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जिन्दगी की जद्दोजहद

जिन्दगी की जद्दोजहद

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बात यह कुछ साल पुरानी है। तभी हम गिरिडीह में रहते थे। अजी रहते क्या थे झक मारते थे।

पूरी तरह से संघर्ष भरा जीवन था हमारा, फिरता रहता था हरदम मारा-मारा। बात कुछ इस प्रकार है।

एक बार कुछ दोस्तों के साथ अपना भी प्रोग्राम फिट हो गया कि हमें भी नौकरी की तलाश शुरु कर देनी चाहिये और आज की परिस्थति से सभी अवगत हैं साहब कि चोकटा कितना भी चिकना हो।

फोक्टा में कोई घास तक नहीं डालता इसलिए रणबांकुरा रण के लिए तैयार था। इस संघर्ष के लिए तैयार होकर ऐसे कि दुल्हा शादी के लिए तैयार हो रहा हो हम सब दोस्त चल पड़े। अजी चले क्या चले बस किसी तरह भाग कर बस पर चढ़े। बस पहुँचने को ही थी राँची कि सबने अपनी एडमिट कार्ड जाँची। भैया अपना तो ई पहला ट्राईल था।

चेहरे पर दिख रहा इसलिए स्माईल था और निकम्मों का तो दो-तीन बार का इस क्षेत्र में मैच हो लिया था। सबने ऐसे अपने एडमिट कार्ड को जाँचा जैसे कि मानो ये कमबख्त लोग ही सीं.आई.डी. वाले डाॅ०सालुन्के हों। सब बस से उतर कर चिल्लाए कि अब की बार हम नौकरी पाए। ऐसे लग रहा था कि मानो सी०आई०डी०ने मर्डर केस शाॅल्व कर दिया हो।।


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