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कितनी मुद्दत बाद मिले हो

कितनी मुद्दत बाद मिले हो

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आज डॉक्टर्स डे पर डॉक्टर्स के कुछ मजेदार पुराने किस्से याद आ रहें है।बात नब्बे के दशक की है तब मैं एक प्रतिष्ठित फार्मा कंपनी 'वॉकहार्ड' में कार्यरत था और एक कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार कर्मचारी था। हालाँकि टारगेट अचीव न हो तो ये कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी किसी काम की नहीं थी। फिगर्स ही मायने रखते थे और रखते है। रोज़ 10-12 डॉक्टर्स और चार-पाँच मेडिकल स्टोर्स से टाई लगाकर, मुस्कुराकर मिलना ही हमारा काम था। इन डॉक्टर्स से हम महीने में एक बार ही मिलते थे। महीने में 25-26 दिन वर्किंग डेज के हिसाब से लिस्ट में 250-260 डॉक्टर्स होते थे।


बड़े आलीशान होटल में तब डॉक्टर्स के लिए सेमिनार आयोजित करना एक आकर्षक मार्केटिंग स्ट्रेटेजिक पालिसी हुआ करती थी। तब मोबाइल फ़ोन्स तो आये नहीं थे तो हम सेमिनार से एक घंटे पहले सभी आमंत्रित डॉक्टर्स के लैंडलाइन पर एसटीडी-पीसीओ से उन्हें याद दिलाने के लिए फ़ोन लगाते थे (सीनियर कॉलीग और मैं) यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप आ रहे है न ताकि अच्छी उपस्थिति हो सके। इसी बहाने आपके डॉक्टर्स के साथ परस्पर संबंध कितने अच्छे है ये उनकी आमद की संख्या से निर्धारित हो जाता था। डॉक्टर के सामने अपनी पूरी बत्तीसी परीस देने वाले व्यवहारकुशल, वाकपटु, मृदु स्वभाव के सीनियर कॉलीग राजकुमार जी से तो कोई बराबरी नहीं थी। उनके वरिष्ठ डॉक्टर्स के साथ बहुत घनिष्ट संबंध थे जिसका भरपूर लाभ उन्हें प्रेस्क्रिप्शन्स में दिखता था। इस बात का उल्लेख वो हेड आफिस (मुम्बई) से हवाई जहाज से पधारने वाले कंपनी के वरिष्ठ प्रबंधकों से भी विशेष तौर पर करते थे कि 'आई हेव गोट वेरी गुड रिलेशन्स विथ डॉक्टर्स।'


इस बात की प्रशंसा भी होती थी मगर जब मार्केट ने एथिकल प्रमोशन से अन एथिकल की तरफ अंगड़ाई ली तो उनका यही दावा उन पर ही भारी पड़ने लगा। मैनेजर्स ने उनको उनकी ही बातों में घेर लिया कि, "अगर आपके संबंध इतने अच्छे है तब तो धंधा और बढ़ना चाहिए लेकिन ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है।" बिचारे सिर्फ नाम के ही राजकुमार जब अपने घनिष्ठ संबंधों का हवाला देते हुए डॉक्टर्स से कहते की, “सर, आई हेव गोट वेरी थिकर रिलेशन्स विथ यू (सर,मेरे तो आपके साथ बहुत प्रगाढ़ संबंध है) फिर भी आप दूसरी कंपनी का ज्यादा लिख रहे हो।"


तो डॉक्टर्स भी बोल देते थे की, “भाई राजकुमार जिसके थिकर (प्रगाढ़) नहीं है वो ज्यादा करके जा रहा है, जबकि आपको और थिकर बनाने चाहिए।" बिचारे दोनो तरफ से फँस गए थे। अब आजकल तो ऐसे ऊर्जा से भरपूर अतिउत्साहित लोग आ रहे है जो पहली-दूसरी मुलाकात में ही प्रगाढ़ संबंध बना लेना चाहते है।


एक बार मैं वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. फारूकी जी से मिलने गया था तो ऐसे ही एक मैनेजर अपने अधिनस्त एम.आर. को दिखाने के लिए बड़े ही गर्मजोशी से कड़क हाथ मिलाने के बाद भरपूर दमदार कॉल किया और आत्मविश्वास से प्रस्थान किया। डॉक्टर साहब मुझसे बोले, "ये तो मुझसे ऐसे मिल रहा था जैसे मुझे बरसों से जानता हो।" मैं हँसकर बोला, "सर,दिस इज़ अग्रेसिव मार्केटिंग (सर, ये एक आक्रामक बाज़ारवाद है)।”


उन्होंने चिढ़कर जवाब दिया, "इट्स रादर इर्रिटेटिंग (बल्कि ये चिढ़ाने वाला है)।”


मैं चाहता था कि मेरी भी कंपनी में कुछ इज्जत बन जाये पर भरसक प्रयत्न के बाद भी होनी को कुछ और ही मंज़ूर था। इन सेमिनार्स में फर्स्ट लाइन, सेकंड लाइन मेनेजर भी उपस्थित होते थे।


अब एक डॉक्टर सहगल हुआ करते थे जो आनंद नगर में प्रैक्टिस करते थे। उनसे मैं मिलता था। उन्हीं के एक भाई डॉ. सहगल भी थे जो बरखेड़ा मार्केट में प्रैक्टिस करते थे व जिनसे मैं नहीं मिलता था। जिनसे मैं मिलता था उन्हें मैंने फ़ोन लगाया, "मे आई टॉक टू डॉ. सहगल?” दूसरी तरफ से आवाज़ आयी, "यस स्पीकिंग!”


