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आख़िरी कॉलेज ट्रिप (भाग-1)

आख़िरी कॉलेज ट्रिप (भाग-1)

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मैं ए.के. वर्धन, आज आपको अपनी लाइफ की वो स्टोरी बताने जा रहा हूँ, जिसने मुझे सिखाया कि सपनों की दुनिया और असली जिंदगी में क्या अंतर है। ये स्टोरी है, मेरी और मेरे ही कॉलेज की एक लड़की की। वो लड़की मुझसे एक साल सीनियर थी। मुझसे थोड़ी लम्बी भी लगती थी अपनी ऊँची सैंडल्स में। मेरा उसके साथ होने का कोई चांस ही नहीं था। लेकिन हमारे कॉलेज के आखिरी दिन एक ऐसी घटना हुई, जिसने सब कुछ बदल दिया। ये स्टोरी एक सच्ची घटना से जुड़ी है।

मेरा जन्म इंडिया में हुआ। मेरे पापा, एक पॉवर प्लांट में इंजीनियर थे। जब मैं 13 साल का था तब मेरे पापा को यूनाइटेड स्टेट में एक पावर प्लांट में जॉब मिल गई। ये एक न्यूक्लियर पॉवर प्लांट था, ये कैलिफोर्निया के सेन-डिएगो काउंटी में था। लगभग 2 साल बाद पापा को वहाँ फेमिली के साथ रहने की परमिशन मिल गई।

जब पापा ने घर में ये बात बताई तो मम्मी बहुत खुश हो गई। ख़ुशी मुझे भी बहुत हुई, लेकिन मेरे दोस्त दूर हों जाएंगे उसका दुःख भी था। इसके अलावा मुझे एक डर भी था, मैं बचपन से ही इंग्लिश में बहुत कमजोर था। सच कहूँ तो मैं हर विषय में कमजोर था चाहे वो इंग्लिश हो, मैथ्स हो या साइंस। मुझमें मेरे पापा जैसा दिमाग नहीं था। इसलिए मेरे मन में बस एक ही बात थी कि वहाँ के स्कूल में क्या होगा।

वैसे, टीनेज के बाद भी मुझे वीडियो गेम्स खेलना, कार्टून मूवीज देखना, और गाने सुनना पसंद था। मैं 15 साल की उम्र में मम्मी पापा के साथ कैलिफोर्निया आ गया। मैं जब पहली बार सेन-डियागो आया तो ये मुझे स्वर्ग जैसा लगा। यहाँ के समुद्र किनारे का नज़ारा तो बहुत ही सुंदर था। वो जगह, वहाँ का वातावरण और वहाँ के लोग बहुत ही अच्छे थे। मुझे वो जगह अच्छी लगने लगी थी और समय के साथ मैं वहाँ की सभ्यता में ढलता गया। मेरी कई आदते भी समय के साथ धीरे-धीरे बदल गयी। लेकिन एक आदत नहीं बदली। वो था हिंदी गाने सुनना। मेरे दिन की शुरुआत गाने सुनकर होती थी और गाने सुने बगैर नींद भी नहीं आती थी। मैं ज्यादातर हिंदी गाने ही सुनता था, लेकिन कुछ इंग्लिश गाने भी मुझे बहुत पसंद थे। मैं अपना अधिकतर समय गाने सुनकर ही बिताया करता था। इसके पीछे एक कारण भी था। वहाँ के लड़कों और स्कूल के स्टूडेंट्स के साथ घुलने-मिलने में मुझे थोड़ी समस्या हुई। क्योंकि मैं वहाँ के लिए नया था और इंग्लिश वीक होने की वजह से मुझे नए लोगों से बात करने में शर्म आती थी। अगर मैं 15-16 साल की उम्र के बजाय जन्म से वहाँ रह रहा होता तो शायद ये समस्या न होती। 

खैर इस तरह की मेरी सारी समस्याएं तब ख़त्म हो गईं जब मुझे एक दोस्त मिल गया। उसका नाम था मैक्स, पूरा नाम था मैक्सिमस ऑसवेल। उसकी परिवार मूल रूप से इंग्लैंड से था। वो मेरा सबसे अच्छा दोस्त क्यों बना उसका भी एक कारण था। दअरसल वो क्लास का सबसे कमज़ोर स्टूडेंट था। एक कहावत आपने सुनी होगी "चोर-चोर भाई-भाई"। ठीक ऐसे ही कमज़ोर-कमज़ोर भाई-भाई होते हैं। जो लोग अपने स्कूल टाइम में पढ़ाई में कमज़ोर रहे होंगे, वो मेरी इस बात को ज़रूर समझ गए होंगे। ख़ैर, मैक्स पढ़ाई के अलावा बाकी चीज़ो में, जैसे बात करने में, खेलने में, मौज मस्ती करने में काफ़ी तेज था।

