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उम्मीदों का पतझड़

उम्मीदों का पतझड़

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अवनि माँ बाप की लाडली संतान थी। दो भाइयों में अवनि सबसे छोटी होने के कारण अवनि का लालन पालन बड़े ही लाड़ प्यार से हुआ था। दोनो भाई छोटी अवनि पर जान छिड़कते थे। अवनि के पिताजी सेठ मगनलाल की राजनीति में गहरी पैठ थी।

माँ शोभना देवी पेशे से नामचीन वकील थी।

राजनीति और वकालत साथ साथ हाथ पकड़े चल नहीं दौड़ रही थी। घर में पैसों की कमी नहीं थी, घराने का रुतबा, इज्जत,शोहरत, शानो शौकत देखते ही बनती थी। आवभगत के लिए नौकर चाकर हाथ बांधे चौबीसों घंटे तैनात रहते थे। माँ बाप और दोनों भाइयों के लाड़ ने अवनि को मगरूर ,हठी और जिद्दी बना दिया था। माँ के ध्यान में यह बात आयी थी लेकिन बेटी अभी छोटी है सीख जाएगी यह सोचकर बात आयी गयी हो गयी। बे रोकटोक अवनि का चंचल मन बेक़ाबू हो रहा था।

छोटी अवनि धीरे धीरे उम्र के यौवन की दहलीज पर खड़ी हो गयी थी। उम्र के इस पड़ाव पर अवनि हमेशा दोस्तों के साथ घिरी रहती, समय का उसे कभी ध्यान ना रहता, माँ हमेशा की तरह चिंताग्रस्त, मन मसोस कर रह जाती, जवान लड़की का यूँ आधी आधी रात तक बाहर रहना उसे हजम नहीं होता था, होता भी कैसे ,समाज का ढाँचा ही कुछ ऐसा है, चाहे हम कितना भी आधुनिक हो जायें लड़कियों का देर रात बाहर रहना किसी को भी सुहाता नहीं। पेशे से वकील होने के कारण शोभना देवी ऐसे कई किस्सो से वाक़िफ़ थी, जहाँ सिर्फ लड़की होने के कारण होनेवाली शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना, परेशानी, अन्याय, अत्याचार, हिंसा, उत्पीड़न से गुजरना मामूली सी बात थी।

वैसे तो अवनि के माँ बाप विशाल हृदय और आधुनिक विचार के थे, दोस्तों से बेझिझक मिलने, पार्टियों में जाने से कोई गुरेज नहीं था। सेठ मगनलाल का परिवार स्वर्ण जाती का होने के बावजूद घर का वातावरण न्याय और समानता के आधार पर खड़ा था, जहाँ छुआ छूत या जाति के आधार का कोई भी पक्षधर नहीं था। अवनि के बड़े भाई ने भी छोटी जाती की कन्या से विवाह किया था जिसे पिता सेठ मगनलाल और माँ शोभना ने बिना कोई वाद विवाद से स्वीकृत कर लिया था। इस बात से अवनि के मन में माता पिता के प्रति आदर भाव और इज्ज़त और ही बढ़ गयी थी ।

देखते देखते अवनि स्नातक के पहले वर्ष में पहुंच गयी। अवनि की कक्षा में एक लड़का आनंद विलक्षण प्रतिभा का धनी था, पढ़ाई में अव्वल रहता था, मिलनसार स्वभाव के कारण सहपाठियों में वह सबका चहेता था । देखने में आनंद स्मार्ट, गोरा चिट्टा, सुंदर नाक नाक नक्श वाला, जिसे देखकर कोई भी दो मिनट के लिए अपने होश गवाँ दे, लड़कों में यह नस्ल बहुत ही कम देखने मिलती। कॉलेज के गैदरिंग में उनके क्लास का एक इवेंट था जिसमे अवनि, आंनद और अन्य कलीग नृत्य प्रस्तुत करने वाले थे।

