Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

मनीजर बाबू

मनीजर बाबू

13 mins
14.7K


आपाधापी भरा मुम्बई का जीवन और दो घंटे लोकल ट्रेन की नारकीय यात्रा करते हुए रोज की तरह ठीक नौ बजे मैं बैंक पहुंच गया । गेट पर कुछ देहाती किस्म के लोग दरवान से हुज्ज़त कर रहे थे। दरवान कंधे पर बंदूक लटकाये मूंछों पर ताव दे रहा था। मेहनकशों की भी अपनी एक शैली होती है जीवन को जीने की । ये लोग बैंक के अंदर जाने के लिए गुजारिश कर रहे थे, और दरवान अपनी ड्यूटी बजाने के चक्कर में उन्हें अंदर जाने से रोक रहा था ।

मैले-कुचैले, फटे-पुराने कपड़े पहने ये लोग भला क्या बैंकिग करेंगे ! इनके पास तो जरूरी कागजा़त भी नही होते हैँ । बेमतलब वक्त जा़या करते हैँ, शायद दरवान की यह सोच रही होगी, पर बैंकिंग इंडस्ट्री ने आज जिस तरह से मुनाफा कमाने के लिए आधुनिकता के कल्चर को अपनाया है, उससे दरवान की इस सोच को गलत नहीं ठहराया जा सकता था। इस तरह निगाहों – निगाहों में नाप –तौल लिए जाने का मुझे तज़ूर्बा हो चुका था जैसे ही मैं गेट क़ॆ करीब पहुंचा,

’’गुड मार्निंग सर" - कहते हुए उसने सलामी दी और दरवाजा खोलकर मेरे स्वागत के लिए खड़ा हो गया, ऐसे कि जैसे कुछ हुआ ही न हो,

"रामसिंग क्या बात है ? ये लोग क्या चाहते हैं ? तुम इन्हें अंदर जाने से क्यों रोक रहे हो ?"

"सर...., वो पिछ्ली बार बड़े साहब ने कहा था ना कि... !" वह कुछ और बोलता उसके पहले ही उनमें से एक आदमी आगे बढ़ा और बोला,

"मनीजर साहब, परनाम.....हम हैं.... रामखेलावन ! पहचानित हैं ना हमको ! कुछ दिन पहले आये थे ना खाता खुलवाने के लिए अपनी मेहरारू और लड़के के साथ....."

"हाँ - हाँ जानते है, कहो आज कैसे आना हुआ ! और ये इतने लोग कौन हैं !"

मेरे इस वाक्य से उन सबकी उम्मीदों को छोटी - सी किरण का एक सहारा मिल गया। उनके चेहरों पर इस भाव को मैं साफ-साफ पढ़ रहा था।

"सरकार वु हम कहे थे ना कि और परिवारवाले, बिरादरी, और गाँववालन के खाता खुलवाने के खातिर......तो इन सबको हम आपके बारे में बताया कि बैंक में मनीजर बाबू अपने मुलूक के हैं, अउर बडे़ ही अच्छे इंसान हैं। ई सबन को खाता खोलवाने ले आया हूँ । "

यह कहते हुए रामखेलावन हाथ जोड़कर मेरी ओर आशा भरी नजरों से निहारने लगा, मानों कितनी उम्मीदों के साथ वह आया था । बैंक खुलने में अभी आधे घंटे का समय बाकी था, मैंने दरवान को निर्देश दिया,

‘’बैंक का समय होने पर इन सबको मेरे पास ले आना।‘’ मैं अंदर जाने लगा।

मेरी आँखों के सामने देश की गरीबी का वह चित्र चलने लगा जो मैंने अपनी रूरल पोस्टिंग के दौरान अनुभव किया था। मुंबई आने से पहले मैं गोरखपुर के बडहलगंज शाखा में तीन साल तक बतौर प्रबन्धक पोस्ट था।

