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Mukta Sahay

Others

5.0  

Mukta Sahay

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कमाओ तो जानो पैसे का मोल

कमाओ तो जानो पैसे का मोल

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काव्या बहुत ही सरल महिला है। कभी ना किसी से ज़ोर से बोलती हैं और ना ही कोई बहस करती। घर में हर किसी का ध्यान रखती । पति, बच्चे , सास - ससुर , माता-पिता सभी के पसंद - नापसंद के अनुसार उनके सभी काम पूरे करती और करवाती। बिना बताए सभी के मन की बात भाँप लेती। उनकी ज़रूरतें बिना कहे ही पूरे कर देती। सिर्फ़ इतना ही नहीं आस पड़ोस में भी सभी अपनी दुविधा की घड़ी में काव्या के पास बेधड़क आ जाते।कई बार तो बच्चे और पति उसके साथ ग़लत बर्ताव भी करते तो वह उसे नज़रंदाज़ कर देती क्योंकि रिश्ते निभने के क्रम में किसी एक को तो ग़म खाना ही पड़ता हैं। सास की सौ बातें सुन कर भी उनकी सेवा में लगी रहती। किसी से कोई द्वेष नहीं कोई राग नहीं। प्रेम और स्नेह ही उसके व्यक्तित्व के आधार थे ।

पर उस दिन उसके सब्र और संयम की सीमा टूट गई जब उसके पति ने उससे कहा कि पैसे कोई पेड़ पर नहीं उगते जो तुम उसे अपने बहन के बच्चे पर उड़ाना चाहती हो।खुद कमाती नहीं हो तो पैसे का मोल क्या जानो।

हुआ ये था की काव्या की बहन के बेटे ने दसवीं अच्छे नम्बरों से पास किया था तो वह उसे कुछ उपहार देना चाहती थी। काव्या के बच्चे जब भी पढ़ाई या खेलकूद में अच्छा करते तो उसकी बहन उन्हें प्रोत्साहन स्वरूप कुछ उपहार देती। काव्या और उसके पति को भी मौक़े पर ज़रूर कुछ देती ही थी। सास-ससुर साथ थे तो उनके लिए भी उपहार लाती थी। इसलिए काव्या ने भी उसके एकलौते बेटे को कुछ देने का सोचा था। वैसे तो घर परिवार के चक्कर में एक शहर में रह कर भी वह अपनी बहन के ख़ास दिनों पर भी मिलने ना जा पाती थी लेकिन कभी इसकी कोई शिकायत नहीं की थी उसने।

किंतु ना कमाने और पैसा अपनी बहन पर उड़ानं की बात पर वह बिफर गई। काव्या ने कमरे में जाते अपने पति को रोका और फिर अपनी सारी बात कह डाली। "सुनो ! ना कमाने को बात फिर कभी ना कहना क्योंकि शादी के बाद जब मुझे सरकारी नौकरी का नियुक्ति पत्र आया था तो तुमने कहा , जो बच्चा तुम्हारे अंदर पल रहा है उसे कौन पलेगा? मेरी माँ से नहीं हो पाएगा। माँ जी ने भी कहा की कमजोर हड्डियाँ ,नया बच्चा नहीं सम्भाल पाएँगी । मुझे कमाने से रोकने वाले तुम थे।अपने बच्चे और माता-पिता को सेवा करवाने के ख़ातिर तुमने मुझे अपनी पढ़ाई के साथ न्याय नहीं करने दिया। मैंने सोचा परिवार में बात बढ़ाने का कोई फ़ायदा नहीं सो चुप रही। अब आते हैं अपनी बहन पर पैसे उड़ाने की बात पर। मेरी बहन ने आज तक जितना मुझे, तुम्हें, तुम्हारे दो बच्चों को और माता-पिता को जितना दिया है हमने तो उसका आधा भी नहीं दिया है। बोलना नहीं चाहती हूँ पर तुम्हें याद दिलाना ही होगा कि बच्चों को अपनी फुआ से अभी तक एक जोड़ी कपड़ा ही मिला है, वो भी उनकी छठी पर। लेकिन तुमने अपनी बहन पर कितना उड़ाया है वह भी सोचो।इसी साल को ले लो, उसके बच्चे को सोने की ज़ंजीर भेंट की उसके आठवें जन्मदिन पर, बहन-बहनोई को महँगी घड़ी दी उनके शादी की सालगिरह पर, फिर होली-दशहरा-दिवाली पर रेशमी और ब्राण्डएड कपड़े दिए,ऊपर से मिठाई, मेवे।

मैंने तुम्हारे कमाए कितने पैसे बचाए हैं उसका भी सोचो, सभी की बिना कुछ किए जो सेवा की उसका भी हिसाब करो, बिना किसी को अहसान जताए जितने अहसान और त्याग किए हैं उन्हें याद करो।"

सभी सकते में थे कि ये क्या हुआ है काव्या को? उसका ये रूप तो किसी ने भी नहीं देखा था । माहौल भाँप कर सासु माँ ने झटपट बेटे से कहा "लल्ला सही तो कह रही है काव्या। बच्चे को दसवीं में अच्छे अंक लाने पर कुछ तो इनाम मिलना ही चाहिए। चल काव्या जल्दी से तैयार हो जा और लल्ला तुम दोनो बाज़ार से कुछ अच्छा सा ले आओ उसे देने के लिए।"

काव्या कमरे में चली गई और पीछे से आते उसके पति ने धीरे से कहा "काव्या माफ़ करना , हम सभी ने तुम्हें नहीं समझा । सभी की छोड़ो मैंने तुम्हें वह स्थान और मान नहीं दिया जिसकी तुम हक़दार हो। मैं समझ गया हूँ कि पति-पत्नी का साथ और बराबरी ही गृहस्थी के सही सही चलने का आधार हैं ।चलो बाहर चलते है, समान लाने नहीं , एक दूसरे के साथ समय गुजारने।"



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