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Manisha Sri

Romance

1.3  

Manisha Sri

Romance

मुझे आज भी तुमसे प्यार है

मुझे आज भी तुमसे प्यार है

11 mins
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 इश्क़, प्रेम, मुहब्बत क्या सब एक इंसान को उभारते हैं या सच में निक्कमा बना देते हैं । हम सभी कभी न कभी, ज़िन्दगी  के किसी न किसी मोड़ पर इस ला -इलाज़  बीमारी के शिकार होते ही हैं ।  फिर भले ही सारी उम्र अपनी इस हरकत को कोसे, की क्यों यह आफ़त अपने गले बाँध ली, मगर उस वक़्त, उस पल सब कितना मधुर और रोमांचक लग रहा होता है यह मुझे बताने की जरुरत नहीं, क्यूंकि अब तक तो आप मन ही मन मुस्काते हुए खो गये होंगे अपने अतीत में।

यह कहानी  कुआलालम्पुर की है जो मलेशिया की केवल राजधानी नहीं बल्कि उसकी धड़कन भी है। बेहद सलीके से बसा हुआ छोटा सा शहर है । गाड़ी लेकर अगर निकले तो  ३ से ४ घंटे काफ़ी है पूरे शहर का चक्कर लगाने के लिये। petronas twin tower  के सामने  वैसे तो बहुत सी बिल्डिंग्स है जहाँ आप और हम जैसे लोग रहते है। वैसी ही एक ऊँची सी बिल्डिंग के बड़े से घर में एक छोटी सी नहीं बल्कि बड़ी सी या फिर थोड़ी बुजुर्ग सी  प्रेम कहानी जी रही थी । जिसने अपना सफर भारत से तय करना शुरू कर दिया था।

खुली बाहें पसारे और साल भर एक जैसा मौसम और दिन में कम से कम एक बार बारिश का मज़ा देने वाला यह शहर चाहे पर्यटक हो या प्रवासी दोनों को ही अपनी मीठी भाषा में Selamat Datang कहता है, यानि की “मलेशिया में आपका स्वागत है।

आज से  लगभग 15 साल पहले शिखा और शेखर ने  जब अपने वतन को अलविदा कहा तो परदेस ने उन्हें Selamat Datang कहा।

उस रोज़ शेखर को ऑफिस भेज कर शिखा जब वापिस घर में घुसी तो किचन के शेल्फ पर पड़े प्याज़ के छिलके और सिंक में भरे गंदे बर्तन उसे इतनी बुरी तरह घूर रहे थे की वह चाहते हुए भी उनको नजरअंदाज नहीं कर पा रही थी। आराम को गुडबाय बोल कर अपने आलसी कदमों से थोड़ी और गुजारिश करते हुए उसने अपने कुर्ते की स्लीव्स को मोड़ा और किचन में  घुसी गयी  ।

एक प्रवासी स्री सबसे ज्यादा अपने देश को तब मिस करती है जब उसको घर का सारा काम अकेले ही निपटाना पड़ता है। कहने का मतलब यह है की, वतन जैसे नौकर-चाकर का सुख परदेश में कहाँ भैया!!! यहाँ तो खुद ही घिसने पड़ेगे भांडे बर्तन, नहीं तो सहो नखरे फिलिपिनो मैड के वह भी उनके लम्बे चौड़े खर्चे उठाने के बाद। अब यह सब शिखा के बस की बात नहीं थी इसलिए घर का सब काम वह खुद ही किया करती थी। वैसे घर में हर तरीके का तिकड़म मान्य की होम एप्लायंसेज (home appliances  )  थे, घरेलू कामो को आसान बनाने के लिये।

 किचन के एक शेल्फ पर शिखा  ने एक छोटा-सा रेडियो रखा हुआ था। जैसे ही उसने रेडियो  का स्विच दबाया , रेडियो पर उसका और शेखर का पसंदीदा गाना बजा। मलेशिया के रेडियो स्टेशन में हिंदी गाने का बजना और वह भी आपके फेवरेट गाने के सुरों का असर  बिल्कूल तपती गर्मी में रिमझिम बरसात की तरह होता  हैं। शिखा के बदन की फूर्ति ने फिर से आलस की चुनरी ओढ़ी और किचन में पड़ी कुर्सी पर बैठ गयी और खो गयी यादों के के इडियट बॉक्स  (idiot box) में।  शिखा को रेडियो सुनने की  बहुत बुरी लत थी और उसकी यह आदत  शेखर को बहुत नापसंद। जब भी वह अकेले होती तो रेडियो चला कर ही अपना काम करती। उसे लगता था की रेडियो उसके ज़िंदगी की भूले पलो को हमेशा उससे मिलाता  रहता है, हिंदी फ़िल्मी गानो के रूप में। फ़िल्मी गाने बिलकूल उसके मूड की तरह ही तो हैं। कभी उदास कभी खुश, कभी एक दम उछल कूद करने वाले और कभी.…………

