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जीवन की सच्चाई

जीवन की सच्चाई

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बर्फ ही बर्फ है आंचल में,जहाँ हवाओं में भी साज़ है

ये हिमाचल है मेरी जान यहाँ खामोशी में भी आवाज़ है।

हिमाचल प्रदेश मेरा पसंदीदा पर्यटक स्थल है। अक्सर छुट्टियों में जाती हूँ वहाँ ।वहाँ की ताजी हवा में साँस लेकर यहाँ शहर की सारी थकान उतर जाती है। बर्फ देखकर दिल खुश हो जाता है। यहाँ के जीवन की सरलता को देख कर अच्छा भी लगता है और अपनी भागती दौड्ती मुंबई की दिनचर्या से कहीं अच्छी है है।

शाम को 7 बजे तो सब अपने घर पहुंच जाते हैं। मुंबई में तो कोई ऐसा सोच भी नही सकता है। पर यहाँ के लोगों की ज़िन्दगी भी आसान नही है। साल के तीन महीने तो सारे रास्ते, सारे व्यवसाय सब बँद रहता है। इतनी भीषण सर्दी और बर्फ बारि की कोई घर से निकल भी नही सकता। कच्ची उबड खाबड सड़क से जाना होता है पहाडों से चढ़ना और उतरना। ना पास में अस्पताल ना स्कूल ना एटीएम। मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं आता। कोई बीमार पड़ जाए तो अस्पताल पहुंचने से पहले ही प्राण त्याग दे। बड़ी दया आती है नन्हे बच्चों पर जिन्हें स्कूल जाने के लिए तीन घंटे लगते हैं । अपने घर से निकलते हैं पहाड़ चढ़ते हैं नदी पार करते हैं रस्सी पे बैठ कर फिर पहाड़ चढ़ते है तब कहीं जा कर उनका स्कूल आता है। हम तो अपने बच्चो को फूलों पर रखते हैं।

इन्ही सब सोचों के साथ हमलोग पहाडों का मज़ा ले रहे थे। पहाडों पे ट्रैक पे जाना तो हम सबको बहुत पसन्द है।एक आदमी भी ले लिया साथ में अपनी सुरक्षा के लीये। बिना सुरक्षा की गांरटी के हम लोगों से तो घुमा फिरा भी नही जाता। बूढ़ा सा आदमी है पर पहाड़ से वाक़िफ़ है। हमें और क्या चाहिये वो भी चार पैसे कमा लेगा। ठंडी हवाओं के संग खुशनुमा मंजर रूह में उतर रहे थे। तभी बहुत ही उबड खाबड रास्ता आ गया की चलना मुश्किल हो गया। उस बूढ़े व्यक़्ती ने मेरे पति को सहारे से नीचे उतारा और फिर मुझे सहारा देने के लीये हाथ बढाया। वो मुझसे दुगुनी उमर का था। मैने अविश्वास दिखाते हुए पूछा सम्भाल लोगे आप। उसने रोब से कहा पहाड़ि हैं हम मजबूत कद काठी है हमारी आप की तरह कोमल शरीर नही है हमारा। बहुत जान है इन हाथों में। भरोसा रखो डरो मत। बड़ी मज़्बूती से उसने सहारा दिया। उसकी आंखों की चमक उसके लहजे की दृण्ता उसके पहाड़ि होने का गौरव बता रही थी।

एक तरफ को उंगली से इशारा करके उसने बताया वो देखो हमारे बचे जो नदी पार कर रहे हैं ना उन्हे डर लगता है ना ठंड। हम तो पृकृति में रचे बेस हैं पहाडों पे बड़े हुए हैं। हमें कुछ नही होता। उसकी हर एक बात मानो कह रही हो दयनीय हमलोग नही आप लोग हैं जो बिना सहारे और सहजता के एक दिन भी नही जी सकते। आपका जीवन मशीन और तकनीक पर इतनी निर्भर करती है की उसके बगैर एक दिन भी आपका गुजारा नही है।


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