गाँव क्या होता है ? किसान क्या खाता है ? ग़रीबी किसे कहते है ? मेहनत -मजदूरी क्या होती है ? यह सब मैनें बड़े करीब से देखा था । हाल ही में सरकार द्वारा जारी वित्तीय समावेशन योजना को लेकर मैं वहां किस कदर जी - जान से लगा था, वह सारा दृश्य मेरी आँखों में तैरने लगा। सरकार इस योजना के तहत ऐसे लोगों को बैंको से जोड़ना चाह्ती है जो आज तक तमाम आर्थिक सुविधाओ से वंचित रह गए हैं । अब सरकार चाहती है कि बैंक विभिन्न माध्यमों द्वारा इन लोगोँ तक जाये, उन्हें बैंकिग सुविधाएं उपलब्ध कराये, क्योंकि आर्थिक असमानता समाज में अभिशाप है । यह कई विकरों को जन्म देती है।

समाज में आज भी ऐसे करोड़ों गरीब मजदूरों, लघुकृषकों, दस्तकारों, निर्माण क़ार्य में लगे मजदूरों, दिहाड़ी मजदूर, रिक्शावाले, ठेलेवाले, मलिन बस्तियों के निवासी, अल्प अथवा अशिक्षित महिलाओँ इत्यादि का विशाल वर्ग है जो देश और बैंक की प्रगति की रफ्तार में काफी पीछे छूट ग़ए हैं। इनको बैंकिग सेवाओं से जोड़ना ही वित्तीय समावेशन का व्यापक अर्थ कवि नीरज की ये पंक्तियाँ मुझे बरबस याद आ रही हैं -

"अब तो मज़हब कोई ऐसा चलाया जाए

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए

मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा

मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए !"

मैं अपनी पुरानी यादों में खोया था कि अचानक आई "सर" की आवाज ने मुझे जगा दिया। मेरी आंखे नम होने को थी। देखा तो सामने हेड कॅशियर चाबी लेकर खड़ा है।

केबिन में प्रवेश करते हुए चारो तरफ एक सरसरी नजर दौड़ाई, और ब्रीफकेस रखते हुए, चाबी लेकर कैशवाल्ट की ओर बढ़ गया। यह सोचते हुए कि रामसिंग को दिन में तारे नजर आ गये होंगे। फटेहालों का भी इस देश मे अपना वजूद है, वे भी इस देश के नागरिक हैं इस बात को वह महसूस कर रहा होगा। मैंने देखा उसका रवैय्या बदल गया था। रामसिंग अपनी मूँछे ऐंठते हुए ठेठ भोजपुरी में बोला,

"हे बिरादर लोग हमका माफी दै दो आज हम तुम सबको चाय पिलायेंगे और अब हमरे संग मनेजर के पास चलो ।"

आवश्यक कामों को निपटाते हुए जैसे ही मैं केबिन की ओर बढ़ा तो देखा कि रामखेलावन की टीम मेरा इंतजार कर रही थी। मैंने उन सबसे बैठने के लिए कहा । वे लोग जमीन पर बैठने की कोशिश करने लगे । मैंने कुर्सियों पर बैठने के लिए कहा, पहले तो वे लोग संकोच करने लगे पर जब मैंने उन्हें समझाया और रामखेलावन ने इशारा किया तो वे बैठ गये। कुर्सियाँ कम पड़ रही थी तो बाहर से मँगवाई । कँटीनवाले को फोन करके सबके लिए चाय भी मँग़वाई। चाय की चुस्कियाँ लेते हुए मैं रामखेलावन की यादों में खो गया, जब पहली बार वह बैंक में आया था तब उसे किसी ने तुल नहीं दिया था । इधर-उधर झांकते, सहमते वह मेरी केबिन मेँ आया और नमस्कार करते हुए खाता खोलने की बात कहने लगा। मैँने उसे बैठने के लिये कहा।

“ठीक है सरकार।” कहते हुए वह जमीन पर बैठने लगा ।

मैने कहा,

"दादा, जमीन पर नही कुर्सी पर बैठें। यह आप ही की बैँक है !"

"नहीँ बबुआ आपके सामने भला हम कैसे कुर्सी पर बैठ सकत हैँ ! कुर्सी गंदा हो जाई।’’

'‘कोई बात नहीँ, हमारी कुर्सी गंदी होती है तो होने दो, हम साफ कर लेंगे।'’ मैने समझाया ।

'‘बाबू आप देवता आदमी हैँ ! आप जैसे भला इंसान अब ई दुनिया मेँ कहां मिलत है !’'

