मरम्मत
मरम्मत
"अम्मा ! अम्मा कहाँ हो ? क्या करती रहती हो दिन भर, सुकून से बैठ नहीं सकती क्या ? अम्मा को दरवाज़े के पास खड़े देख कर पवन ने कहा।
"अरे देखता नही दरवाज़े कितना आवाज़ कर रहे हैं ..अब इसको तेल पानी मिलेगा न' तो आवाज़ आनी बन्द हो जाएगी ..वही कर रही हूँ .." अम्मा चश्मे को ठीक करते हुए अपनी अनुभवी आंखों से दरवाज़े के सूखे कब्जे देखती रही।
पवन तिलमिलाते हुए बोला "अरे पहले सुनो अम्मा! तुम्हारी बहू रानी की करतूत ..कल इनके हरदोई वाले जीजा जी का फोन आया था , बोले 'भाई साहब आपस में जो गिले शिकवे हों उसको बात करके सुलझा लीजिए , पत्नी का ज्यादा दिन मायके में रहना पति की इज़्ज़त पर बट्टा है' अब तुम बताओ अम्मा क्या करें, हमारा तो मन ना है उसको ले आने का..हर बार तो खुद ही बोल देती थी ..इस बार अकड़ के बैठी है ! "
अम्मा तेल की शीशी खोलती हुई बोली, "तुम दोनों एक जैसे हो ताव बाज और घोर अकड़ू ..अरे लड़ाई झगड़ा किस मियां बीवी में नही होता..पर लड़ने के बाद एक दूसरे से पहले बोल दोगे, तो लम्बाई एकाधी इंच कम हो जाएगी क्या ? "
"पर अम्मा मुझे गुस्सा इस बात का ज्यादा आ रहा है कि उसने जीजा से क्यों कही, हमारे आपस की बात ? आये बड़े वो हमें समझाने ..की पत्नी मायके में रहे तो हमारी बेइज़्ज़ती है.."
अम्मा ने रुई के फाहे को तेल से भिगो कर कब्जो में निचोड़ दिया ..और पवन तिलमिलाता सा अम्मा की निश्चिंत क्रिया कलाप को देखकर व्यग्र होता रहा कि अम्मा इतनी बेफिक्र क्यों है..उन्हें मेरी परेशानी दिख ही नही रही और गुस्से से अधीर होकर बोला " ये क्या ले के बैठ गयी हो सुबह सुबह ..बाद में कर लेना ये सब ..बोलो न अब क्या करुं मैं ?
अम्मा ने कब्जों में तेल डालने के बाद दरवाज़े को बंद किया फिर दोबारा खोला और पवन की ओर देखती हुई बोली
" देख न ! ये दरवाज़े अभी कितनी आवाज़ कर रहे थे, अब तेल पानी मिल गया अब न करेंगे आवाज़ ! तू भी यही कर ..तुझे बुरा लगा न कि, बहू ने अपने दीदी जीजा से क्यों कही सारी बात ? तो बेटा जब इंसान दुख और गुस्से की मिली जुली स्थिति में होता है न तब सब दिमाग के कल पुर्जे सूख जाते हैं और इन्ही दरवाज़ों के जैसे आवाज़ करते हैं, ढिंढोरा पीटते हैं ..जब तू बहू से बात नहीं करेगा तो वो अपना गुस्सा कहीं तो निकालेगी न ..इसलिए बात कर उससे ..! पति पत्नी को आपस में अहम नहीं लाना चाहिए ..अगर वो तुझे हर बार मनाती है तो इस बार तू झुक जा और उसे मना ले..।
पवन अम्मा के इस जीवन दर्शन से अवाक रह गया सिर खुजाते हुए अपनी ग़लती का एहसास भी करने लगा उसके कदम सही दिशा में बढ़ चले और कानों में अम्मा की बातें गूँज रही थी।
"चरमराते हुए दरवाज़े के सूखे कल पुर्जे की मरम्मत समय समय पर , तेल ग्रीस से करते रहो तो आवाज़ नहीं आती ठीक वैसे ही जब दिलों के कलपुर्जों में विद्रोह की आवाजें आएं तब ,बातोंं की रुई का फाहा बनाकर उसमें प्रेम का तेल डुबो कर संबंधों के कब्जों में आए रूखे पन को तर कर लेना चाहिए !"