गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
बात कुछ वर्ष पूर्व की है ,जब मैं माध्यमिक विद्यालय में पढ़ रहा था । उसी समय प्लास्टिक के तिरंगों का प्रचलन शुरू हुआ था । उस दिन गणतंत्र दिवस था और मैं बहुत खुश था, क्योंकि ऐसे अवसर पर हमें स्पर्धाओं में भाग लेने का मौका मिलता था। मैं भी प्रातः विद्यालय पहुँच गया और वहाँ पर अधिकांश छात्रों के हाथ में प्लास्टिक का तिरंगा लिए देख मन में थोड़ी सी ग्लानि हुई कि आज के दिन मेरे हाथ में भी तिरंगा होना चाहिए था परन्तु तब तक मैं प्लास्टिक के तिरंगे से अनजान था | हाँ, बचपन में कागज पर तिरंगा बनाकर खुद से रंग भरकर उसमें चक्र बना देते थे और वही हमारा तिरंगा हुआ करता था।
ध्वजारोहण के पश्चात् राष्ट्रगान हुआ, विभिन्न कार्यक्रम हुए और मोदक (लड्डू) वितरण हुआ। कुछ लोगों को छोड़ बाकी सभी छात्र-छात्राएँ जा चुके थे , तो मैंने देखा कि 10-15 तिरंगे ज़मीन पे पड़े भारत माता की मिट्टी को प्रणाम कर रहे थे जिन्हे थोड़ी देर पहले हाथ में लेकर भारत माता की जय के उद्घोष किये जा रहे थे । मैंने उन्हें उठाकर उनमे से कुछ को विद्यालय के छप्पर में लगाया और 2-3 तिरंगे घर ले गया ।
ऐसे ही न जाने कितने विद्यालयों में तिरंगे बिखरे पड़े होगें, लोग खरीद तो लेते हैं पर उन्हें कैसे रखना है इस बात पर ध्यान क्यों नहीं देते।कबीरदास जी की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी थीं -
केका समुझाई राम जगत होइ गा अंधा
दुइ चार होंय, उन्हई समझावउँ, अबहीं भुलाने पेट क धंधा ...
हवा की गति थोड़ा तीव्र हुई ,मैंने जाने से पहले एक बार पीछे मुडकर देखा,सभी तिरंगे हवा के झोंकों से खेल रहे थे।मन में थोड़ी संतुष्टि की अनुभूति हुई और मैं वापस घर की ओर चल पड़ा।मेरे हाथ में भी तिरंगा लहरा रहा था और वो भी अपनी प्रसन्नता दिखा रहा था।