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Sanjeev Jaiswal

Drama Tragedy

2.6  

Sanjeev Jaiswal

Drama Tragedy

‘‘गुरू -दक्षिणा’’

‘‘गुरू -दक्षिणा’’

14 mins
13.9K


लखनऊ विश्वविद्यालय के पीछे गोमती तट पर दीपा, प्रकाश की गोद में सिर रख कर लेटी हुयी थी । उसकी आंखो में अनगिनत सपने समाये हुये थे और चेहरे पर असीम शांति छायी हुयी थी । प्रकाश के सानिध्य में उसे सुख के साथ - साथ सुरक्षा की अनुभूति भी होती थी ।

  

 अचानक आये तेज हवा के झोंकों ने दीपा की लटों को बिखरा दिया । उसका पूरा चेहरा बालों से यूं ढंक गया जैसे बदली से चांद । प्रकाश ने हाथ बढ़ा कर उसकी बिखरी हुयी लटों को संवारा फिर उसके चेहरे को दोनों हाथों के बीच लेता हुआ बोला,‘‘दीप, हम लोग कब तक यूं छिप - छिप कर मिलते रहेगें । आखिर तुम कब इस प्रकाश के आंगन में प्रकाश बिखरने के लिये राजी होगी दीपा अपनी आंखे प्रकाश के चेहरे पर टिकाते हुये मुस्करायी,‘‘प्रकाश तो दीप का अंतिम लक्ष्य होता है । प्रकाश के बिना उसका असितत्व अर्थहीन है लेकिन .....’’

   ‘‘लेकिन क्या ?’’ प्रकाश अधीर हो उठा ।

    ‘‘तुम तो जानते हो जो रिसर्च मैं कर रही हूँ वह कितनी महत्वपूर्ण है। थीसिस पूरी करने के लिये मेेरे पास 24 घंटों का समय भी कम पड़ रहा है । ऐसे में अगर मैं शादी कर लेती हूँ तो अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाउंगी ’’ दीपा ने अपनी तर्जनी प्रकाश के होठों पर टिका दिया । उसकी आखों में अनेकों दीप जगमगा उठे थे।

     ‘‘हमारे घर में इतने नौकर हैं कि तुम्हें कोई काम करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी । तुम आराम से अपनी थीसिस पूरी करना ’’ प्रकाश ने समझाने की कोशिश की।

                            

   दीपा खिलखिलाते हुये उठ बैठी और कपड़ो में लगी रेत को झाड़ते हुये बोली,‘‘जानती हूँ बुद्धुराजा , लेकिन तुम भी ये जान लो कि मैं जो भी काम करती हूँ पूर्णता के साथ करती हूँ । जब तक थीसिस लिख रही हूँ सिर्फ थीसिस लिखूंगी । जब प्यार करूंगी तो सिर्फ प्यार करूंगी । उस समय मैं किसी नौकर को न तो तुम्हारे पास चाय की प्याली लेकर फटकने दूंगी और न ही किसी को तुम्हारे कपड़े छूने दूंगीं । सिर्फ मैं होउंगी और तुम । हमारे बीच तीसरा कोई नहीं आने पायेगा । इसलिये फिलहाल थोड़ा सा इन्तजार और करो । मेरी थीसिस बस पूरी होने ही वाली है । उसके बाद हम अपने - अपने घर वालों को अपने प्यार के बारे में बता देंगे ।’’

    ‘‘ठीक है भई, जैसी आज्ञा ’’ प्रकाश ने सिर झुकाते हुये इस अंदाज में कहा कि दीपा एक बार फिर खिलखिला कर पड़ी ।

    दीपा और प्रकाश बी.एस.सी. में सहपाठी थे । एम.बी.ए. करने के पश्चात प्रकाश एक मल्टीनेषनल कम्पनी में एक्ज़क्यूटिव हो गया था । दीपा को एम.एस.सी के पश्चात यू.जी.सी. से स्कालरशिप मिल गयी थी । एम.एस.सी. में उसने सर्वोच्च अंक हासिल किये थे । इसलिये प्रोफेसर कुमार सहर्ष उसे अपने अधीन रिसर्च कराने के लिये सहमत हो गये थे ।

