तैयारी
तैयारी
अरे रितु ! आजकल दिखती नहीं हो? कहाँ इतना व्यस्त रहती हो ?
“ तैयारी कर रही हूँ।”
क्या चीज की? कोई डिपार्टमेंटल परीक्षा है क्या?
“अरे नहीं, बहू लाने की तैयारी।”
अरे वाह, बेटा की शादी तय कर ली क्या ? कब कर रही हो, कुछ बताई नहीं।
“नहीं नहीं.. अभी शादी तय नहीं की हूँ। एक दो साल बाद करूँगी। एक दो साल तो लग ही जाएँगे तैयारी में।”
तुम तो पहेली बुझाने लगी। मकान-वकान बना रही हो क्या ?
“ अरे कुछ नहीं।”
तो ?
“आजकल जिससे मिलती हूँ वो ही मेरे स्वभाव, रहन-सहन, खान-पान की बातें कर शिक्षा देने लगता है। कहता है ये पुरानी आदतों को छोड़ो। नए जमाने की लडकियाँ ये सब बर्दास्त नहीं करेंगी। ये रोज-रोज रोटी-चावल खाना, घर में सिलाई कढ़ाई करना, पुराने सामानों को सहेज कर रखना, बात-बात पर शिक्षा देना। अब तुम्हीं बताओ एक दिन में तो ये आदतें छूटेगी नहीं। इन पुरानी आदतों को छोड़ने की कोशिश कर रही हूँ। अरे हाँ, इन बातों में तो दम है। तब तो मुझे भी अब सोचना पड़ेगा। दो तीन साल बाद मुझे भी तो बहू लानी है। अच्छा तुम एक काम क्यों नहीं करती। तुम्हारी तो अभी सास और माँ दोनों हैं। उनसे क्यों नहीं पूछती कि उन्होंने बहू लाने की तैयारी कैसे और क्या की थी। “ मैंने पूछा था। दोनों ही हँस दी और कहा हमने सिर्फ बेटा को योग्य बनाया और तुमलोग अपने आप ही घर में घर के अनुसार ढल गई। तुमलोग कम से कम तीन चार भाई-बहन होते थे। अब तुमलोगों ने नए जमाने से होड़ लेने के लिए एक या दो ही बच्चे लाए और उनपर अति लाढ टपकाए। हमलोग भी बेटा और बेटी दोनों को पढ़ाए और दोनों को ही पढ़ने के साथ-साथ घरेलू काम भी सिखाए। ताकि कभी अकेले रहना पड़े तो किसी को कोई कठिनाई नहीं हो। तुमलोग बच्चों की पढ़ाई को हौआ बना बच्चों के पीछे पर गए। उन्हें कोल्हू के बैल के समान मुँह बांध पढ़ने के लिए जोत दिया। जब देखने और सीखने की उम्र थी तब तो तुमलोगों ने कुछ सिखाया नहीं या ये कहें सीखने नहीं दिया, तो अब फल भोगो।”
तो तुमने निदान क्या ढूंढा?
“ इसलिए तो आजकल मैं आत्मचिंतन ज्यादा करती हूँ।” और वो मुस्कुरा दी।
”