पुनर्जन्म
पुनर्जन्म
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मुबारक हो . . ! बेटी हुई है" नर्स ने बधाई देते हुए आनंद को ये ख़ुशख़बरी सुनाई । पिछले 4 घण्टों से चिंता में डूबे हुए आनंद का चेहरा अब खिल उठा था । ख़ुशी से उसकी आँखें छलक आईं । उसने जेब से 500 का नोट निकालकर नर्स को दिया और कहा "पूरे अस्पताल में मिठाई बंटवादो . . " एक पल गंवाये बिना आनंद अपनी पत्नी से मिलने वार्ड में चला गया । इतने सालों बाद आज आनंद ने निधि के होंठों पर मुस्कुराहट देखी । उसकी आँखों की चमक देखकर लगा जैसे उसी का दूसरा जन्म हुआ हो । आनंद ने अपनी फूल सी बच्ची के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और दूसरे हाथ में निधि का हाथ थामकर कहा" थैंक्स निधि . . आज तुमने मुझे ज़िन्दगी का सबसे अनमोल तोहफा दिया है, एक परी-सी बेटी देकर। " " नहीं आनंद . . थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए, एक नई ज़िन्दगी देने के लिए . . वरना मैं तो . . . . "
पाँच साल पहले . . .
निधि एक मिडिल-क्लास फैमिली में पली बढ़ी थी । पर उसके सपने . . सपने तो जैसे आसमान छूते थे । बाकी लड़कियों से कुछ अलग थी . . एथलीट बनना चाहती थी । शर्मा जी की सरकारी दफ्तर में एक मामूली सी नौकरी थी और ज़मीन-जायदाद के नाम पर एक छोटा सा मकान। इन हालातों के बावजूद निधि के हौसले कायम थे। इंटरमीडिएट करने के बाद ही उसने ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया था । इसी दौरान उसकी मुलाकात कोच आनंद से हुई। आनंद एक अच्छे कोच के साथ-साथ अच्छा इंसान भी था। सपने साकार करने में दूसरों की मदद करना जैसे उसका शौक था । निधि और आनंद में मुश्किल से 4 साल का फासला होगा। दोनों काफी अच्छे दोस्त बन गए थे। एथलीट बनना अब निधि के लिए सिर्फ एक सपना ही नहीं बल्कि ज़िन्दगी का मकसद बन गया था। और अपने मकसद को पूरा करने के लिए वो दिन-रात एक कर देती थी। निधि के इसी जूनून और जज़्बे से आनंद बहुत ही प्रभावित था . . और उसे प्रोत्साहित करने में आनंद हमेशा आगे रहता था। परिवार से भी पूरा सपोर्ट मिला, आखिर अपने माँ-बाप की इकलौती संतान जो थी । और फिर . . फिर क्या . . उसके सपने ऊंची उड़ान भरने लगे । और एक लम्बे इंतज़ार के बाद एक स्टेट लेवल चैंपियनशिप के बारे में सुना। फिर क्या था . . जुट गयी उसकी तैयारी में । आखिर निधि के लिए ये पहला मौका था खुद को साबित करने का।
आज सुबह 9 बजे की ट्रेन है . . हापुर से लखनऊ के लिए। निधि आज काफी जल्दी उठ गयी थी . . या यूँ कहें कि रातभर सोई ही नहीं। सपने कहाँ किसी को सोने देते हैं भई . . घर में तो जैसे आज हलचल सी मच गयी थी। " बेटा सारा सामान ठीक से पैक कर लिया ना ।" " हाँ माँ . . कर लिया । " " और तुम्हारे स्पोर्ट्स शूज . . ? रुको मैं लेकर आता हूँ . . ।" "आप भी न पापा . . खामखाँ इतनी फ़िक्र करते हैं . . मैंने रात को ही सब रख लिया था . . स्पोर्ट्स शूज भी. .।" " निधि . . ये ले दही खाकर जा। " " जी माँ . . " और इतने में शर्मा जी बैग उठाते हुए. . " अब बस भी करो भाग्यवान, कहीं तुम्हारे दही-शक्कर के चक्कर में निधि की ट्रेन न छूट जाये। " शर्मा जी का उत्साह देखकर लग रहा था जैसे चैम्पियनशिप के लिए इन्हीं को जाना हो । "ये बैग उठाकर आप कहाँ जा रहे हैं पापा . . ?" "मैं चलता हूँ ना साथ, तुम्हे स्टेशन तक छोड़ने . ." " अरे . . . आपका तो डॉक्टर के साथ अपॉइंटमेंट है न आधे घंटे में, आज चेक-उप के लिए जाना है . . मैं खुद चली जाऊँगी डोंट वरी . . आपकी लाडली अब बड़ी हो गयी है ना . . "