     

आर्कषक व्यक्तित्व के धनी प्रोफेसर कुमार खानदानी व्यक्ति थे । पूरा विष्वविद्यालय उनकी योग्यता का कायल था । उनके अधीन रिसर्च करना सभी शोधार्थियों का सपना रहता था । सभी का मानना था कि प्रो0 कुमार अगर मिट्टी पर भी हाथ रख देगें तो वहउ सोना हो जायेगी ।

                              

 दीपा पूरी मेहनत के साथ अपनी थीसिस लिखने में जुट गयी। दो वर्ष तक तो सब ठीक रहा । प्रो0 कुमार उसका मार्ग दर्षन करते रहे । किन्तु तीसरे वर्ष जाने क्यूं वे उपेक्षा दिखाने लगे थे। विष्वविद्यालय की लाईब्रेरेरी के साथ - साथ दीपा इंटरनेट के माध्यम से दूसरे देषों की लाईब्रेरेरियों को भी खंगाल डालती। रात - रात भर जाग कर पेपर्स तैयार करती लेकिन प्रो0कुमार के पास उन्हें पढ़ने का समय ही नहीं रहता । महीनों वे उनकी अल्मारी में अनछुये से पड़े रहते।

                               दीपा की समझ में ही नहीं आ रहा था कि अचानक उनके व्यवहार में परिर्वतन क्यूं आ गया है । उसने कई बार पूछने की कोशिश की लेकिन प्रो0 कुमार बात टाल जाते । तीन वर्ष पश्चात स्कालरशिप मिलना बंद हो गयी लेकिन प्रो0कुमार की उपेक्षा के कारण दीपा की थीसिस अभी तक पूरी नहीं हो पायी थी ।

    

इसी बीच उसकी मुलाकात प्रकाश से हो गयी । दोनों एक दूसरे को पहले से ही पसन्द करते थे । शीघ्र ही दोनों में प्यार के अंकुर फूट गये । प्रकाश जल्दी ही शादी कर घर बसाना चाहता था लेकिन दीपा थीसिस पूरी होने के बाद ही शादी करना चाहती थी ।

    प्रकाश का आग्रह देख उसने दिन रात मेहनत कर थीसिस पूरी कर ली थी । उसे प्रो0कुमार को दिये हुये एक महीना हो गया था लेकिन उन्होने उसे अभी तक देखा भी नहीं था । इससे दीपा काफी परेषान थी । क्योंकि उनकी संस्तुति के बिना उसे पी.एच.डी की उपाधि नहीं मिल सकती थी ।

                               

उस दिन प्रकाश से मिलने के बाद दीपा ने प्रो0 कुमार से स्पष्ट बात करने का निश्चय किया । अगले दिन मौका देख कर उसने कहा,‘‘सर, पिछले एक साल से मैं महसूस कर रही हूं कि आप मुझसे कुछ नाराज हैं ।’’

     ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है ’’ प्रो0 कुमार ने उपेक्षा भरे स्वर में कहा ।

                               ‘‘सर, अगर ऐसा नहीं है तो आप मेरी थीसिस को पढ़ क्यों नहीं रहे है ? बताईये तो क्या कमी है मेरी मेहनत में ?’’ दीपा ने आग्रह किया ।

                               ‘‘कमी बताने से क्या फायदा ?’’ प्रो0कुमार ने अपना चश्मा उतार कर मेज पर रख दिया ।

                               ‘‘सर, आप आदेश करें । मैं उस कमी को हर हालत में पूरा करूंगी ’’दीपा के स्वर से दृढ़ता झलक उठी ।

                               प्रो0 कुमार ने एक उचटती हुयी दृष्टि दीपा के चेहरे पर डाली फिर बोले,‘‘तुमने अपने गाईड को अभी तक गुरू दक्षिणा नहीं दी है ।’’

                               ‘‘बस इतनी सी बात । अगर आप पहले बता देते तो मैं आपकी इच्छा कब की पूरी कर चुकी होती ’’ दीपा हल्का सा मुस्करायी फिर बोल़ी,‘‘बताईये क्या गुरू दक्षिणा चाहिये आपको ?’’