उसने कहा, "ई हमार फोटो, राशन कारड, वोटीँग कारड देख लो, हम दसखत करेँ नहीँ जानत, अंगूठा लगाते हैं, हमरा मदद कर दो साहिब !"

मैँ पेपर्स देख रहा था, तब वह बड़े संकोच से बोला,

‘‘मालिक बाहर हमरी औरत और बेटा भी आये हैं अगर हुकुम हो तो उन लोगो को भी बुला ले्वे उनका भी खाता खोलना है ।"

"हां- हां उनको भी बुला लो, उन्हें बाहर क्यों खड़ा किया है !’’

जैसे ही वह वहां से उठा, मैने केबिन के बाहर एक सरसरी नजर दौड़ाई। बैँक मेँ अलग सुगबुगाहट थी, लोग-बाग अपने –अपने कामोँ मेँ व्यस्त थे। कुछ लोगों के माथे पर चिंता और परेशानी की लकीरें ऐसी उभरी हुई थी कि मानोँ सारी दुनिया का भार उन पर ही लाद दिया गया हो। कुछ लोग ठिठोली कर रहे थे, तो कुछ काउंटर पर खड़ी महिलाओँ को निहार रहे थे। दो महिलाएंं काउंटर से चिपकी आपस मेँ बतियाई जा रही थी, दुनिया की राग रंग से दूर वे अपनी ही दुनिया मेँ मशगुल थी। कुछ बैँक कर्मी कम्प्यूटर के ‘ की-बोर्ड ’ स्क्रीन से लड़ रहे थे, तो कुछ गप्प लगा रहे थे। ग्राहक भी अपनी अपनी धुन मेँ थे। जिनको ट्रेन पकडना था, या ऑफिस जाना था, वे जल्दबाज़ी में थे। कुछ ग्राहक ऐसे थे जिन्हे कोई जल्दबाजी नही थी वे सोफे पर इत्मीनान से बैठे थे। दो लोग तो सो भी रहे थे ।जिस काउंटर पर महिलाएं थी वहां रेल-चेल अधिक था।

दरवाजे की ओर देखा तो मिस जेनी डिसोजा का प्रवेश हमेशा की तरह ‘’हाय-हैलो’’ के साथ हो रहा था ।

जेनी हमारे एक कार्पोरेट क्लाइंट की पर्सनल सेक्रेटरी है जो माडर्न है, चुलबुली और लटके-झटके वाली है। वह बैँक मेँ अक्सर आती रहती है। उसकी पहचान सबसे है। लोगो को भी उससे मिलने में आनंद आता है, उनकी तबियत जो हरी हो जाती है । उसकी अदा उन तितलियोँ जैसी होती है जो उड़ती कम फड़फडा़ती ज्यादा हैं।

शेयर मार्केट में अचानक बिकवाली के चलते कुछ शेयरों के भाव जैसे गिर जाते हैं, वैसे ही जेनी के आने के बाद बैँक में महिलाओं की स्थिति हो जाती है। वे उससे खासी खफा रहती हैं। मगर जेनी अक्सर नब्ज़ पकड़ते पुरुषों के आस-पास ज्यादा मंडराती है । सुंदर महिला गाहक को देखते ही हमारी शाखा के अधिकारी देशपांडे जी जवान हो जाते हैँ, जैसे किसी बुढ़िया का गंठिया रोग ठीक हो जाता है - उसी तरह वे फूर्ती से फुदकने लगते हैं। वैसे यह जवां दिली की निशानी है और दिल से सबको जवान होना भी चाहिए। दुख तो इस बात का हो रहा था कि जब रामखेलावन आया तो उसे अटेंड करने के लिए कोई आगे नहीँ बढ़ा था, मगर इस तितली के इर्द-गिर्द भौंरों की भीड़ लग गई थी अचानक आयी ‘बाबूजी’ की आवाज ने मेरी तन्द्रा को भंग किया देखा तो सामने रामखेलावन अपनी पत्नी और बेटे के साथ खडा़ था। मैंने उन्हे बैठने के लिए कहा, वे बैठ गये।

‘‘बाबूजी ! देर इसलिए हो गई कि दरवान की डर से ये लोग अपनी जगह छोड़कर सड़क उस पार खडे़ हो गये थे। इनको खोजने मेँ समय लग गया। अब हम सबका खाता खोल देवे सरकार, टीन के डिब्बे मेँ रुपया रखते – रखते अब खतरा महसूस होने लगा है। रात-भर नीँद नही आती, बहुत परेशानी में बाँटी हम लोग।’’

