अनुत्तरित प्रश्न
अनुत्तरित प्रश्न
समय तो हर बार की तरह पंख लगा कर उड़ गया पर यादों की टीसों के साथ अशोक जी के मन में कुछ अनुत्तरित प्रश्न छोड़ गया जिसका उत्तर उन्हें आज उनके बेटे ने ई मेल से दे दिया था।
"पापा, अब मेरा इन्डिया वापस लौटना सम्भव नहीं है। यह ठीक है कि आपने मुझे इस मुकाम पर पहुँचाने के लिए अपनी क्षमता से अधिक मेहनत की। पर यह आपका ख्वाब था मेरा नहीं। मैंने आपसे कब कहा था कि मुझे अपने से इतना दूर करो। बचपन में जब आपने मुझे मँहगे स्कूल के होस्टल में भेजा था आपको याद होगा पूरी रात मैं रोता रहा था पर आपको तो अपने मित्रों के साथ काम्पटीशन करना था...अपना स्टेटस दिखाना था...बचपन से ही मैंने आपके मुँह से बस एक ही बात सुनी थी, "सुमित...तुम्हें बड़ा आदमी बनना है...बहुत पैसे कमाना है...मेरे सब रिश्तेदारों के बच्चे अमेरिका...इंग्लैंड में हैं, तुम्हें भी जाना है।
काश ! आपने एक बार भी कहा होता कि "सुमित...तुम्हें अच्छा इन्सान बनना है...अपने माँ बाप की सेवा करनी है", मैं आपके सानिध्य को तरसता ही रह गया पर आपने मेरी और माँ की इच्छा के विरुद्ध अपने हर तर्क को सही ठहराते हुये मुझे इंजीनियरिंग के बाद अमेरिका भेज दिया। शादी भी मेरी इच्छा के खिलाफ मार्डन और प्रोफेशनल लड़की से कर दी...आज जब मैं यहाँ सैटिल हो गया तब आपको अपना अकेलापन खल रहा है और आप चाहते हो मैं आपके पास वापस आ जाऊँ ? नहीं पापा...अब ये सम्भव नहीं है...आपने मुझ को मेरी इच्छा के विरुद्ध मोड़ दिया था पर...वह ज़्यादती मैं अपने परिवार के साथ नहीं कर सकता। शीना अच्छी नौकरी करती है बच्चे यहाँ के वातावरण में ढल गये हैं, मैं कैसे उनकी जड़ें उखाड़ दूँ। अपनी जड़ों से दूर रह कर जो सजा मैं भुगत रहा हूँ...उसमें उन्हें भी भागीदार बना दूँ ? आप बिना परिणाम सोचे समय के साथ उड़ रहे थे पर आपने यह नहीं सोचा कि वक्त किसी को हरदम साथ नहीं रखता। वो तो अपने पंख पसार उड़ जाता है पर इंसान सीधा ज़मीन पर गिरता है।"
"क्या हुआ...",अशोक जी को इतनी देर लैपटॉप की तरफ टकटकी लगाए देखकर उनकी पत्नी विमला परेशान हो गयी," क्या सुमित ने आने को मना कर दिया ?"
"नहीं...नहीं...वह तो अभी नौकरी छोड़कर आने को तैयार है...पर मैंने ही मना कर दिया...हमारा क्या है...कट ही जाएगी... पर उसके बच्चों को यहाँ बहुत मुश्किल होगी।" कहते हुये वह कमरे से निकल गये पर विमला के होंठों पर हल्की मुस्कान तैर गयी थी।