                               ‘‘तुम अपने वादे से मुकरोगी तो नहीं ’’ प्रो0 कुमार ने दीपा की आंखो में झांकते हुये पूछा ।

                               ‘‘सर, अगर आप आज्ञा करें तो मैं एकलव्य की तरह अपना अंगूठा काट कर आपके चरणों में अर्पित कर दूंगी ’’ दीपा की आंखो में सम्मान के चिन्ह उभर आये ।

                               ‘‘एकलव्य का अंगूठा’’ प्रो0कुमार हल्का सा मुस्कराये फिर बोले,‘‘यह उस जमाने की बात थी । भावनाओं में बह कर एकलव्य ने अपना कैरियर बर्बाद कर डाला था । आज के युग में सिर्फ कैरियर बनाने की बात सोची जाती है । आज गुरू और शिष्य दोनो ही प्रगतिशील विचारों के हैं । यदि गुरू कोई दक्षिणा लेता है तो बदले में शिष्य के कैरियर में चार चांद लगा देता है ।’’

                               ‘‘जानती हूं सर, आपके अधीन रिसर्च पूरी करने वाले को एक सम्मानजनक मुकाम स्वमेव हासिल हो जाता है । इसीलिये तो मैं आपकी आज्ञा पालन करने के लिये तत्पर हूं ’’ दीपा के स्वर से श्रद्वा झलक उठी ।

                               यह सुन प्रो0 कुमार ने अपनी आंखो को बंद करके चंद क्षणों तक कुछ सोचा फिर फुसफुसाते हुये बोले,‘‘मुझे ज्यादा कुछ नहीं चाहिये । सिर्फ उतना ही चाहिये जितना आज कल के दूसरे सुयोग्य गाईड लेते हैं ।’’

                               ‘‘क्या ?’’

                               ‘‘मेरे घर वाले कल बाहर जा रहे हैं । सिर्फ दो रातों के लिये तुम मेरे घर आ जाओ । तुम्हारी थीसिस क्लियर हो जायेगी ’’ प्रो0 कुमार ने कहा ।

                              जैसे अनेकों ज्वालामुखी एक साथ धधक उठे हों । जैसे सैकड़ों बिजलियां एक साथ गिर पड़ी हों । जैसे संपूर्ण ब्रहांड में विस्फोट हो गया हो । हतप्रभ दीपा का मुंह खुला का खुला रह गया । पलकें जैसे झपकना भूल गयीं । उसकी संपूर्ण चेतना जड़ हो गयी । उसे विश्वाश ही नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी उसके कानों ने सुना है वो सत्य भी हो सकता है । उसके कानों में पिघला हुआ शीशा खौलने लगा था । काश ऐसे वाक्यों के स्वर ध्वनिहीन हो जाते या कान श्रवणहीन ।

                               ‘‘तुमने कोई उत्तर नहीं दिया ?’’ तभी प्रो0 कुमार ने उसकी तंद्रा भंग दी ।

                               संज्ञाशून्य दीपा की आंखो से अविरल अश्रुधार बह निकली । बहुत मुश्किल से उसके कंपकपाते होठों से स्वर फूटे,‘‘सर, मैं आपकी बेटी के समान हूँ ।’’

     ‘‘ओह, कम आन बेबी, बी प्रेक्टिकल । आज कल गुरू - शिष्य का रिश्ता दोस्ती का होता है ’’प्रो0 कुमार भद्दे ढंग से मुस्कराये फिर अचानक ही उनका स्वर सख्त हो गया,‘‘फैसला तुम्हारे हाथ में है । अगर मेरे साथ दोस्ती निभा दोगी तो मैं तुम्हारी जिंदगी संवार दूंगा वरना अपनी इतने सालों की मेहनत पर पानी फिरा समझना ।’’

   दीपा ने कोई उत्तर नहीं दिया। मुँह पर हाथ रख वह दौड़ती हुयी वहां से चली गय । सारे आदर्षो की छवि एक झटके में खंडित हो गयी थी। पुरूषों ने सदैव से स्त्री को उपभोग की वस्तु समझा है । प्रो0 कुमार ने भी उसे मात्र एक स्त्री ही समझ। उसकी प्रतिभा, उसकी लगन, उसकी योग्यता और मेहनत का कोई मूल्य नहीं उनकी दृष्टि में।