मैंने कँन्टीनवाले को बुलाकर सबके लिए चाय मंगाई और खाता खोलने की प्रक्रिया मेँ लग गया।

कुल मिलाकर दो सेविंग, दो फिक्स डिपाजिट और उनके बेटे का स्टुडेंट अकाउंट खोला। पासबुक और खाते की रसीद पाते ही वह परिवार बेहद खुश हो गया। जाते-जाते वे लोग दुहाई देने लगे, मेरे पाँव छूने को लपक रहे थे कि मैंने उन्हे ऐसा करने से रोका ।

‘‘अरे भाई ये क्या कर रहे हैं आप लोग ! ग्राहकों की सेवा करने के लिए ही तो हमेँ यहां रखा गया है, यह तो हमारा फर्ज है।’’

‘‘नहीं बबुआ सब लोग ऐसन नही होत हैं। आप भलमनई हैँ, हमरे लिए तो देवता हैं, पिछ्ले कई सालों से खाता खोलने के लिए हम तरस रहे थे। इहां से दुइ बार और दूसरे बैंक से तीन बार हमे घर लौटा दिया गया था। आज हिम्मत करके जब हम आपके पास पहुंचे तब जाकर काम हुआ । जानो गंगा नहा लिया हम आज, जय हो बंम्बा मईया की। अब हम अपने गांववालन को भी बतायेंगे और उनको खाता खोलने के लिए कहेंगे । वु लोग भी बड़े परेशान है बबुआ ।’’

"कोई बात नहीं अब आप लोग जाइए, दो दिन बाद आकर डिपाजिट रसीद ले जाना और आगे जब भी कोई जरूरत हो तो मेरे पास बेधड़क चले आना। वे लोग मुड़ने को थे कि मुझे कुछ याद आया,

‘‘सुनो ! आपका लड़का बडा़ होनहार है, जब तक इसकी इच्छा है तब तक इसे पढा़ना, एक दिन यह भी साहब बन जायेगा। पैसोँ की चिंता मत करना अब ऊंची पढ़ाई के लिए बैंक से शिक्षा लोन मिलता है।’’

किसी जरूरतमंद की मदद करने के बाद की अनुभूति को मैं मह्सूस कर रहा था। मेरे अंदर अजीब–सी संतुष्टी का भाव जाग रहा था। इस परिवार की मदद करते हुए मैंने एक नई ज़मीन तलाशने की कोशिश की थी।

‘’सर, सेविंग खाता खोलने के ये कुछ फार्मस हैं ।’’

इस आवाज के साथ मैं जाग गया, भूतकाल से वर्तमान में लौट आय़ा। देखा तो मेरे सामने टीम रामखेलावन बड़ी आशा के साथ बैठी थी । उनकी चाय खत्म हो गई थी। मैंने बैंक के एक युवा अधिकारी किशोर कदम से कहा,

"आप दो लोगों को अपनी मदद के लिए ले लें और इन सबका इनकी जरूरत के अनुसार खाता खोल दें।"

कदम ने बेमन से हामी भरी पर मेरे निर्देशानुसार काम को उसने अंजाम दिया । वे लोग बडे़ सुकुन और सुखद अनुभूति के साथ मुझे और रामखेलावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अपने- अपने रोजी-रोटी की ओर चल दिए। जीवन में कोई बड़ी बात हो गई हो यह एहसास उन लोगों के चेहरों पर साफ पढ़ा जा सकता था।

मैंने कदम और उसके सहयोगी कर्मियों की हौसलाअफ़जा़ई की। तब कदम ने बताया कि कुल 15 खाता खुले तथा और 20-25 लोगो के खाते खुलवाने के लिए ये लोग अपनी सुविधानुसार बाद में आयेंगे, क्योंकि आज उनके पास जरूरी कागजात नहीं हैं।

मैंने कदम को संकेत दिया कि कुछ और लगन से काम वह करेगा, तो इन लोगों के जरिये हम कम से कम 150-200 खाते खोल सकते हैँ, जो हमारे टारगेट को पूरा करने मेँ बेहद सहायक सिध्द होगा। मैंने उसे वित्तीय समावेशन और ‘नो फ्रील’ ( ज़ीरो बॅलेंस ) खातों के बारे में और टार्गेट के बारे में बताया।