इस इवेंट के बहाने अवनि आनंद और दोस्तों की रिहर्सल चलती थी, साथ -साथ खाना, उठना बैठना, डान्स करना, हँसी मज़ाक, फुलझड़ियों से चुटकुलों से वक़्त कैसे उड़ सा जाता खबर ना होती। अवनि को आनंद का स्वभाव भा -सा गया, आनंद सिर्फ पढ़ाई मे ही अव्वल नहीं किन्तु एक्सट्रा करिकुलर एक्टिविटी में भी आगे था। उसका मजाकिया किन्तु केयरिंग टशन अवनि का वीक पॉइंट बन गया। रफ्ता रफ्ता अवनि आनंद से काफी प्रभावित हो गई और उसकी ओर आकर्षित होने लगी, आंनद की सादगी ने जैसे तो अवनि का मन ही मोह लिया, जाने अनजाने में अवनि,आनंद को खबर किये बगैर दिल ही दिल में चाहने लगी और बिना सोचे समझे उसे दिल दे बैठी, उसने यह तक जानने की कोशिश नहीं कि क्या आनंद भी उसके लिए वही खयाल रखता है। प्यार का अंकुर अवनि के दिल की कोमल शाख पर उग चुका था । यह उम्र का तकाजा था या पहले प्यार की झलक अवनि कुछ समझ न पायी। यह चढ़ती उम्र का प्राकृतिक प्रेम था। वैसे प्रेम का यह ढाई आखर सभी की जिंदगी में कभी ना कभी दस्तक तो देता हैं फर्क सिर्फ इतना है कि किसी के जीवन को गुलजार कर जाता है और किसी के जीवन को छूकर निकल जाता है। सबके लिए इसके मायने अलग होते है, प्रेम किसी के लिए इबादत, किसी के लिए बंधन, किसी के लिए जिंदगी, किसी के लिए शबनम, किसी के लिये सिर्फ आकर्षण । अवनि का हाल भी कुछ ऐसा ही था, वह मंद मंद झोंके की तरह हवाओँ में इत्र घोलती रहती, उसकी हँसी मौसम को ख़ुशगवार कर देती, उसकी झलक मात्र से बगियों में फूल महक उठते ।अँगड़ाई लेती अवनि संसार की एकमात्र हसीन ,कमसिन,खूबसूरत, नादान, मासूम, नाज़ुक, आफरीन लड़की जो आनंद के खयालों में हमेशा खोयी-खोयी रहती, पागलों की तरह हसंती , स्वप्नलोक मे भ्रमण करती, डालियों संग झूलती, हर वक्त हिचकोले खाती हुई सात समंदर पार मन के साथ प्यार में दीवानी हो गयी थी अवनि। अवनि को आंनद के सिवाय कुछ भी नहीं सूझता था ।

माँ जवान बेटी की हरकतें समझ तो रही थीं पर यकायक पूछने में हिचक रही थी, माँ शोभना को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, वह मासूम बेटी की ख़ुशी के आगे रोड़ा नहीं बनना चाहती थी, लेकिन पति के कठोर स्वभाव से भी अच्छी तरह से वाकिफ़ थी ।

एक दिन माँ ने कुछ सोच समझ कर कोर्ट से ही फोन करके अवनि को मॉल में बुला लिया, वैसे तो आज अवनि का जन्मदिन था और जश्न का बहाना भी। माँ शोभनादेवी शॉपिंग के बहाने बेटी के दिल का हाल जानना चाहती थी । माँ-बेटी ने जी भरकर खरीददारी का लुत्फ लिया, अवनि को उसकी मनपसंद की चीज़े खरीदने मे किसी भी तरह की कंजूसी नहीं की गयी,और दोनों लंच करने के लिए होटल के तरफ बढ़े। खाना खाते समय माँ ने नोटिस किया अवनि का ध्यान खाने में ना होकर कहीं औऱ है, शोभना देवी को यह बात बहुत ही खटक गयी, जवान बेटी का यूं चुप चुप रहना जब हद से पार गुजर गया तब माँ ने अवनि से पूछा, बेटा अवनि, क्या बात है, कुछ दिनों से मैं देख रही हूँ तुम्हारा ध्यान कहीं नहीं हैं, ना घर मे, ना पढ़ाई में, दोस्तों से भी आजकल ज्यादा नहीं मिलती हो, अकेले रहना पसंद करती हो, कुछ बताओगी अपनी माँ को, माँ नहीं दोस्त समझकर।

माँ की बातें सुनकर अवनि को झटका सा लगा, वह आसमान से सीधा धरती पर आयी, पर माँ की प्यार भरी नजरों ने अवनि को दिलासा मिला, अवनि भी माँ को सब कुछ बताने के लिए उत्सुक थी जो उसके मन में था । प्यार में जलथल अवनि

बूँद- बूँद हल्की हो रही थी, प्यार की दीवानी आज नदी बनकर बह रही थी। अवनि को यूं लगा जैसे जन्मदिन पर माँ ने बहुत बड़ी सौगात से उसे नवाजा हो। माँ भी बेरोकटोक सबकुछ सुन रही थी पर चुप रही शायद यही बेहतर था, आज के दिन के लिए। जन्मदिन का ज़श्न हुआ और जमाना बेखबर, बेखौफ सो गया सिवाए अवनि के।

अवनि की आँखों से नींद बेदखल हो चुकी थी, उसके सपने और ख़्वाब आनंद कि भेट चढ़ चुके थे। उसे इंतजार था माँ के फैसले का ।