 

ख़ैर उस रोज़ जो गाना  बजा वह था, वो सिर्फ किसी फिल्म का एक सुपरहिट गाना नहीं था बल्कि यही तो था उनके प्यार का आगाज़

"आजकल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरेतुमने देखा हैं कभी मुझको उड़ते हुए … " 

यह गाना कभी दिन रात शिखा के होठो पर सजता था। और इसी गाने से ही तो पँख फैलाये थे शिखा और शेखर की मुहब्बत ने।

 बात कुछ 20 साल पहले की हैं, कालेज के एक कैंप पर शेखर की इस साधारण सी दिखने वाली सवाली सी शिखा  पर नजर तब जा टिकी जब दोस्तों के जोर देने पर शिखा ने यह गाना गाया था। क्या आवाज थी, क्या शब्द थे। लग रहा था साक्षात् लता मंगेकस्कर ने दर्शन दे दिए हो। वह एक टक उसको निहारता रहा और मन ही मन दुआ मांगता रहा की बस यह पल अभी ऐसे ही ठहर जाये। । बस इसी तरह रात भर यह सावली सलोनी सी लड़की सुर बिखेरती रहे और मैं सुनता रहूँ ।

मगर गीत संगीत की महफ़िल पर एक बड़ा सा फुल स्टॉप तब लग गया जब प्रोफेसर ने जोर से चिल्लाकर कहा। ।

सब अपने- अपने कमरे में जाकर सो जाओ।

 सुबह फील्ड वर्क पर जल्दी निकलना हैं। यह एक स्टडी कैंप हैं, मौज मस्ती का नहीं।

पता नहीं इन बूढ़े प्रोफ़सरो में थोड़ा बहुत भी रोमांच बचा हैं की वह भी सब नोट्स के पीले पन्नो की तरह रूखा सुखा सा हो गया है। अभी- अभी तो माहोल माहौल बनाना चालू हुआ था। पता नहीं कहाँ से टपक गया बुढऊ ।

शेखर मन ही मन प्रोफेसर को गली दे रहा था और उतने में एक आवाज़ उसके कान में पड़ी। एक्सक्यूज़ मी, क्या आपका नाम शेखर सेठी हैं ?

जी हाँ !!

हेलो : मैं शिखा शर्मा, कल हम दोनों को साथ में फील्ड वर्क करना है, मुझे आपकी टीम में डाला गया हैं। सोचा आपसे मिलकर आपको बता दूँ।

 अब जो गाना थोड़ी देर पहले शिखा गा रही थी उसके तार शेखर के दिल में बज उठे थे। गाने के बोल जैसे उसका जीवन बन गए थे। हर शब्द जैसे उसकी सिचुएशन (situation) को ध्यान में रख कर ही लिखा गया हो। …… रात भर ना जाने कितनी बार उसने यह गाना रिवाईंड कर कर के सुना। कितनी लंबी थी वह रात और कितना लम्बा था इंतज़ार। रात की ठंडी चाँदनी काट रही थी और सूरज की गर्मी में जलने को बेचैन शेखर तड़प रहा था। अब तक जो फील्ड वर्क उसको बोरिंग लगता आ रहा था। कल वह दुनिया की सबसे रोमांचक विधियों में से एक बनने वाला था।

रात का पहरा खत्म हुआ और सुबह ने दस्तक दी। नहा धोकर तैयार थे शेखर बाबू अपनी सपनो की मलिका से मिलने के लिए।

सब ग्रुप्स अपने अपने काम में लग गए। शेखर और शिखा के ग्रूप में इनके इलावा भी 2 और लोग थे जो जाहिर है शेखर के लिए कबाब में हड्डी से ज्यादा कुछ न थे। मगर प्रोफेसर की बात भी सच थी की वो लोग फील्ड वर्क के लिए आये हैं, किसी मौज मस्ती के लिए नहीं। खैर पूरा हफ्ता शेखर की टीम ने अच्छे स्टूडेंट्स की तरह sincerely  काम करते हुए ही बिताया।