"आय थिंक इट्स ए चैलेजिंग जाब, बट आय विल ट्राय सर ।" कदम ने कहा।

कदम की अगुवाई में तीन कर्मियों को मैंने इस काम में लगाया। कुछ ही दिनों में रामखेलावन एवं उसकी टीम के जरिए हमने कुल 250 अकाउंटस खोले और दस ‘स्वयं सहायता ग्रुप’ की स्थापना की। इन खातों के साथ ही मेरी शाखा को दिया गया वित्तीय समावेशन खातों का टारगेट पूरा हो गय था।

कौन रामखेलावन ? कहाँ से आया वह ? उसका मेरा क्या नाता है ? कुछ दिन पहले तक मैं उसे जानता भी नही था, पर आज वह जाने- अंजाने में मेरे काम – काज का अहम हिस्सा बनकर मेरा मददगार बन गया था। हाल ही में मैंने रिजर्व बैंक का सर्कुलर पढ़ा था, जिसके तहत ग्रामीण भागों के साथ –साथ शहरों मे भी इस योजना को लागू करने की बात पर जोर दिया गया था। मन ही मन मैँ बड़ा खुश हो रहा था। जिन्हें हम लोग सामान्य कहते हैं वे ही लोग असामान्य काम कर जाते हैं। रामखेलावन ने मेरा काम आसानी से पूरा कर दिया था सारे बैँक अपने –अपने ढंग से इस योजना पर काम कर रहे थे । मैं सोच रहा था कि आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन तथा राष्ट्र का विकास कोई ऐसी वस्तु नहीँ है, जिसे हम मन चाहे ढंग से बाजार से प्राप्त कर लें, या कम्प्यूटर के बटन दबाकर रिजल्ट प्राप्त कर लें। यह कोई नट –बोल्ट भी नही, जिसे हम गरीबों के जीवन के कारखाने में फिट कर दें और प्रगति नाप लें। इसके कार्या्न्वयन के लिए हमें अपने आस-पास के श्रोतों को ही तलासना होगा। अपने कार्यालय के पद, प्रतिष्ठा के अनुसार टारगेट ग्रुप को खोजना होगा, उनकी मदद करनी होगी। पिछ्ड़े हुए लोगों को विकास की मुख्य धारा मेँ लाना होगा । मेरे मन में यह विचार घूम रहा था।

मेरी इस भावना को मेरे सहयोगी कर्मचारी समझ रहे थे और वे ग्राहकोँ की सेवा के लिए मेरे साथ तत्पर खड़े थे। अंतत: वह दिन भी आया जब इस कार्य के लिए कदम को प्रशंसा पत्र देते हुए महाप्रबंधक जी ने पुरस्कृत किया । मैं गद-गद हो गया। मन ही मन मैं बड़ा प्रसन्न हो रहा था । कदम की आँखों में खुशी के आँसू छलकने के लिए बेताब थे, मैंने उसे गले से लगा लिया। इस वर्ष उसका प्रमोशन ड्यू था । मेरी आँखोँ के सामने बचपन का वह दृश्य दौड़ गया - मेरे पिताजी जो गरीब किसान थे। मुंबई आने के बाद बैंक में खाता खुलवाने के लिए इसी तरह परेशान थे। उनकी भी मदद उस समय किसी बैंक अधिकारी ने की थी तब से उनका सपना था कि मैं बड़ा होकर बैंक में साहब बनूँ। आज वे हमारे बीच नही हैं, पर उनकी यादें जेहन में सदा मौजूद हैं...।

वे अक्सर एक किस्सा सुनाया करते थे -

किसी व्यापारी ने भगवान से पूछा,

"आप क्या – क्या बेचते हैं ?"

भगवान ने कहा,

’’तुम्हारा मन जो चाहता है वो सब कुछ !’’

व्यापारी ने कहा,

"क्या आप मुझे सुख, शांति, खुशी और सफलता देंगे ?"

भगवान मुस्कुराए और बोले,

"वत्स ! मैं सिर्फ बीज बेचता हूं , फल नहीं।"



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama