैसा लड़का आएगा उसकी बेटी को रानी बनाके रखेगा" । मंजरी को प्यार से मन्जू कहते थे, बड़े अरमानो से मंजरी का हाथ विवेक के हाथ मे दिया था। पर किस्मत मे तो कुछ और लिखा था। शादी के पहले विवेक इतने शालीनता से पेश आता था, किसी को शक ही नही हूआ कि इंसान के रूप मे छुपा राक्षस है।
शादीके बाद उसका असली रूप सामने आने लगा हर दिन मंजरी को मारता, पीटता था। हर रात शराब के नशे मे धुत रहता, विवेक के माता पिता ने विरोध किया तो उन्हें गाँव भेज दिया। एक सास ही थी जो हमदर्दी जताती थी। अब वो भी चली गई।बाहर उसने अपने चेहरे पर "शराफत का मुखौटा" पहन रखा था। मंजरी के घर वालो के सामने ऐसे पेश आता,कि मंजरी की उसे कितनी परवाह है। बडी मुश्किल से मन्जू की शादी की थी,उन्हे बताकर परेशान नही करना चाहती थी। पर कहते है ना हर माँ को एहसास पहले होने लगता है।
"सूनिये जी जब से मन्जू की शादी हूई तब से आई नही है छ महीने हो गये उसे देखे हुए, फोन पर भी ढंग से बात नहीं हो पाती है। बडी़ चिन्ता हो रही है उसकी, एक बार जाकर मिल आते तो दिल को तसल्ली हो जाती"।
"तुम झूठे ही परेशान हो रही हो, विवेक इतना भला लड़का है। जब वह मुझे फोन कर के अक्सर हाल, चाल लेता रहता है तो वो हमारी मन्जू का कितना ख्याल रखता होगा"।
"फिर भी आप एक बार चले जाइये "।
"परसो मेरी छुट्टी है देखता हूं"।
"इतना भारी बैग क्या क्या भर दिया है"।
"शादी के बाद पहली बार बेटी के घर जा रहे है खाली हाथ थोड़ी जायेगे।मन्जू के पसंद का आचार, बेसन का लड्डू सब रखा है।उसको मेरे हाथ का कितना पसंद है "।
मंजरी ने दरवाजा खोला तो अचानक पापा को देख अपने पल्लू से जख्मो को छिपाने लगी। "
" मन्जू ये जख्म कैसे है? "
"कुछ नही पापा बाथरूम मे फिसल गई थी।" ये सब छोड़िये आपने बताया नहीं, कि आप आने वाले है? तुम्हारी माँ को तेरी चिन्ता हो रही थी, बस चला आया। वरना मुझे पता ही नहीं चलता।
क्या पता नही चलता पापा?
तूझे क्या लगा तू जो कहेगी मै विश्वास कर लूगा, अब तू अपने पापा से झूठ बोलने लगी। मन्जू रोने लगी, आज उसने सारा हाल अपने पापा से कह डाला।
कितना कुछ सह रही थी। और हमे कुछ बताया क्यों नही? आप को परेशान नही करना चाहती थी। मेरीबेटी इतनी कमजोर नही थी कि वो ऐसे दरिन्दे का सामना ना कर सके,क्यू सह रही थी अत्याचार, क्यू तुमने आवाज नही उठाई, तेरे सास-ससुर कहा है वो भी शामिल थे? नही पापा, उन्होने विरोध किया तो, उन्हे गाँव छोड़कर आ गये।
तुम मेरी बेटी हो और आज तो मै भी तुम्हारे साथ हूं
नही पापा आप जानते नही वो अकेला दस के समान है।
पर बेटा तब भी हम उससे एक ज्यादा है?
मंजू हैरानी से देखती है
हम दो नहीं बल्कि एक और एक मिलकर ग्यारह के समान है।
विवेक आ जाता है। अच्छा तो तूने अपने बाप को बुला लिया, मंजरी का बाल बेरहमी से खीचता है, और कहता है मैंने मना किया था। "छोड़ मेरी बेटी को", ओय बुड्ढे बीच में मत बोल मै अपनी बीबी से बात कर रहा हू, जोर से धक्का दे देता है । पापा !
मंजरी विवेक को जोर से धक्का मारती है।" बस अब और नही सहूगी तेरा अत्याचार!" तूने मेरे पापा पर हाथ उठाकर सारी हदे पार कर दी, छ महीने से तेरा अत्याचार सहती रही सोचा कभी तो तुम्हारा ह्रिदय परिवर्तन होगा पर तुम "कुत्ते की दूम हो जो कभी सीधी नही हो सकती"।( उधर मन्जू के पापा ने पुलिस को फोन कर दिया।)
अच्छा अब तेरी जबान चलने लगी, रूक अभी बताता हूँ, उसने जैसे ही अपनी बैल्ट निकालकर मरना चाहा मंजरी ने बैल्ट पकड़ कर खीच लिया, और उसने मारना शुरू किया, आज तक जो तुमने अत्याचार किया है, आज सबका हिसाब होगा !
कुछ देर मे पुलिस आ जाती हैं रूक जाईये आप आगे का हिसाब पुलिस करेगी। चल! पुलिस घसीटते हुए ले जाती है बाहर,सारा मोहल्ला देख रहा था आज उसके चेहरे से "शराफत का मुखौटा" उतर चूका था ।
आज बाप और बेटी ने दिखा दिया कि मन मे दो लोग ठान ले तो वह ग्यारह बन कर मुसिबत का सामना कर सकते हैं।