उलझन
उलझन
सायरा, नायरा दो बहनें, अपने मम्मी-पापा के साथ बहुत ही मधुर एवं शांत जीवन व्यतीत कर रही थी। बचपन में दोनों का मिल कर खेलना, स्कूल जाना, दादी से गप्पे मारना, बचपन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।
फ़िर कॉलेज, दाखिले की भाग-दौड़, समय बीतते पता ही नहीं चला। दोनों बहनें बड़ी हो गयी। माँ-बाप को शादी की चिंता हुई। सायरा के लिए लड़का ढूँढ़ना शुरू किया। काफ़ी भाग-दौड़ के बाद एक जगह बात पक्की हो गयी। लड़का अच्छा था, एक महीने के अंदर ही धूमधाम से शादी हो गयी।
सायरा विदा हो कर अपने घर चली गयी। माता-पिता भी खुश थे लेकिन भाग्य को तो कुछ और ही मंज़ूर था। जिस लड़की की इतनी शान-शौकत से शादी की उसे लड़के वालों ने १५ दिन में ही वापिस भेज दिया। देखने वाला, सुनने वाला हर कोई हैरान। ये क्या हुआ, कुछ समझ नहीं आ रहा था। क्या कारण है जो लड़की घर वापिस आ गयी। पड़ोसियों व रिश्तेदारों की खुसुर-पुसुर शुरू हो गयी। समझ नहीं आ रहा था की इतनी सीधी लड़की के साथ ऐसा कैसे हो सकता है। सहानुभूति बहुत थी पर कारण और भी अंधकारमयी था। सारी बात जानने पर पता चला की सायरा बीमार रहती थी पर उसके माता-पिता ने बताया नहीं लड़के वालों को। शादी के बाद पता चलने पर उन्हें बहुत क्रोध था की झूठ क्यों बोला। दोनों तरफ के रिश्तेदार इकट्ठे हुए, सारा मामला साफ़ था। हर बार लड़के वाले ही दोषी नहीं होते, लड़की वालों का भी दोष होता है। आपसी समझौते से दोनों पक्षों ने मामला सुलझाया। सायरा वापिस घर आ गयी।
सारा मामला साफ़ था पर एकांत में सोचने पर मजबूर हो जाता है इंसान की हर बात रौशनी में रख कर की जाती तो लड़की व लड़के दोनों की ज़िन्दगी ख़राब न होती। ज़िन्दगी ऐसे न उलझती जैसे अब उलझ गयी।
इसे किस्मत का नाम दें या एक गलत निर्णय का नतीजा कुछ कह नहीं सकते। अजीब उलझन में फसी है ज़िन्दगी।