दादी माँ
दादी माँ
आज दादी माँ बहुत याद आ रहीं हैं। सारे जगत की दादी माँ। आस-पास सारे लोग उनको दादी माँ ही कहते। वह पुरानी वाली दादी माँ नहीं हैं। बहुत ही अलग-सी दादी माँ। ससुर शहीद हुये, बेटा शहीद हुआ पर चेहरे पर शिकन तक नहीं आयी। बहू को, बेटी को, सब फोज में भेज दिया पर कभी भी घबरायी नहीं। छोटा सा नवासा है उसके साथ लगी रहती हैं, और कहतीं रहतीं हैं बेटा तुझे फौज में जाना है। बस किसी से कुछ लेना देना नहीं पर किसी के दुख सुनेगीं तो बस भागती हुयी पहुँच जाती हैं। हम तो उनके हौसले को देखते ही रहते हैं। इतनी पीड़ा को छुपाकर कैसे जीवित हैं।
एक बार पूछ ही लिया, "इतनी पीड़ा कैसे सहन होता है?"
अपने आँसुओं को पीकर बस यही बोलीं, "भारत की बेटी हूँ। देश के लिये कुछ भी कर सकती हूँ। फिर तुम लोग हो ना ढेर सारे हमारे बेटा-बेटी और हमें कुछ नहीं चाहिये। बस हर बार इस माटी को ही नमन करना चाहती हूँ और गंगा में ही समाहित होना चाहती हूँ।"
हम अपनी दादी के चरणों में नमन करते हैं जिनका जीवन-मरण सब देश के लिये ही है।