  वह इतने वर्षो से एक आदर्श गुरू के रूप में उन्हें पूजती चली आ रही है किन्तु वे देवता नहीं वासना के पुजारी निकले। दीपा को अपना वजूद असितत्वहीन होता सा प्रतीत हो रहा था। प्रो0 कुमार की दृष्टि में वो सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाली प्रतिभा सम्पन्न छात्रा नहीं अपितु जिंदा गोश्त मात्र था । नारी नहीं अपितु पुरूषों के तन की ज्वाला शांत करने वाला यंत्र मात्र ? यही मूल्यांकन है उसके आज तक के श्रम का ? यही सम्मान है उसकी प्रतिभा का?

 दीपा जितना सोचती उसके मन की पीड़ा उतना ही बढ़ती जाती। अपमान की अधिकता से उसकी आंखो के आसूं सूख चले थे । उसकी रगों में दौड़ रहा खून बर्फ होने लगा था । जिस दुनिया में उसका कोई महत्व ही नहीं उसमें जीना व्यर्थ है । ऐसे अपमान से मृत्यु श्रेयकर है । उसे अपने जीवन का अंत कर लेना चाहिये । शायद उससे प्रो0 कुमार को कोई सीख मिले । अपनी करनी पर उन्हें शर्म आये । किन्तु यदि ऐसा नहीं हुआ तो ? क्या कुशल शिकारी की भांति वे किसी दूसरे को अपने जाल में नहीं फंसा लेगें ? दीपा की सोच को एक झटका सा लग।

 उसे इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठानी चाहिये । प्रो0कुमार को उसकी करतूतों का दंड मिलना चाहिये । लेकिन कैसे ? विश्वविद्यालय के प्रबंध तंत्र पर उनकी पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो चाह कर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी । उल्टे उसका कैरियर तबाह हो जायेगा । तो क्या उसे परिस्थितयों से समझौता कर लेना चाहिये ? शोषण को नारी की नियत मान लेना चाहिये ? दीपा चाह कर भी कोई निर्णय नहीं कर पा रही थी ।

 वह रात भर करवटें बदलती रहीं । एक के बाद एक ख्याल आते रहे । अगले दिन जब वह उठी तो अपनी दिशा निर्धारित कर चुकी थी । उसने दोपहर में प्रो0 कुमार को फोन किया,‘‘सर, आप मुझसे दो रात के लिये घर आने के लिये कह रहे थे लेकिन मैं पूरी जिंदगी के लिये आपके घर आने के लिये तैयार हूँ ।’’

  ‘‘इसकी जरूरत नहीं है । तुम सिर्फ दो रातों के लिये आ जाओ, इतना ही बहुत होगा ’’ प्रो0 कुमार ने हंसते हुये कहा।

       ‘‘ओ.के. सर, मैं शाम को पहुंच जाउंगी ’’ दीपा ने कहा और फोन काट दिया ।

    इसके बाद उसने प्रकाष के आफिस फोन किया,‘‘प्रकाश, मैं आज ही तुम्हारे घर वालों से मिलना चाहती हूँ ।’’

    ‘‘लेकिन आज तो मैं आफिस के काम से बाहर जा रहा हूँ ’’ प्रकाश ने कहा ।

   ‘‘प्रकाश प्लीज, अपना कार्यक्रम बदल लो । क्योंकि मैं आज ही अपनी जिंदगी के बारे में फैसला करना चाहती हूँ ’’ दीपा ने जोर दिया ।

   ‘‘लेकिन......’ ‘‘क्या मेरे लिये तुम इतना नहीं कर सकते ?’’दीपा का स्वर कातर हो उठा ।

      ‘‘तुम्हारे लिये तो मैं अपनी जान दे सकता हूं । घर वालों का समाना करना तो बहुत मामूली बात है ’’ प्रकाश हंस पड़ा ।

       ‘‘ओ.के. मैं पांच बजे तुम्हारे आफिस के सामने पहुंच जाउंगी ’’ दीपा ने कहा और फोन काट दिया ।

        दीपा ने अपनी भूमिका तो तय कर ली थी किन्तु उसके अन्र्तमन में हलचल मची हुयी थी । समय काटे नहीं कट रहा था । घड़ी की सूईयां भी आज कुछ ज्यादा ही धीमे चल रही थीं । शाम पांच बजे वह तैयार हो कर प्रकाश के आफिस के सामने पहुंच गयी प्रकाष अपनी कार में बैठा उसी की प्रतीक्षा कर रहा था । उसे लेकर तुरन्त अपने घर की ओर चल पड़ा । रास्ते भर दीपा मौन रहीं प्रकाश ने भी उसे टोंकना उचित नहीं समझा । सोचा शायद वह अपने आप को आने वाली स्थित के लिये तैयार कर रही है।

                               अपने विशाल बंगले के प्रांगड़ में पहुंच प्रकाश ने कार रोकी और दीपा के कंधे पर हाथ रख स्नेह भरे स्वर में बोला,‘‘ दीपा, घबराना बिल्कुल नहीं । डैडी बहुत अच्छे  हैं । मुझे विश्वाश है कि वे तुम्हें अवश्य स्वीकार कर लेंगें ।’’

                               ‘‘मैं तुम्हारे डैडी को बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ ’’दीपा ने अपनी बड़ी - बड़ी आंखो को उठा कर प्रकाश की ओर देखा ।

                               ‘‘जानोगी क्यों नहीं । उनकी स्टूडेंट जो रह चुकी हो ’’ प्रकाश मुस्कराया ।

                               ‘‘स्टूडेंट रह नहीं चुकी हूं बल्कि आज भी हूँ ।’’

                               ‘‘क्या मतलब ?’’

                               ‘‘मैं अपनी रिसर्च उन्हीं के अंडर में पूरी कर रही हूँ ’’ दीपा ने धीमे स्वर में बताया ।

                               ‘‘तुम डैडी के अंडर में रिसर्च कर रही हो ?’’ प्रकाश उछल पड़ा फिर दीपा को घूरते हुये बोला,‘‘मैनें तुमसे कितनी बार गाईड का नाम पूछा था लेकिन तुमने बताया क्यों नहीं था ?’’

                               ‘‘मैं अपनी रिसर्च अपनी मेहनत और योग्यता के बल पर पूरा करना चाहती थी । अगर मैं तुम्हें गाईड का नाम बता देती तो तुम अपने डैडी से मेरी सिफारिश  अवश्य करते फिर मेरे मन में जिंदगी भर एहसास बना रहता कि पी.एच.डी. की डिग्री मुझे अपनी योग्यता से नहीं बल्कि तुम्हारी सिफारिश से मिली है ’’ दीपा का स्वर अचानक ही गंभीर हो उठा ।

                               ‘‘यू आर ग्रेट दीपा । रियली यू आर ग्रेट । आज डैडी तुम्हें नयी भूमिका में देख कर बुरी तरह चौकेंगे ’’ प्रकाश ने स्नेह से दीपा के कंधे पर हाथ रख उसे नीचे उतरने का ईशारा किया ।

                               कार का दरवाजा बंद कर प्रकाश , दीपा को लेकर घर के भीतर पहुंचा । दीपा के साथ प्रकाश को आता देख प्रो0 कुमार बुरी तरह चौंक पड़े । उनकी समझ में ही नहीं आया कि ये दोनों एक साथ कैसे आये । बहुत मुश्किलों से उन्होने अटकते हुये कहा,‘‘प्रकाश, तुम तो आज आफिस से ही सीधे बाहर जाने वाले थे ।’’

                               ‘‘हां, लेकिन दीपा ने जिद की कि मैं आज ही उसकी मुलाकात आपसे करवा दूं ’’ प्रकाश ने मुस्कराते हुये बताया ।

                               ‘‘कैसी मुलाकात ?’’ प्रो0 कुमार का स्वर किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा ।