मगर शेखर, शिखा से कुछ भी न बोल पाया। यहाँ तक भी नहीं की वह बहुत अच्छा गाती है। जबकि यह बात उसे टीम के बाकि दोनों लड़के  ने एक नहीं बल्कि हज़ार बार बोल चूके थे।

आज आखिरी दिन था, कल सब खत्म हो जायेगा। आज भी नहीं बोला तो शायद ज़िन्दगी भर उसकी रिकार्डेड आवाज़ ही सुननी पड़ेगी क्यूंकि लाइव सुन पाने जैसा तो कोई जतन किया नहीं था अब तक।  मगर बात कैसे शुरू करे यह शेखर तय नहीं कर पा रहा था।

उसके गाने की तारीफ करू ....... ना ना!!!

 फिर मुझमे और बाकी सब में क्या अंतर, उसकी खूबसूरती के खम्बे खड़े करू ......... उसको समझ आ जायेगा की में फ्लर्ट कर रहा हूँ।

क्या करू फिर ???

 यहीं सोच कर सर पकड़ कर बैठा हुआ था की फिर से वही कोयल कानो में कूँकि ।

शेखर आप coffee पियोगे??

नहीं, हाँ, नहीं, ........ मतलब off course

 एक coffee तो team mate के  साथ बनती है।

फ़िर तो साहेब यह coffee पीने का सिलसिला तब तक चला जब तक शादी के वचन न ले लिए इन दोनों ने।

जी हाँ, अब यह दोनों रोज़ मिलने के लिए नए- नए तरीके ढूढ़ते ,जिसमे में coffee पीने का idea काफी सुपरहिट था। और यह छोटी छोटी मुलाक़ात एक बड़े अहम फैसले की चौखट तक ले गयी इन दोनों को। आज़ाद पंछी से शेखर और शिखा शादी के बंधन में बंध कर बहुत खुश थे।

ज़िन्दगी में कभी भी ख़ुशी बिना किसी जतन के कहाँ किसके नसीब में आई है, जो इन्हें मिलती ।

शेखर का प्यार पाने के लिए शिखा ने अपना घर छोड़ा और अपनी शिखा और परिवार को हर सुख खरीद कर दे सके, ऐसी तरक़्क़ी के लालच में  शेखर  को अपना देश छोड़ना पड़ा और अपनी पृष्ठभूमि से दूर मलेशिया में पिछले 15 सालो से यह दोनों अपना घरौंदा बसाये बैठे हैं।  कुआलाम्पुर नाम के इस चकाचोंध से भरे शहर में जहाँ देखो वहाँ जगमग है।  ऊँची-2  इमारतें, साफ़ सुथरी सड़के और ढेर सारा आराम मगर फिर भी शिखा को काटता था यह सुख चैन। क्यूंकि इसमें फुर्सत के वह पल कहाँ थे जो भीड़ भाड़ वाले मुंबई की लोकल ट्रैन में शिखा ने शेखर के साथ बिताये थे।

 

वैसे मलेशिया में परदेस वाली feeling ज्यादा परेशान नहीं करती थी, जिसका सिंपल सा कारण है यहाँ बसे  असंख्य भारतीय। सबसे बड़ा आश्चर्य तो तब होता है जब दीवाली की छुट्टी इस देश की national holiday की list में दिखाई देती है।

 हर तरीके का भारतीय खाना और पहनावा यहाँ बड़े आराम से मिल जाता है।

 शिखा ने भी अपना एक  छोटा सा लिटिल इंडिया यहाँ बसा रखा था। खुद को मशगूल रखने के लिए वह यहाँ बसे प्रवासी भारतीयों के बच्चो को हिंदी भी सिखाती थी। मगर ससुराल कितना भी अच्छा क्यों न हो मायका तो याद आता ही है न बस वैसा ही होता है प्रवासी का जीवन।  हमारी शिखा का जीवन  ससुराल में रहती उस बहू की तरह  है जिसे सब सुख मिल रहा  है बस पति का वक़्त नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में अपने वतन से उसकी दूरी उसे और बेचैन कर देती थी ।