पर माँ तो माँ होती हैं, बेटी के सपने कैसे टूटते बिखेरते देख सकती थी, जवान बेटी के मासूम सपनों को तिलांजलि देना उसके बस मे नहीं था, क्योंकि अवनि के सपनों को चंद दिनों की मोहलत मिली थी। कठोर पिता को अपने लाडली की डोली कम रसूखदार लोगों के घर भेजना नागवार गुजरा, सेठ मगनलाल के लिए बुद्धिमत्ता की कोई कद्र नहीं थी, धन , दौलत और पैसा ही सबकुछ था।

सेठ मगनलाल को सारा माजरा समझते ही उन्होंने अवनि की सारी गतिविधियों पर पाबंदी सी लगा दी, अवनि का रोते बिलखते बुरा हाल था , देखा जाये तो अवनि के पापा को भी बुरा लग रहा था, अपनी प्यारी सी बिटिया का हाल देखकर, लेकिन संतान के प्यार के आगे समाज में झूठी शानो शौकत, दबंगई की ज्यादा अहमियत थी । सेठ मगनलाल के नाम पर धब्बा वह किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं कर सकते थे, उन्हें मरना गवारा था पर बेटी का प्यार नहीं।

उनका मानना था शादी ब्याह के रिश्ते बराबरी वालों में ही अच्छे लगते हैं।

उन्होंने बिना सोचे समझे अवनि को जबरदस्ती दिल्ली बुआ के घर भेज दिया,

और अवनि का दाखिला भी जानेमाने कॉलेज में कर दिया। धीरे धीरे चार साल बीत गये। सेठ मगनलाल इस मुगालते में रहे कि नये वातावरण में ढलकर अवनि में बदलाव आया होगा लेकिन पापा का यह खयाली पुलाव खयालों की तरह झूठा निकला। नये परिवेश में जाकर अवनि की दीवानगी और बढ़ गयी थी। वैसे तो दीवानगी की कोई हद नहीं होती, वह होती है बेहद खूबसूरत, हसीन, जवाँ । गुजरते वक़्त के साथ दीवानगी दिन दो गुनी रात चौगुनी बढ़ती गयी। इधर खाना- पीना अवनि का छूट सा गया था, सुनहरी काया पीली पड़ने लगी थी, सेठ मगनलाल का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, बेटी की हालत देखकर, उन्होंने ख़ूब समझाने का प्रयास किया पर सब बेकार। अंत में तंग आकर उन्होंने अवनि की शादी ऊँचे खानदान में कर ही दी, माँ शोभना देवी और भाइयों के विरोध का उनपर कोई असर ना हुआ। अवनि के सपने चकनाचूर हो गये, साथ मे माता पिता का आदर सम्मान भी मटमैला होता रहा ।

जिस माँ बाप को बेटी के ख़ुशियों की चिंता नहीं उनके लिए कैसा रुदन, कैसी तड़प, कैसा विरह... कैसा विलाप...मछली कि तरह तड़पती, बिलखती, हृदयविदारक ,जिंदगी को कोसती हुई अवनि ने पिछे मुड़कर नहीं देखा और ससुराल पहुँच गयी। अवनि सोचती रही पापा ने उसके साथ इतना भद्दा मज़ाक क्यों किया, आनंद में क्या कमी हो सकती थी, क्या पापा ने यह जानने की भी कोशिश नहीं की होगी की आंनद कौन और कैसा लड़का है ?? काफी छानबीन के बाद अवनि को जवाब मिल ही गया, आनंद छोटी बिरादरी का होनहार लड़का था, जो पापा को बिलकुल ही रास नहीं आया। आज उसका पहला प्यार जातीपाती के हवन में भस्म हो चुका था, लड़का और लड़कियों मे कितना और कैसा फ़र्क किया जाता है अवनि जान चुकी थी। समाज की कथनी और करनी मे कितना अंतर होता है, चाहे फिर वह सुसंकृत, पढ़े लिखे माँ-बाप ही क्यों ना हो। आज प्यार के मुकाबले झूठी शान, इज्जत , दिखावे ने बाजी मार ली थी। नव विवाहिता दिल मे गुबार लिए अपने पति कि दहलीज चढ़ने के लिए तैयार थी। मजबूरी लाचारी का दूसरा नाम है, लड़कियाँ माँ-बाप के हाथों का खिलौना भर हैं, जिन्हें गुड़ियों सा सजा संवारा जाता है ताकि बेहतरीन तरीके से प्रदर्शित कर सके और अपनी जिम्मेदारियों से मुक्ति पा सके ।

अवनि भाई बहन के प्रति किये गये भेदभाव से घायल थी। चाहे कोई कितना ही प्रेम प्रदर्शित करे, लड़कियों का दर्जा निम्न स्तर पर ही रहता हैं आज वह जान चुकी थीं ।