समय बीतता गया और समय के साथ हमारी दोस्ती बढ़ती गई। स्कूल के बाद हमने एक ही ग्रेजुएशन कॉलेज में एडमिशन लिया। कॉलेज का माहौल स्कूल के माहौल से अलग था, नियम सख्त नहीं थे, कोई रोक- टोक नहीं थी, स्टूडेंट्स अपनी मर्जी से कभी क्लास में आते थे कभी नहीं आते थें, गर्लफ्रैंड-बॉयफ्रेंड साथ-साथ बैठा करते थे। उस समय पढ़ाई के साथ साथ गर्लफ्रैंड बनाना भी जरूरी लगने लगा था। यकीन मानिए, उस समय अपने फ्यूचर से ज्यादा गर्लफ्रैंड बनाने की चिंता थी। मैक्स तो कॉलेज में आके काफी बदल गया था। उसकी कई नए लड़के और लड़कियों से दोस्ती हो गई थी। 

एक दिन मैक्स नें बताया कि वो भी एक लड़की को पसंद करता है जो उसकी कालोनी में ही रहती थी। उसने बताया कि एक बार उसने उस लड़की से बात करने की कोशिश की लेकिन बुरी तरह से फेल हो गया, और उसका ब्लड प्रेशर बढ़ गया। इस बात को सुनकर हँसी भी आयी और हैरानी भी हुई। क्योंकि मैक्स कॉलेज में अक्सर लड़कियों से बिना किसी हिचकिचाहट के बातें करता था। ये बात मैंने उससे पूछी भी, कि तुम तो लड़कियों से अक्सर बातें करते हो। तो उसने कहा कि हाँ मैं सभी लड़कियों से बात कर लेता हूँ लेकिन उस लड़की के सामने आते ही मेरी हार्ट बीट बहुत बढ़ जाती है औऱ कुछ भी समझ में नहीं आता। मैक्स ने बताया कि उसने एक बार उस लड़की को रोककर गुलाब का फूल दिया तो उस लड़की ने बस एक बात पूछी। उस लड़की ने पूछा "ये फूल किस लिए ?" तो मैक्स ने कहा "तुम्हारे लिए"। लेकिन उस लड़की ने फिर पूछा "मेरे लिए क्यों"। मैक्स ने इस बात का कोई ज़वाब नहीं दिया। और उसके बाद मैक्स ने कभी उस लड़की से बात करने की कोशिश ही नहीं की। 

उस समय मैंने मैक्स से कहा था कि, तुम्हे अपने दिल की बात बोल देनी चाहिए थी, ये इतना भी मुश्किल नहीं है।" वैसे मैक्स ने कॉलेज में एक नई गर्लफ्रैंड बना ली थी। और अक्सर मुझे अपनी रोमांटिक डेट के बारे में बहुत ही फैंसी ढंग से बताया करता था।

लगभग उसी दौरान मेरी मुलाकात भी किस्मत से एक बहुत ही प्यारी लड़की से हुई। वास्तव में वो मेरे ही कॉलेज की थी, और मुझसे एक साल सीनियर थी। वो लड़की मुझे कॉलेज के पहले दिन से ही पसंद थी। वो लड़की सारे ही लड़को को पसंद थी, मैं कोई अलग नहीं था। लेकिन कम से कम मुझे अपना पता था, कि मेरा तो कोई चांस ही नहीं है क्योंकि मैं उनके लिए बाहर का था।

