नरबलि
नरबलि
पानी की घोर कमी पड़ी हुई थी, अकालग्रस्त क्षेत्र था जिसपे एक दिन पहले ही नेता जी का दौरा हुआ था और उन्होनें किसानों को आश्वासन की घुट्टी पिला दी कि, पंद्रहसाल से अधर में पड़ी हुई नहर का काम अगले पांच महीनों में पूरा करवा दिया जाएगा ! ख़ैर ! नेता जी शायद ये भूल गए थे कि, प्यास से मरते हुए इंसान को आश्वासन की घुट्टी से नहीं, पानी की दो बूंदों से जीवनदान दिया जा सकता है।
उसी गाँव में मंगू नाम का किसान था। जो खुद भी इस अकाल की चपेट में आ रखा था। उसके तीन बच्चे थे और बीवी का देहावसान तीसरे बच्चे के जन्म देते ही हो गया था ! कभी उनके साथ हँसा-खेला करता था वो। मगर इस सूखे ने एक बेटी और बेटे को छीन लिया था। सूखे होंठ लिए कालकवलित हुए थे वो दो मासूम ! अब बिस्तर पे गिरने की बारी थी। उसके चार सालां बेटे गोपी का साँस, ताप से तप रहा था। गोपी और मंगू मन-मसोस के उसके पास सिर पकड़कर बैठा हुआ था। आँखों के तरेरों में पानी था। मगर शायद अकाल के डर से वो भी बाहर निकल नहीं पा रहा था।
"पानी ! पानी !...." गोपी धीमे-धीमे बोला तपन की वजह से उसकी आँखें बंद हो चुकी थीं और ये दो लफ्ज़ भी उसने बुदबुदाने के अंदाज़ में बोले थे। "बेटा ! अभी लाता हूँ कहीं से पानी... तू आराम कर " ऐसा बोलकर मंगू बाहर बरामदे में बैठकर रोने लग गया और कहने लगा,"हे दाता ! क्यों तड़पा रहा है इस मासूम को एक-एक बूँद पानी के लिए, इसे उठा ले भगवान्। मैं दुनिया का पहला बाप हूँ जो अपने बच्चे के प्राण हरने की प्रार्थना भगवान् से कर रहा हूँ। धरती माँ ने अब अपना दामन समेट लिया है और ऊपर से बरसात भी नहीं है। कहाँ से लाऊँ इस तड़पते मासूम के लिए पानी।.मंगू ने आँसुओं को पोंछा और ख़ुद को सँभालते हुए अंदर गया तो देखा गोपी अब बुदबुदा नहीं रहा था और खाट पे निश्चेत सा पड़ा हुआ था। मंगू भागकर जब गोपी के पास पहुंचा तो पता चला गोपी का ताप हमेशा के लिए उतर चूका था और अकाल ने एक और घर को ठंडा शरीर उपहारस्वरूप दे दिया था।
गांववालों को जब सरकार से आशातीत सहायता नहीं मिली तो उनके विश्वास ने अन्धविश्वास का गलियारा पकड़ लिया। मुखिया सहित समस्त गाँव, गाँव के बाहर के श्मशान में बैठे एक तांत्रिक के पास गए। "बाबा, ये अकाल का दौर कब ख़त्म होगा ? ऐसा लगता है जैसे ऊपरवाला रूठ गया हो हमसे, कोई उपाय करो आप कोई उपाय करो ।" मुखिया ने बाबा से जब ये बात करी तो बाबा ने कहा,"बेटा ! अगर गाँव को बचाना है तो नरबलि देनी पड़ेगी और मैं जिसे चुनूंगा उसकी ही देनी पड़ेगी।" ये कहते ही बाबा का हाथ घूमा और एक व्यक्ति की ओर आकर रुका !
तयशुदा दिन पे पूरा गाँव इकट्ठा हुआ क्यूँकि पूरे गाँव के कल्याण के लिए मंगू अपने प्राणों को न्यौंछावर करनेवाला था। मंगू को तय जगह लाया गया और उसका सिर साँचे में रखा गया। मुखिया जी ने जल्लाद को इशारा किया, खांडा चला और मंगू का सिर धड़ से अलग होकर दूर पड़ा हुआ था।
नरबलि के चंद दिनों बाद ही बादल उमड़ पड़े और मूसलाधार बरसात शुरू हो गयी। सूखे पड़े हुए तालाब भरने लगे, नदी में चादर चल पड़ी और सब मंगू को आशीष दे रहे थे कि खुद का जीवन देकर वो बाकियों को जीवन दे गया।
आज नौ दिन हो गए बारिश आज भी वही मूसलाधार थी जैसी शुरू हुई थी। अब पानी किनारे तोड़कर घरों में घुस गया था। कल तक चेहरे खिले हुए थे आज उन्हीं चेहरों पे चिंता झलक रही थी। हालत अब बाढ़ जैसे बन गए थे। जिसे लोग देवयोग समझ रहे थे वही अब उनके लिए दुर्योग साबित हो रहा था। उसी दिन रात को बाँध में पानी ज़रुरत से ज़्यादा भर गया था। दरवाज़े खोलने पर भी बाँध में जलस्तर कम न हुआ। पानी के दबाव से बाँध टूटा, एक लहर आयी और पूरे गाँव को लील यहाँ गाँव जलमग्न था।
वहां अफसरशाहों के घर दावत थी क्यूंकि कल उन्होनें सूखे का फंड खाकर डकारा था अब अगला फंड बाढ़ का आनेवाला था !