रसोई की एक अनोखी रात
रसोई की एक अनोखी रात
रोज की तरह रिमी रात के खाने के बाद रसोई समेट कर और वहां की बत्ती बंद करके अपने कमरे में चली गयी।
रात गहरी हो चुकी थी। पूरे घर में सन्नाटा पसरा था।
इस सन्नाटे में अचानक धीरे-धीरे कुछ खुसर-फुसर की आवाजें आने लगी जिसका केंद्र रसोई घर था।
"अरे ओ टमाटर भईया, तनिक उछलकर बत्ती तो जला दो। मुझे अंधेरे से डर लगता है।" लौकी ने धीमी आवाज़ में कहा।
"चल हट, मैंने कल ही बत्ती जलाई थी।" टमाटर ने अकड़ते हुए जवाब दिया।
"अरी लौकी बहन, तू तो इंसानों को ढ़ेर सारी ताकत देने के लिए मशहूर है। फिर भी तुझे डर लग रहा है?" गोभी ने हँसते हुए कहा।
उसकी हँसी में आलू, प्याज, टमाटर, बैंगन, भिंडी भी शामिल हो गए।
इस तरह अपना मज़ाक बनते हुए देखकर लौकी ने मुँह बिचकाते हुए कहा "हाँ-हाँ उड़ा लो सब मेरा मज़ाक। अभी जब अंधेरे का फायदा उठाकर कोई बदमाश चूहा आकर तुम सबको छेड़ेगा तब मेरे पास रोने मत आना।"
"उई माँ, मुझे तो चूहे से बहुत डर लगता है। बैंगन बाबू तुम बत्ती के करीब हो, जरा हौले से बटन दबा दो ना।" भिंडी ने इठलाकर कहा।
बैंगन ने उसे झिड़कते हुए कहा "चल हट परे। तुझे पता भी है मैं सब्जियों का राजा हूँ। और फिर तेरी-मेरी जोड़ी जब कभी नहीं जमी तो मेरे आगे तेरी बात कैसे जमेगी।"
"ओफ्फ हो, तुम सब भी ना। बस मौका मिला नहीं कि बहस शुरू।" मूली दीदी ने कहा और अपने हरे-भरे पत्तों के आँचल को लहराती हुई बत्ती जलाने चल पड़ी।
रोशनी होते ही लौकी और भिंडी ने मूली को धन्यवाद कहा और बाकी सब्जियों की तरफ देखकर मुँह बिचका दिया।
"ये मूली भी ना। अपने सफ़ेद रंग की आड़ में बड़ी शांतिदूत बनी फिरती है।"आलू ने गुस्से से कहा।
"जबकि वातावरण में सबसे ज्यादा अशांति इसके परांठे ही फैलाते है।" टमाटर ने गाजर के हाथ पर ताली मारते हुए कहा।
उसकी इस बात पर सभी सब्जियां ठठाकर हँस पड़ी।
मूली ने चिढ़कर कहा "हाँ-हाँ उड़ा लो सब मिलके मेरा मज़ाक। मेरे गुणों से और मेरी प्रसिद्धि से जलते हो तुम सब।"
अभी सब्जियों की बहस और मस्ती-मज़ाक चल ही रही थी कि बर्तनों के खेमे में हलचल हुई।
"किस बदमाश ने बत्ती जलाई? अभी-अभी तो काम से फुरसत पाकर आराम कर रहा था मैं?" तवा गुर्राया।
कड़ाही ने मूली की तरफ इशारा करते हुए कहा "तवा भाई, इस बदमाश मूली ने अपने साथियों के उकसाने पर ये हरकत की है।"
"अरे दादा, आप भी किस जलकुकड़ी की बातों में आ रहे है। खुद तो जल-जलकर काली हो गयी है फिर भी सबके बीच आग लगाती रहती है।" कुकर ने कहते हुए बुरा सा मुँह बनाया।
कुकर की बात पर कड़ाही गुस्से से पैर पटकते हुए बोली "हाँ-हाँ इसलिए तू दिन-रात इस कलूटी को देखकर सिटी मारता है। आवारा कहीं का।"
"तुम सब ना आपस में ही लड़ते रहो, जैसे इंसान लड़ते रहते है धर्म और जाति के नाम पर, न्याय के लिए नहीं लड़ते।" पतीले ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।
उसकी बात सुनकर बाकी बर्तनों ने भी हामी भरी और कहा "हाँ-हाँ पतीले भाई की बात सही है। हमें इंसान नहीं बनना। चलो एकजुट होकर दुश्मनों से लड़े।" तवा उठकर खड़ा हो गया और सभी बर्तनों को साथ लेकर सब्जियों के पास पहुँच गया।
बर्तनों का कहना था वो सारा दिन काम करते है, इसलिए अब बत्ती बुझाकर आराम करना है उन्हें।
और सब्जियों का कहना था उन्हें अँधेरे में चूहे सताते है इसलिए बत्ती तो जलती ही रहेगी।
बर्तनों की तरफ से जवाब देता हुआ पतीला बोला "याद रखो ओ सब्जियों, हमारी सहायता से ही तुम्हें वो रंग-रूप और स्वाद मिलता है जिन पर तुम इतराती फिरती हो।"
"अच्छा, अगर हम पकने के लिए मौजूद ही नहीं होंगे तो तुम्हारा इस्तेमाल करेगा कौन? बोलो-बोलो।" सब्जियों की तरफ से पालक ने कहा।
दोनों तरफ से सभी बारी-बारी से अपने तर्क रखते हुए स्वयं के खेमे को बड़ा साबित करने में लगे हुए थे की तभी उन सबके कानों में रोने की आवाज़ पहुँची।
सबने आवाज़ की दिशा में देखा तो पाया एक कोने में पड़े हुए जूठे बर्तनों के ढ़ेर से ये आवाज़ आ रही थी।
सभी बर्तन और सब्जियां हैरान-परेशान से उन बर्तनों का पास पहुँचे और पूछने लगे "क्या हुआ आप सबको? आप सब यूँ रो क्यों रहे है?"