 ख़ैर उसका नाम जेन था। पहली बार उससे मेरी मुलाक़ात एक बस में हुई थी। वैसे तो हम एक ही बस में कई बार कॉलेज आए थे, लेकिन वो दिन मेरे लिए बहुत लकी था। उस दिन जेन मेरी बगल वाली सीट पर ही आके बैठ गई। जबकि कई सीटे खाली थीं। जैसे ही वो मेरी बगल वाली सीट पर बैठी, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। मुझे पता था ये मौका बार -बार नहीं आएगा, मैं सोचने लगा कि कैसे बात शुरू करूँ। लगभग 25 मिनट का सफ़र था। 10 मिनट निकल गए सिर्फ सोचते -सोचते कि शुरुआत कहाँ से करू, और बाकी समय निकल गया बात शुरू करने का हौसला बनाते-बनाते। हर बार जब भी मैं कुछ कहने की कोशिश करता था, तो ऐसा लगता था कि मेरी आवाज़ बैठ गई है, और मेरा दिल इतनी तेजी से धड़कने लगता, कि मैं अपनी हर्टबीट सुन सकता था। एक्साइटमोंट धीरे धीरे नर्वसनेस में बदलने लगी थी।

आख़िर जब 5 मिनट बचें। तो मुझे एहसास हो गया कि आप जिस लड़की को पसंद करते हैं, उससे पहली बार बात करना सच में कितना मुश्किल होता है। मुझे मैक्स की वो बात याद आ गई और समझ में भी आ गई, कि वो क्यों उस लड़की से बात नहीं कर पाया जिसे वो पसन्द करता था। मेरे साथ भी ठीक वैसा ही हुआ, और उस समय मैंने भी हार मान ली।

 लेकिन, जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि वो मेरा लकी दिन था। तो जब आखिरी 5 मिनटों में मैंने उम्मीद छोड़ दी थी, तो मैंने गाने सुनने के लिए अपना मोबाइल और इयरफोन निकाला। उस समय मैंने अपने मोबाइल के वॉलपेपर पर ब्रायन एडम्स ( मेरे पसंदीदा सिंगर) की काफी पुरानी फ़ोटो लगा रखी थी। उसकी नज़र उसपर पड़ी और उसने पूछा कि क्या ये एडम की फ़ोटो है। मैंने कहा "हाँ वो मेरे फेवरेट सिंगर हैं।" मैंने अपने कुछ फ़ेवरेट गाने भी बताए, जेन ने कहा कि "ये गाने उसके भी फ़ेवरेट हैं।" 

मेरे पास आगे बात करने के लिए कुछ नहीं था, इसलिए मैंने जेन को अपने बारे में बताना शुरू कर दिया। मैंने सब कुछ उसे बताया कि कब मैं इंडिया से वहाँ आया, किस स्कूल में पढ़ा आदि। मेरी बात पूरी नहीं हुई थी तभी कॉलेज आ गया। सभी लोग बस से उतरने लगे। जेन और मैं भी खड़े हो गए। मैं सोचने लगा काश थोड़ा समय और मिल जाता......।

जेन बस से उतर गई और मैं थोड़ा पीछे रह गया। जब मैं उतरा, तो देखा कि जेन बस के पास ही खड़ी है वो मेरा ही इंतजार कर रही थी। मैं उसके पास गया, उसने आगे की बात पूछी। उसके बाद तो, कॉलेज के अंदर पहुँचने तक हमनें काफ़ी बातें की। 

वो मेरा सबसे सुनहरा अनुभव था, मैं उस पहली मुलाक़ात को कभी नहीं भूल सकता। वो अंदर से भी उतनी ही अच्छी थी जितनी बाहर से। वो दूसरों की फीलिंगस की रेस्पेक्ट करती थी। उसमें ज़रा सा भी एटिट्यू़ड नहीं था। वो बहुत ही केयरिंग थी। वो सच में इतनी लाजवाब थी कि उस दिन मैं पूरी तरह से उसके प्यार में खो गया। और दिन-भर उस पल को बार-बार याद करता रहा जब वो मेरे पास बैठी थी।

वाकई...…..मैं उस दिन बहुत खुश था। क्योंकि मैंने पहली बार जेन को इतनी करीब से देखा और उससे बात भी की। उस दिन ऐसा लगा कि मेरे दिल के सारे अरमान उससे मिलके पूरे हो गए। अब बस उस दिन का इंतजार था जब उसका हाथ मेरे हाथ में हो। और मैं उससे कहूँ, कि वादा करता हूँ ये हाथ कभी नहीं छोड़ूँगा और जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहूँगा।

मुझे याद है, उस दिन मैं दिन-भर एक ही गाना गुनगुनाता रहा..

"तुमसे मिलके, ऐसा लगा तुमसे मिलके, अरमा हुए पूरे दिल के।"

मेरी ये स्टोरी, बिना उन गानों के अधूरी है, जो मेरी स्टोरी का एक हिस्सा थे।


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