”सर, आप आ रहे है न जेहान-नुमा होटल! आज सेमिनार रखा है।" उन्होंने ओके कर दिया और मैं निश्चिंत हो गया। जब सेमिनार में वो आये तो मैं देखकर समझ गया की, "अरे बाबा ये तो बरखेड़ा वाले डॉ. सहगल आ गए।"


मतलब जिस समय मैंने फ़ोन किया था वो अपने भाई के यहाँ आये हुए थे। आते साथ ही उन्होंने प्रश्न किया, "हाऊ डू यू लोकेटेड मी?" अर्थात तुमने कैसे खोज लिया की मैं वहाँ हूँ।अब मैं ये तो बोल नहीं सकता था कि मैंने आपके भाई को आमंत्रित करने के लिए फ़ोन लगाया था। मैंने डींग हाँकि की, "अरे सर, हम सब लोकेट कर लेते है।"


बाद में सीनियर कॉलीग राजकुमार जी ने हँसकर और तड़का लगाया की, "हमने नहीं तूने ही हमे लोकेट कर लिया।" बाद में डॉ. सहगल भी आ गए थे जिन्हें आमंत्रित किया था।सेकंड लाइन मेनेजर भी लिस्ट देखकर समझ गए की कपिल से गलती हो गयी है। आज ये दोनों सहगल ब्रदर्स दुनिया में नहीं है मगर उनकी यादें है।


ऐसे ही मेरी लिस्ट में डॉ. योगेश जैन लिखा हुआ था (जो मेरे खास डॉक्टर हुआ करते थे) और डॉ. साब आये और उन्होंने Y. B. जैन नाम से एंट्री कर दी। बाद में सेकंड लाइन मेनेजर सेठी साहब ने पूछा की इस नाम का तो कोई डॉक्टर ही तुम्हारी लिस्ट में नहीं है। मैं निरुत्तर हो गया। बाद में पता पड़ा की डॉक्टर साहब अपना पूरा नाम योगेश भूषण जैन लिखते है, जिसका अब्रेवेशन होता है Y. B. जैन।


ऐसे ही जुमेराती में एक सर्जन हुआ करते थे जिनसे बहुत ज्यादा एम.आर. मिलते नहीं थे लेकिन मैं रेगुलर मिलता था। पुराने भोपाल के एक हॉस्पिटल में वो सर्जरी किया करते थे और शाम को जुमेराती में एक क्लिनिक में बैठते थे। उनसे जब भी मिलने जाओ, एक ही बात सबसे पहले करते थे, "अरे यार बहुत दिनों बाद आये।" एम.आर'स भी बहुत चालाक थे। ऐसे वचन बोलने वाले डॉक्टर को अपनी लिस्ट से ही उड़ा देते थे या जॉइंट वर्किंग (मैनेजर के साथ वर्किंग) के दौरान मैनेजर को उससे मिलवाते ही नहीं थे। लेकिन वो डॉक्टर मेरा एक प्रोडक्ट sparfloxacin बहुत जबदस्त लिखने लगे थे।


फार्मास्यूटिकल लाइन में आप कोई भी बात कर लो, चाहे चाँद, सितारे, नदी, नाले, पहाड़ की कोई भी बात कर लो लेकिन अगर मैनेजर के सामने किसी डॉक्टर ने एम.आर.से बोल दिया की, "बहुत दिनों बाद मिल रहे हो,” तो उसकी नौकरी पर तलवार लटक जाती है और गिर भी जाती है। कुछ समझदार डॉक्टर्स ये बात समझते भी थे। दूध का धुला तो कोई नहीं मगर जो पकड़ा गया वही चोर, यही सिद्धान्त फार्मास्यूटिकल में लागू होता है।


धंधा बढ़ाने के लिए कुछ खास डॉक्टर्स को कोर डॉक्टर्स में लेने का फैसला किया गया था जिन्हें एक महीने की बजाय 15-15 दिनों में मिलने की योजना बनाई थी। मैंने जानते-बूझते हुए भी उन्हें कोर डॉक्टर्स में ले लिया था। हुआ वही जिसका डर था। उन्होंने मैनेजर के सामने बोल दिया। कॉल करने के बाद मैनेजर की भ्रकुटिया तन गयी की, ये तो कोर डॉक्टर है और तुम मिल नहीं रहे हो, क्या बात है।" मैंने कहा, "आज से पंद्रह दिन बाद अपन फिर इससे मिलेंगे, तब आप फैसला करना।" पंद्रह दिन बाद हम फिर हाज़िर थे। इस बार मैं उनके चिर-परिचित संवाद बोलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था और उन्होंने मैनेजर को ही बोल दिया, "जनाब, बहुत दिनों बाद मिल रहे हो।" मैनेजर सावरिया हतप्रभ डॉ. का मुँह देखते रह गए की, "अरे सर, अभी पंद्रह दिन पहले ही तो हम मिले थे, आप कैसे भूल सकते हो।"


हम दोनों को हँसी आ गयी। फिर मैनेजर ने समझाया की, "सर, हमारी एक साईकल होती है, उस साईकल में ही हम डॉक्टर्स से मिल सकते है, इंटीरियर्स भी करने पड़ते है।” अगर वो ये संवाद नहीं बोलते तो मैं मैनेजर की शंका के घेरे में आ जाता मगर मुझे पूर्ण विश्वास था की आदत के मुताबिक वो ज़रूर बोलेंगे।

अब यह तो वही बात हो गयी की भौंकने वाले कुत्ते काटते नहीं है, ये बात तो किताबों में लिखी हुई है मगर अफसोस वो किताब कुत्ते ने तो नहीं पढ़ी।


उसकी भी क्या गलती, किसी फार्मास्यूटिकल ने डॉक्टर को थोड़ी बताया की हम एक महीने में मिलेंगे।ये बात तो सिर्फ एम्प्लोयी को बताई है। जय हो। डॉक्टर्स दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं।


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