सुख हँढाणी चूड़ियाँ
सुख हँढाणी चूड़ियाँ
समझ में नहीं आ रहा था कैसे बात करूँ डैडी से और क्या कहूँ उनसे कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। दो महीने से यही सोचे जा रही थी मगर कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था।
मम्मी का वो चेहरा मेरे ज़हन/दिमाग़ से निकल ही नहीं पा रहा था। अक्सर मेरी आँखों में आँसू आ जाते थे।