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Mahesh Dube

Action Thriller

2.2  

Mahesh Dube

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रहस्य की रात भाग 2

रहस्य की रात भाग 2

2 mins
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अचानक जैसे आग जली थी वैसे ही बुझ भी गई। चारों मित्रों को अपने बदन में भी ताकत लौटती सी महसूस हुई। थोड़ी देर बाद किसी तरह हिम्मत करके वे उस कोने में गये जहां आग जली थी तो वे यह देखकर आश्चर्य में पड़ गये कि वहां अग्निकांड का कोई निशान नहीं था। न पक्षियों के जले अधजले शव थे, न कोई राख ही नजर आई। वातावरण की निस्तब्धता में केवल झींगुरों का प्रलाप भर शेष था। कुछ देर पहले देखे गए दृश्य उनकी आँखों के आगे चलचित्र की तरह घूम रहे थे और उनकी रीढ़ की हड्डी में अभी भी सिहरन सी हो रही थी। यह सब गोरखधंधा उन सबकी समझ से बाहर था। 

किसी तरह हिम्मत करके वे मंदिर के बाहर निकल आये। आस-पास का वातावरण और अधिक भयानक था। सांय-सांय करती हवा जब सरपतों के जुट्टों से टकराकर गुजरती तो भयानक शोर उत्पन्न होता। दूर कहीं से सियारों के बोलने का स्वर भी सुनाई पड़ रहा था। उन चारों ने भयभीत होकर फिर मंदिर में ही जाने की सोची कि अचानक "अलख निरंजन" का नारा लगाते हुए एक बलिष्ठ साधु प्रकट हुए। केवल लंगोटी लगाए हुए और हाथ में कमण्डल लिए हुए उनका रूप भय-मिश्रित श्रद्धा उपजा रहा था।

चारों कांपते हुए उनकी ओर देखने लगे। मंथर गति से चलते हुए जब साधु उनकी ओर आये तो चारों उस समय चकरा गए जब उन्होंने चारों को उनका नाम लेकर पुकारा। आशी, अनुज, वासू और सावा। 

चारों हाथ जोड़कर घुटनों के बल गिर से पड़े और उनसे इस विपत्ति से छुटकारा दिलाने की विनती करने लगे। बाबा ने फिर अलख निरंजन का नारा लगाया और एक पत्थर पर बैठ गए और उन चारों को आश्वासन देती सी मुद्रा में देखने लगे। फिर धीर-गम्भीर वाणी में चारों से बोले, बालकों! आज पूरे चाँद की रात तुम चारों का प्रारब्ध तुम्हें घसीट कर कपालिका माता के इस अत्यंत प्राचीन मंदिर तक ले आया है। अगर मैं अभी अनायास यहां न आ गया होता तो अब तक तुममें से कोई जीवित न होता। इस परम रहस्यमयी मंदिर और इस पर काबिज दुष्ट चांडालिनी झरझरा की कथा सुनो! इतना कहकर बाबा जी ने आँखें मूँद लीं मानो बात आरम्भ करने की भूमिका सोच रहे हों। ये चारों मित्र भी हाथ जोड़े आतुरता से प्रतीक्षा करने लगे।

कहानी आगे जारी है...

 

 


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