निधि ने स्टेशन के लिए टैक्सी की । आख़िरकार . . वो अपनी मंज़िल की तरफ़ पहला कदम रखने जा रही थी . . उसके सपनों को जैसे पँख मिल गए थे । 9 बजने में सिर्फ़ 35 मिनट बाकी थे। निधि की नज़रें बार-बार घड़ी की सुई पर आकर अटक जाती थी । अब तो 35 मिनट भी 35 घण्टे के बराबर लग रहे थे। अचानक टैक्सी रुक गयी . . " मैडम, लगता है गाड़ी ख़राब हो गयी है " । " क्या . . . ?? कितना टाइम लगेगा ठीक होने में ? " " कम से कम 15 मिनट लग जाएँगे " ड्राईवर ने चेक करके बताया। " ओफ्फोह. . ! गाड़ी ठीक होने तक का इंतज़ार करुँगी तो लेट हो जाऊँगी . . थोडा आगे चलकर दूसरी टैक्सी लेती हूँ । " यही सोचकर निधि तेज़ क़दमों से आगे बढ़ने लगी । बस कुछ ही कदम चली थी कि बाइक पे सवार दो बदमाश आकर उसे छेड़ने लगे। निधि ने अपने कदम और तेज़ी से बढ़ाये, पर वो लोग तो जैसे पीछे ही पड़ गए थे । उन बदमाशों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में वो ग़लत रास्ते पर मुड़ गयी । उसने पीछे मुड़कर देखा, बाइक अब भी पीछा कर रही थी । निधि दौड़ने लगी . . और तेज़ . . और तेज़ . . पर बाइक से कहाँ जीत पाती । उन बदमाशों ने आखिर निधि को घेर लिया, वो चीखी . . चिल्लाई . . पर उसकी सुनता कौन . . उस सुनसान रास्ते पर . . वो संघर्ष करती रही, लड़ती रही और वो हैवान उसकी अस्मत से खिलवाड़ करते रहे । कितनी बिलख रही थी . . गिड़गिड़ा रही थी . . मुझे छोड़ दो. . मुझे जाने दो . . जाने दो मुझे . . पर उसकी एक न सुनी गयी । कुचल के रख दिए उसके सारे सपने . . अपनी हवस के तले . .। इतना ही नहीं , वो बदमाश निधि के दाहिने पैर को बाइक से रौंदते हुए चले गए। और वो बस . . कराहती रही . .
इस हादसे ने उसे इस कदर झकझोर के रख दिया कि उसकी रूह तक कांप गयी थी । मर गयीं थी वो अंदर से । बस एक ज़िंदा लाश बची थी । अब क्या करेगी निधि . .? सब कुछ तो ख़त्म हो गया था । उसकी दुनिया . . उसके सपने . . सब बर्बाद हो गया था. . सब कुछ . . अब जीने की कोई वजह नहीं थी उसके पास । घर भी कैसे वापस जाती. . क्या कहती माँ-पापा से . . कि "जीतने" गयी थी और "हार" के आ गयी । कराहते हुए, घिसटते हुए, इसी उधेड़बुन में लगी. . पहुँच गयी वो.. रेल की पटरी पर . . लहूलुहान हालत में . .। सामने से एक ट्रेन रफ़्तार में चली आ रही थी, जैसे उसी को कुचलने आ रही हो । अब निधि और ट्रेन के बीच कुछ ही मीटर का फासला रह गया था। बस . . निधि उस ट्रेन के नीचे आने ही वाली थी कि अचानक किसीने हाथ पकड़कर उसे खींच लिया । "आनंद . . तुम . ? " " निधि ये क्या करने जा रही थी तुम?" आनंद ने निधि को झकझोरते हुए कहा । निधि कुछ बोल नहीं पायी . . बस . . कुछ देर स्तब्ध सी बैठी रही और फिर फूट पड़ी । "सब कुछ ख़त्म हो गया आनंद . . सब कुछ . . "आनंद ने अपनी जैकेट उतारकर निधि को पहनायी और तुरंत अस्पताल ले गया । ऑपरेशन के बाद वो निधि के पास जाकर बैठा । किसी ने न कुछ कहा न सुना । निधि अपने पैर की तरफ देखकर रोये जा रही थी । आनंद ने उसे अपने सीने से लगा लिया . .जैसे कहना चाह रहा हो . .मैं हूँ ना . .सब ठीक हो जायगा . .
उस दिन निधि का "पुनर्जन्म" ही तो हुआ था । उसके सपने तो मर ही गए थे, पर ज़िन्दगी आनंद ने बचा ली थी । आज उनकी शादी को लगभग 4 साल हो गए । निधि आनंद के साथ ख़ुश तो है, पर आज भी उसके ज़ख्म पूरी तरह से भरे नहीं । जब भी वो घर के बाहर बच्चों को दौड़ते-भागते देखती है, तो उसका दिल बैठ सा जाता है , एक आह के साथ . . अक्सर ये बात उसे कचोटती रहती है . . कि काश वो दर्दनाक हादसा उसके साथ ना होता, तो आज वो अपना सपना जी रही होती . .एक एथलीट बनकर . .
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