किस्मत अच्छी निकली सो पति भी नेकदिल, भावुक, संवेदनशील ,पत्नी से बेपनाह मुहब्बत करने वाला प्राप्त हुआ ।

पर अवनि को कहाँ परवाह थी। वह तो उसके सपनों के राजकुमार के साथ पहले ही मन ही मन में बंध चुकी थी, उसीके खयालों में खोई रहती, उसी के साथ भविष्य के सपने बुनती, क्योंकि आनंद ही उसका पहला प्यार था, जब कि आनंद को इसकी भनक तक नहीं थी, काश!! ऐसा कुछ होता, आनंद भी इस प्यार भरी शरारती साज़िश में शामिल होता पर ऐसा कुछ नहीं था, आनंद अवनि के एक तरफा प्यार से अनजान था, उसे पता ही नहीं चला कब वह अवनि के एक तरफा प्यार का शिकार हो गया। जब आनंद को अवनि की किसी दोस्त से उसकी दर्द भरी कहानी सुनाई तब आनंद को भी बहुत आश्चर्य हुआ, हैरत हुई और अच्छा भी लगा कि अवनि जैसी लड़की उसे इस तरह बेइंतहा प्यार कर सकती है। उसे याद आ रहा था अवनि के दीवाने कॉलेज में बहुतेरे थे पर अवनि किसी को भी घास नहीं डालती थी, उसकी खूबसूरती औऱ रईसी के चर्चे आम थे। हर कोई अवनि से दोस्ती करना चाहता था फिर वह लड़का हो या लड़की। उसे लगा जैसे सुनहरी धूप में चाँदनी नहा रही है, उसे खुद पर नाज़ हुआ, और रश्क़ भी। उसे याद आ रहा था हल्का हल्का सा कैसे अमीर घर की परी ने उस ग़रीब को हमसफर के रूप में चुना था, क्या वह इसका हक़दार था ???? आज वह अपनी किस्मत पर इतरा रहा था, और अवनि को मिलने के लिये उसका मन मचल रहा था, उसकी बेकरारी वक़्त के साथ बढ़ रही थी, दिल में अफरातफरी मची हुई थी। कहते हैं ना जहाँ चाह वहाँ राह, आनंद ने अवनि के घर का पता ढूंढ लिया। आनंद मन ही मन सोच रहा था क्यों अवनि ने एक बार भी अपने मन कि बात कहना मुनासिब नहीं समझा । काश!! अवनि एक बार तो कह के देखती तो शायद आज परिस्थिति कुछ और हो सकती थी । किन्तु काश और शायद का वक़्त बीत चुका था, अवनि किसी की पत्नी का दर्जा हासिल कर चुकी थीं, उम्मीदों के पर झड़ चुके थी, पतझड़ का मौसम शुरू हो चुका था। उदासी के आलम में ,अंतर्मन कि आवाज़ ने आनंद को रोक लिया, विचारों की जद्दोजहद और कशमकश ने आनंद के पैरों में बेड़िया डाल दी, अब मिलने से भी क्या मतलब, अवनि के वैवाहिक जीवन में उथल पुथल मचाकर उसे हासिल भी क्या होनेवाला था। अनजान प्यार को अनजान ही बने रहना शायद ज्यादा जरूरी था, और यही वक़्त की जरूरत थी ।

आनंद ने अब की बार दिल की मानी, वह दिमाग से सोचने लगा, क्योंकि दिल से सोचने पर अवनि का प्यार हावी हो जाता था,शायद यही किस्मत और नसीब को मंज़ूर था, दोनो अपने अपने पहले प्यार के बिना ही जिंदगी बिताये, जिसकी खबर न तो प्यार करने वाले थी न ही प्यार पाने वाले को।

हम सबकी जिंदगी होती ही है नदी की तरह , जो सिर्फ आगे बढ़ना जानती है, भूतकाल को भुलाकर वर्तमान में बहती रहती हैं औऱ अनजाने में ही सही भविष्य की राह चुनती रहती है।

आनंद और अवनि इसी नदियों के दो किनारे जैसे थे, जो एक दूसरे को देख तो सकते थे, महसूस कर सकते थे, पर मिलना तकदीर में नहीं लिखा था।

देखते देखते दिन गुजरते गये, बदलते वक्त के साथ कुदरत कि तस्वीर भी बदलती रहती हैं। अवनि और आनंद ने नियति की नियत से समझौता कर लिया, और दिल के किसी कोने मे अपने अपने प्यार की बंदिश बंद करके रख दी। शायद यही सही निर्णय था , कलेजे पर पत्थर रखकर आहत जिंदगी को जिंदा रखना सबके हित में था।


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