रक्षक
रक्षक
"सिद्धार्थ तुम हमेशा मेरी मदद के लिए इस शहर में नहीं रहोगे, मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो। मुझे अकेले जीने की आदत है।" —प्रिया ने सिटी हार्ट रेस्त्रां लगभग खाली पड़ी टेबल्स की और देखते हुए कहा।
"क्या हुआ, आज अचानक क्या हुआ तुम्हे ? —सिद्धार्थ ने प्रिया के भाव विहीन चेहरे को देखते हुए कहा।
"कुछ नहीं; लेकिन अब तुम्हें और मुझे साथ देखकर लोगों की घूरती नजरे अब मुझे बर्दाश्त नहीं है। —प्रिया ने संजीदगी से कहा।
"उन लोगों की ज्यादा परवाह न करो देव दुर्ग में तुम्हाराअसाइनमेंट दो महीने में समाप्त हो जायेगा उसके बाद तुम इस शहर से चली जाओगी फिर कोई पीछा नहीं करेगा तुम्हारा, और तुम्हें किसी के मदद की जरूरत भी नहीं होगी।" —सिद्धार्थ ने प्रिया को समझाते हुए कहा।
"वो आवारा लड़का तुम्हारी प्रॉब्लम नहीं है, वो मेरे पीछे लगा है। वो मेरे ऑफिस में भी आ जाता है, उसे पता है मैं मैरिड हूँ लेकिन इस बात का उसपर कोई फर्क नहीं पड़ता है; उसे पता चल चुका है तुम मेरे कुछ नहीं लगते इसलिए उसे अब तुम्हारी भी ज्यादा परवाह नहीं है। प्लीज सिद्धार्थ अब मुझसे मत मिलना।" —कहकर प्रिया उठ खड़ी हुई और तेजी से रेस्त्रां से बाहर निकल गई।
विल सिटी से कम्पनी के छह महीने के असाइनमेंट पर आना प्रिया के लिए अच्छा खासा सर दर्द बन चुका था। पति और बेटे से दूर, वर्किंग वीमन के घटिया हॉस्टल में रहना। ये सब तो पार्ट ऑफ़ जॉब था लेकिन अचानक उस आवारा रंजीत लाखिया का उसके पीछा करना अच्छा खासा सिरदर्द बन गया था उसके लिए।
पहले तो सिर्फ पीछा ही करता था लेकिन उस दिन तो उसने भरी सड़क पर उसका हाथ ही पकड़ लिया था और घसीट कर अपनी कार की तरफ ले जाने लगा था। न जाने कहाँ से वो फरिश्ता सिद्धार्थ चला आया था। उसने उस दिन उसे न केवल बचाया था बल्कि रंजीत को धमकी देकर भगा भी दिया था। धमकी का उसपर ज्यादा असर नहीं पड़ा था लेकिन अब वो उसकी बस का दूर रहकर पीछा करता था। प्रिया सिद्धार्थ की उपस्थिति को महसूस करती थी वो उसे अकसर उसके बस स्टॉप पर मिल जाता और उसे उसके ऑफिस तक छोड़ आता था, ये ही रूटीन शाम को वापसी में भी होता था। सिद्धार्थ का ऑफिस कहीं आस-पास ही था इसलिए प्रिया को भी उसके साथ आने-जाने से कोई आपत्ति नहीं थी।
उनका ये रुटीन चार महीने से चला आ रहा था। रोज की मुलाकात, वीकेंड पर पास के कैफे में कॉफी के लिए रुक जाना। सिद्धार्थ किसी सरकारी विभाग में था ट्रांसफर की वजह से परिवार से दूर यहाँ देवदुर्ग में रहता था। आपस में दुःख-सुख की बाते करते-करते दोनों के बीच एक अनजान सा रिश्ता बन गया था। लेकिन आज दोपहर को ये सब बदल गया।
दोपहर रंजीत अपने पांच साथियो के साथ उसके ऑफिस में आ धमका और सरेआम ऑफिस में सबके सामने प्रिया को धमकी दी कि अगर सिद्धार्थ नाम का वो आदमी उसके नजदीक नजर आया तो वो चाकू से उसका पेट फाड् देगा।
बाद में ऑफिस के लोगो ने बताया की वो कुख्यात गैंगस्टर मैक्स के गैंग का शूटर था और जिस लड़की या औरत पर उसकी निगाह पड़ जाती है उसे वो किसी हाल में छोड़ता नहीं है। पुलिस मैक्स के हाथ बिकी होने के कारण उसपर हाथ नहीं डालती है। प्रिया इन सब बातों से बहुत डर गई थी कई बार मन हुआ वापिस विल सिटी चली जाये, लेकिन उस हाल में उसे मुश्किल से मिली नौकरी से हाथ धोना पड़ता। उसने तय किया अब वो रंजीत से नहीं डरेगी लेकिन सिद्धार्थ को उसकी वजह से चोट पहुंचे ये भी वो होने नहीं देगी। इसलिए आज उसने सिद्धार्थ को अपनी जिंदगी से रुखसत कर दिया था।
एक सप्ताह बाद
आज बारिस से शहर अस्त-पस्त है। रंजीत अपने गुर्गो के साथ बड़ी सी एस. यू. वी. में शाम को बारिश रुकने के बाद प्रिया के उसके ऑफिस से निकलने का इंतजार कर रहा है।
"आज हर हाल में उठा ले जाना है उस हसीना को......." —रंजीत अपनी नशे से लड़खड़ाती जुबान में बोला।
"बिलकुल बॉस।" —एक गुर्गे ने उसकी हाँ में हाँ मिलाई।
तभी ट्रेंच कोट पहने एक साया उनकी एस. यू. वी. के पास से गुजरा और चलते-चलते एक पावरफुल प्लास्टिक बम एस. यू. वी. से चिपका गया।
रंजीत को दूर से आती प्रिया दिखाई दी और वो गुर्रा कर बोला— "जाओ बे उठाकर लाओ उसे।"
उसके गुर्गो ने एस. यू. वी. से निकलने के लिए कदम उठाया ही था कि कयामत आ गयी। एक जोरदार धमाके के साथ एस. यू. वी. के साथ रंजीत और उसके गुर्गो की धज्जीया उड़ गयी।
उजाड़ सड़क पर प्रिया डरकर एक खुली दुकान की और भागी। दूर ट्रेंच कोट पहने सिद्धार्थ ने प्लास्टिक बम के रिमोट को ट्रेंच कोट की पॉकेट में डाला और सड़क के दूसरी और बढ़ गया। उसे पता था प्रिया ने रंजीत के डर से उसे अपने से दूर कर दिया था। लेकिन उसके रहते कोई प्रिया को कुछ करे ये कैसे हो सकता था। पुरानी विल सिटी की ग्रे मार्किट से उसे रिमोट वाला प्लास्टिक बम हासिल करने में ज्यादा दिक्कत न हुई। अब प्रिया हर डर से आजाद थी, एक बेनाम रिश्ते को निभाने के लिए एक गैंगस्टर को खत्म करके उसी दिली राहत थी।