शादी के कुछ शुरआती साल बड़े  ही मनमोहक थे जैसे की सबके होते हैं। फिर धीरे धीरे प्यार को जिम्मेदारियों और वक़्त की कमी ने ऐसा घेरा की प्यार  की धूप ने इस पर दस्तक देना छोड़ दिया था। आज 20 साल बाद न तो शेखर के पास वक़्त हैं और न ही शिखा  के पास वह जज़्बा अपनी प्यार की इस सिंपल सी स्टोरी के किसी भी लम्हें को जीने का। शायद घडी की सूईओ ने उनको इतना नचाया की, हाँथ पकड़ कर वो मस्त होकर नाचना भूल गए। हाँ कभी- कभी किसी रिश्तेदार शादी में हैं घोड़ी के आगे दुनियाँ को अपनी जूठी खुशी का ढकोसला दिखाने के लिए नाच लेते है, मगर उसमे वह बात नहीं होती जो उनके collage youth festival  के jam session में होती थी। घर, बच्चो ,माँ बाप और रिश्तेदारों की खुशी में उनका इतना समय जाता था की खुद अपनी शर्तो पर ज़िन्दगी बिताने का उनका वादा पता नहीं कहाँ, किस कोने में मुँह छुपाये बैठा था की ढूढ़ने पर भी नज़र नहीं आ रहा था।

दोनों एक दुसरे को मिस कर रहे थे मगर बोल नहीं रहे थे ,  क्यूंकि एक साथ जो रहते थे एक ही घर में तो I am missing you बोलना थोड़ा अटपटा लगता न!

 यक़ीन  नहीं आ रहा था की जिन शेखर और शिखा  ने दुनिया से बगावत कर दी थी अपने प्यार  के लिए आज वो अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी जी नहीं रहे बल्कि गुज़ार रहे हैं। जो युगल एक दुसरे के हाँथ पकड़कर घंटो पता नहीं क्या बतियाते रहता था,  आज उनके पास न तो प्यार भरे शब्द हैं बात करने के लिए और वक़्त का तो मानों आकाल ही पड़ गया है।  वक़्त की चोट और उसके साथ रेस लगाने की होड़ बहुत कुछ ऐसा छिन लेती है जो भले ही आपको ज़िन्दगी  के मौलिक सुख न दे मगर आत्मा को आराम जरूर दे सकता था। शेखर पर इतनी जिम्मेदारियां थी की उसका ज्यादा समय घर से बाहर खुशियाँ कमाने में ही निकल जाता था और शिखा  का प्यार अकेले अपने शेखर का इंतज़ार करते करते कब बूढ़ा हो कर थकने लगा पता ही नहीं चला।

मगर सच्चे प्यार की धरडकन भले ही बूढी हो जाये, मगर मरती नहीं है। अगर वफ़ा बाकि है तो प्यार फ़िर से उफ़ान मारेगा ,हाँ हो सकता है उसमे जवानी वाली ताकत और जोश न हो मगर जज्बातों की ग़रीबी भी नहीं होगी।

 बिन बोले भी प्यार होता है। यह जानना हो तो किसी अधेड़ उम्र के couple को देख लें। जो शायद love you और miss you जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना छोड़ चुके है मगर एक दुसरे की फ़िक्र नहीं। बात कम करते है मगर अपनी यादों में आज भी पुराने दिनों की स्मिर्तियाँ को ज़िंदा रखते है। उम्र की मार कह लीजिये या समाज की शर्म जिसके कारण इनका प्यार थोड़ा गुमसुम सा हो गया है।

बीते  पलो में खोई शिखा  मन ही मन मुस्कुरा रही थी और तभी उसके मोबाइल की घंटी ने उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा।

शेखर कालिंग ……..

शेखर तो कभी भी ऑफिस से फ़ोन नहीं करते है, आज क्या बात हो गई?

सब ठीक तो हैं न!!!

कही कुछ भूल तो नहीं गए या फिर .......

न जाने कितने सवाल उसकी चिंता की ओढ़नी लपेटे उसके सामने खड़े होने लगे। 

 शिखा  ने फ़ोन उठाया  और बोला सब ठीक तो है न शेखर। दूसरी तरफ से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी मगर बैकग्राउंड में दोनों तरफ गाने की आखिरी लाइन बज रही थी .......

थम लेना जो देखो मुझे उड़ते हुए

"आजकल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे,तुमने देखा हैं कभी मुझको उड़ते हुए … " 


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