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पूर्णविराम

पूर्णविराम

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उसे शेरो शायरी सुनने का बहुत शौक था और मुझे लिखने का। मैं हर दिन नई- नई शायरी और कविताएं लिखती और फिर उसे सुनाती। हम किसी रेस्त्राँ में बैठ काफी पीते तो मैं अपना मोबाइल खोल कर उसे अपनी लिखी शायरी सुनाने लगती।

एक रोज़ वो मुझसे बोला, "मुझे तुम्हारी शायरी बहुत पसंद है सुषमा। एक काम करो, मेरे नंबर पर सेंड कर दो। मैं बाद ने आराम से पढूंगा। अभी तुम मुझसे बात करो।"

मैंने भी मोबाइल बंद किया और उस से बातें करने में उलझ गई।

उसदिन से मैं प्रतिदिन उसे नई- नई कविताएं और शायरी भेजती, जो मैं उस के लिए लिखती थी।

मैं जानने को उत्सुक रहती कि उसे वो कैसी लगी, मुझे इस बात का ना तो कोई जवाब आता, ना ही मिलने पर वो बताता।

एक रोज़ मैंने पूछ ही लिया, "कल जो मैंने कविता भेजी थी वो कैसी लगी?"

कहने लगा, "मुझे टाइम नहीं मिला। आज ज़रूर पढ़कर बताऊँगा।"

उस दिन मैंने मैसेज को एक अल्पविराम दिया, कुछ ना भेजा और शाम तक जवाब का इंतजार किया। अगले दिन जब हम मिले तो मैंने फिर से पूछा, "मेरी कविता कैसी थी?"

अचानक उस के मुँह से निकल गया, "बहुत अच्छी थी, मेरे फ्रेंडस को बहुत अच्छी लगी। कहने लगे यार तू बहुत अच्छा लिखता है।"

"उन्होंने कहाँ, कैसे पढ़ी?"

"उनके मोबाइल पर....ऐसे क्या देख रही हो...? मैंने भेजी थी..."

सुनते ही मैं चुप हो गई...

कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि जो शायरी मैं उसके लिए लिखकर भेजती थी। वही शायरी वो अपनी दूसरी गर्ल फ्रेंड को भेजकर कहता, "मैंने तुम्हारे लिए लिखी है..."

अगले दिन जिस- जिससे उसकी नजदीकियाँ थीं मैंने उनपर नजर रखना शुरू कर दिया।

मेरी ही एक सहेली के मोबाइल में उसकी भेजी हुई मेरी कविता दिखी...।

अपने भविष्य की ख़ातिर मैंने पूरे सिलसिले को ही पूर्णविराम दे दिया....।


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