"देखो ना भाइयों-बहनों, इंसानों के कामचोरी की कोई हद ही नहीं है। रात भर हमें इस गंदगी में सड़ने के लिए छोड़ देते है। कितनी बदबू आती है हमसे। जब तक मालकिन की कामवाली नहीं आती हम ऐसे ही पड़े रहेंगे।" उन गंदे बर्तनों ने कहा।
उनकी बात सुनकर कुछ सब्जियां बोली "हाँ बहन, हमें जब शाम में बाजार से घर लाया गया तब हम बड़ी खुश थी कि अब हमारी साफ-सफाई होगी और धूल-मिट्टी से आज़ादी मिलेगी, लेकिन हमें भी कामवाली के इंतजार में छोड़ दिया गया है।"
लेकिन उनमें से कुछ बर्तन और सब्जियां अपनी मालकिन का पक्ष लेते हुए बोलने लगे "अरे मालकिन बेचारी का भी तो सोचो। पहले की हमारी मालकिनें बस घर में रहती थी। पर इस बेचारी को तो घर भी देखना है बाहर दफ्तर भी। प्रतियोगिता के इस दौर में दोनों पति-पत्नी का कमाना भी तो जरूरी है वरना हमारी खरीददारी होगी कैसे? इसलिए कामवाली पर निर्भरता मजबूरी है बेचारी की।"
"हाँ भईया, ये भी सही है।" सब एक स्वर में बोले।
"अच्छा पर मेरी एक बात सुनो सब लोग।" लौकी ने हाथ उठाते हुए बोला।
"पहले के मुकाबले कितने बढ़िया-बढ़िया बर्तन हमारा साथ देने के लिए यहां मौजूद है। लेकिन क्या अब हम सबमें वो पहले वाला स्वाद रह गया है?"
"नहीं, बिल्कुल नहीं।" सभी लौकी से सहमत थे।
"ये सब इन इंसानों की कामचोरी का ही नतीजा है।" एक कोने में उपेक्षित पड़े हुए सिल-लोढ़े ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।
"बटन दबाओ और मसाला तैयार। गर्मी से बचने के लिए, सब्जियों-फलों में ढ़ेर सारी दवा डाल दो खूबसूरत कच्ची सब्जियां-फल वक्त पर खेतों में तैयार। गर्मी से बचने के लिए पेड़ नहीं लगाएंगे एसी का बटन दबाएंगे। जरा सी दूर जाने के लिए भी सायकिल नहीं चलायेंगे, कार और मोटरसाइकिल की धौंस जमायेंगे। फिर कहेंगे प्रदूषण बढ़ रहा है। मटके का पानी नहीं सबको फ्रिज का ही पानी चाहिए और रोना ये की ओजोन परत की हालत बिगड़ रही है।" सबने बारी-बारी से अपनी बातें कही और जी भरके मन की भड़ास निकाली।
हँसी-मज़ाक की बातों के अचानक गंभीर रुख लेने से कुछ सब्जियां और बर्तन चिंतित हो उठे।
माहौल को फिर से खुशनुमा बनाने के लिए टमाटर ने उछलकर गंदे बर्तनों के ढ़ेर के पास मौजूद नल को खोल दिया और कहा "लो दोस्तों, अब तुम्हारी सारी गंदगी बह जाएगी और बदबू नहीं आएगी।"
जब एक बड़े कटोरेनुमा बर्तन में कुछ साफ पानी भर गया तब गंदी सब्जियों को सबने मिलकर एक-एक करके उसमें डुबकी लगा दी और हँसने लगे।
"अपनी खुशी अपने हाथ,
आओ मिलकर गायें ये गान।
इंसानों को मुबारक हो तनाव वाला जीवन,
हम रहें हँसते-हँसाते मिल-जुलकर।"
मटर के इस सुरीले गीत को सुनकर कुकर ने सीटी बजायी। और इस बार इस सीटी पर कड़ाही भी मुस्कुराई।
आखिर मिल-जुलकर हुआ ये फैसला आधी रात तक रहेगी बत्ती जली, फिर मालकिन के जगने के पहले दिया जाएगा उसे बुझा।
और जो आया कोई चूहा शैतान, मिल-जुलकर कर दिया जायेगा उसे ही परेशान।
सब्जियों और बर्तनों की बातों में कब सुबह हो गयी किसी को पता ही नहीं चला।
रिमी को अचानक लगा जैसे रसोई में कुछ हलचल हो रही है। लेकिन उसके वहाँ पहुँचने से पहले ही सभी बर्तन और सब्जियां बत्ती बंद करके अपनी-अपनी जगह ले चुके थे।
जूठे बर्तनों में पानी और धुली हुई सब्जियों को देखकर रिमी हैरान हुई। फिर उसने सोचा शायद उसके पतिदेव ने ये किया होगा ताकि सुबह काम थोड़ी जल्दी निपट जाये और मुस्कुराती हुई वापस कमरे में चली गयी।
उसके जाते ही सभी बर्तन और सब्जियां एक-दूसरे की तरफ देखकर खिलखिला पड़े।