                               ‘‘सर, आप चाहते थे कि मैं केवल दो रातों के लिये आपके पास आ जाऊँ लेकिन आपका बेटा पूरी जिंदगी के लिये मुझे यहाँ लाना चाहता है’’ दीपा ने एक - एक शब्द पर जोर देते हुये कहा ।

      सड़ाक....सड़ाक......सड़ाक......जैसे नंगी पीठ पर चाबुक पड़ रहे हों । प्रो0 कुमार का सर्वांग कांप उठा । उन्होने कभी स्वप्न में भी ऐसी स्थित की कल्पना नहीं की थी । दीपा ने एक झटके में उनके चेहरे का नकाब नोच डाला था । अपने बेटे के सामने ही उन्हें नंगा कर दिया था । उनका चेहरा सफेद पड़ गया । ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सारा रक्त चूस लिया है ।

                               अवाक तो प्रकाश भी रह गया था । चंद क्षणों तक तो उसकी समझ में ही नहीं आया कि क्या करे । फिर उसने दीपा की बाहों को पकड़ झिंझोड़ते हुये कहा,‘‘दीपा, तुम होश में तो हो । तुम्हें मालुम है कि तुम क्या कह रही हो ?’’

                               ‘‘अच्छी तरह मालुम है लेकिन शायद तुम्हें नहीं मालुम कि तुम्हारे डैडी रिसर्च पूरी कराने के लिये मुझसे क्या गुरू - दक्षिणा मांग रहे थे ’’दीपा ने सर्द स्वर में कहा ।

      दीपा की बांह छोड़ प्रकाश ने उलझन भरी दृष्टि से प्रो0कुमार की ओर देखा । उसे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि दीपा जो कुछ कह रही है वह सत्य भी हो सकता है । प्रो0 कुमार की आंखो में बेटे की दृष्टि का सामना करने की ताब नहीं थी । उन्होने अपनी आँखें झुका लीं ।

                ‘‘डैडी.....’’ अविश्वास से प्रकाश का स्वर कांप उठा ।

                               ‘‘प्रकाश, अगर मैं चाहती तो जिंदगी भर खामोश रहती लेकिन इससे प्रो0 कुमार का हौसला बढ़ जाता । वे किसी दूसरे शिकार को पकड़ लेते और गुरू - शिष्य के पवित्र रिश्ते को कलंकित करते रहते । इसलिये मैंने सच्चाई उजागर करना जरूरी समझा । अगर हो सके तो मुझे माफ कर देना । मैं तुम्हारी जिंदगी से दूर जा रही हूं ’’ दीपा ने प्रकाश की ओर देखते हुये कहा । उसकी आंखो में अश्रुकण झिलमिला उठे थे ।

                               ‘‘तुम माफी किस बात की मांग रही हो ’’ प्रकाश का स्वर भीग उठा । पल भर के लिये उसके चेहरे पर तूफान के चिन्ह छाये फिर वह दृढ स्वर में बोला,‘‘दीपा, आज तक मैं तुमसे प्यार करता था लेकिन आज मेरे मन में तुम्हारी इज्जत कुछ और बढ़ गयी है । मैं हर हालत में तुम्हें स्वीकार करना चाहता हूं ।’’

    ‘‘अब यह संभव नहीं हो सकता ’’ दीपा ने फैसला सुनाया ।

 ‘‘क्यों संभव नहीं हो सकता ’’ प्रकाश तड़प उठा ।

      दीपा ने स्नेह भरी दृष्टि से प्रकाश की ओर देखा फिर शांत स्वर में बोली,‘‘यदि सत्य उजागर किये बिना मैं तुमसे शादी कर लेती तब तुम्हारे डैडी जिंदगी भर मुझसे आँख न मिला पाते । वे भले ही गुरू का धर्म भूल गये हों लेकिन मैं शिष्या का धर्म नहीं भूली हूं । इसलिये अपनी बहू के सामने आजीवन जलील होने की जलालत से मैं उन्हें मुक्ति देती हूँ । यही मेरी गुरू दक्षिणा होगी । ’’

           इतना कह कर वह तेजी से वहाँ से निकल गयी । किसी में उसको रोक पाने का साहस न था ।       

                               

                                                                               .....


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