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आत्मशक्ति

आत्मशक्ति

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वो अधेड़ उम्र की औरत जब खाना देने आई तो इला ने फिर प्रार्थना की।

"प्लीज़ मुझे जाने दो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ मुझे इस नर्क में मत ढकेलो।"

पिछले तीन दिनों से दोनों वक्त वह औरत जब खाना देने आती थी तो इला यही विनती करती थी। लेकिन वह औरत बिना कोई जवाब दिए चली जाती थी। पर इस बार चुपचाप जाने की जगह वह झल्ला कर बोली-

"क्या प्लीज़...प्लीज़...कर रही है। एक बात दिमाग में बैठा ले अब तू कभी मुक्त नहीं होने वाली। अब तो इन लोगों की सेवा करना ही तेरी ज़िंदगी है। इसलिए रोना छोड़ कर इस सच को मान ले।"

उसकी बात सुन कर इला सहम गई। क्या सचमुच यही उसकी नियति है। तो क्या एयरफोर्स ज्वाइन करने का उसका पूरा नहीं होगा। वह रोने लगी।

बहुत देर रोने के बाद वह चुप हो गई, खाने की थाली वैसे ही पड़ी थी। खाने की उसकी इच्छा समाप्त हो चुकी थी। सेना में मेजर उसके पिता के शहीद होने के बाद उसकी माँ ने उसे सदा यही याद दिलाया था कि उसे पिता की इच्छा पूरी करना है। वह चाहते थे कि उनकी बेटी बहादुर बने। कभी किसी को कमज़ोर ना समझे।

इस बात से प्रेरित होने के बाद उसने एयरफोर्स ज्वाइन करने का सपना देखा था पर अचानक यह हो गया। वह कॉलेज से लौट रही थी जब कुछ लोग उसे अगवा कर यहाँ ले आए। पिछली दो रात से नशे में धुत्त दो वहशी उसके जिस्म से खेल रहे थे। वह अपने आप को बहुत लाचार महसूस कर रही थी।

अपनी बेबसी से घबरा कर वह रोने लगी। रोते हुए वह अपने पिता को याद कर रही थी। तभी उसे लगा जैसे पिता उसके सामने हों। लेकिन प्यार से उसे गले लगाने की जगह वह उसे डाँटने लगे।

"क्यों रो रही हो ? बहादुर वह होता है जो हालात से लड़े ना कि हार कर बैठ जाए। बचपन में मैं तुम्हें बहादुरी के किस्से सुनाता था ताकि तुम सीख सको। अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ती है, आत्मबल से बड़ी कोई चीज़ नहीं। हार कर मत बैठो, उठ कर लड़ो।"

अचानक इला के पिता गायब हो गए लेकिन इला समझ चुकी थी पास ना होते हुए भी उसके पिता उसे लड़ने को तैयार कर रहे थे। उसने थाली उठाई और खाने लगी। लड़ाई के लिए शरीर को तैयार करना था।

इला जानती थी कि दोनों वहशी केवल रात में आते हैं। दिन भर वह औरत ही रहती है। उसने ज़ोर जोर से कराहने का नाटक शुरू किया। अचानक क्या हो गया देखने के लिए जैसे ही वह औरत भीतर आई इला ने पूरी ताकत से थाली उसके सर पर मारी। वह बिलबिला गई। उसके बाद इला ने लात से ज़ोरदार प्रहार कर उसे बेहाल कर दिया। मौका देखकर वह बाहर भागी।

खुले में आकर उसने आसमान को देखा, जैसे कह रही हो। एक दिन तुम्हारी ऊँचाई भी छोटी पड़ जाएगी।

निश्चय के साथ वह पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ गई।


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