अस्तित्व
अस्तित्व
बैठी थी वो दरिया किनारे सीढ़ियों पर पानी में पैर डाले। पहाड़ी नदी पानी इतना साफ़ की नीचे के पत्थर भी दिखाई दे रहे थे। लड़की के पास एक पैकेट था जिसमे लइया थी थोड़ी। बहुत उदास और गंभीर थी वो। माथे पर चिन्ता की रेखाएँ साफ दिख रही थी। लगातार पानी में देखे जा रही थी। उसके पाँवो के पास बार बार छोटी छोटी मछलियाँ आतीं और वो लइया डाल देती। पानी में मछलियाँ इधर-उधर हो जाती।
सुबह से होने वाली सारी बातें उसके दिमाग में घूम रही थी। बहुत ख़ुश होकर माँ को गाड़ी से उतरते हुए ही आवाज़ लगाती हुई घर में घुसी। अचानक उसके पाँव ठिठक गए माँ की कमजोर सी आवाज़ सुनकर। कौन है महक बिटिया ? तब तक अंदर पहुँच गई। देखा माँ उठने का प्रयास कर रही है। बगल में पापा भी लेटे हैं। बीमार से, हतप्रभ रह गई और एक साथ ढेर सारे सवाल कर बैठी। ये क्या हुआ आप लोगों को, और दरवाज़ा भी बंद नहीं रहता, बीमार हैं तो मुझे बताया क्यों नहीं, और भाई कहाँ है ?
माँ ने कहा, धीरज रखो, पानी वानी पिओ, क्या एकदम सवालों की झड़ी लगा दी !
उसने कहा, पहले बताओ, मैं पानी बाद में पी लूंगी।
बहुत जिद्दी हो तुम, बताती हूँ, तुम्हारे जाने पर सब ठीक था। जब तक तुम्हारा भाई यहाँ पढ़ रहा था तुम भी आती जाती रहती थी। बच्चों के बाद जवाँई साहब ने तुम्हारा आना भी साल दो साल पर कर दिया। इस बार तो तुम चार सालों बाद आई। इस बीच बहुत कुछ हो गया। तुम्हारे पापा रिटायर हो गए (वो क्लास थ्री के ही सही सरकारी नौकरी में थे तो घर कस्बे में होने से अच्छी तरह चल जाता था) और तुम्हारे भाई ने ज़िद पकड़ ली की मुझे विदेश जाना है, तो जो भी सरकारी पैसा मिला उसमें ख़र्च हो गया।
हमने सोचा पेंसन में हम रह लेंगे लेकिन फिर बीमारीयों ने घेरना शुरु किया तो सब कम पङने लगा। फ़ोन भी हटवा दिया, जिससे तुमसे भी कम बात होने लगी। पड़ोस से कितनी बात होती। तुम्हें नहीं बताया कि बेकार परेशान होगी और जवाँई साब नाराज़ होंगे, कामवाली आती है झाड़ू बरतन कर देती है, कभी हिम्मत हुई तो कुछ बना लेती हूँ या कोई पड़ोसी आकर कभी बना जाते हैं और दरवाज़ा क्या बंद करना। क्या है यहाँ, बंद कर दूँ तो खोले कौन !
महक ने पूछा, भाई ?
उसका क्या बोलूँ, शुरू में कुछ दिनों तक फ़ोन आता था, फिर बंद हो गया। नंबर मिलाने पर वो गलत आता है।
बहुत अनमनी सी उठी। खाना बनाया, पापा और माँ को खिलाया और ड्राईवर को वापस भेज दिया कि साब को बोलना मैं बाद में आ जाऊँगी और चल पड़ी नदी किनारे। वो सोच ही रही थी क्या करूँ।
उसके पति भी कहने को सभी सम्पन्न और पढ़े लिखे अच्छे पैसे वाले थे लेकिन दिमाग़ से निहायत दकियानूसी। पति इतना दुष्ट की हाथ उठाने से भी बाज़ नहीं आता, अचानक किसी बाइक के रुकने की आवाज़ आई और किसी ने आवाज़ लगाई,
ओ बेला महकी तुम हो क्या ?
उसने पलट कर देखा उसके बचपन का दोस्त देवेश था वो उसे ऐसे ही पुकारता था।
अरे लंगूर, तुम यहाँ कहाँ, सूँघते पहुँच गए, मुझे मालूम है कि तू परेशान होती है तो यहीं आकर बैठती है। वो बैठ गया उसके पास।
बता, चाचा-चाची को ले कर परेशान है न ! मैं भी क्या करूँ आते-जाते उनकी खबर ले लेता हूँ। दवाइयाँ वगैरह ला देता हूँ। कभी चाय वाय पिला देता हूँ। मुझे भी रोज़ बाइक से शहर नौकरी को जाना होता है। घर की जिम्मेदारियाँ हैं। छोटी वाली की शादी अभी करनी ही है। उसने पूछा तुम्हारी शादी हुई ?
बात को हल्का करने के लिए उसने कहा, बोला तो था कि मुझसे कर ले। यहीं रहेंगे दोनों। तो तुझे ही तो बड़े शहर जाना था ! महक उसे मारने दौड़ी। लंगूर कहीं का। बड़ा आया मुझसे शादी करने वाला। उनकी ये नोक झोंक बचपन से चली आ रही थी ! अचानक उसने कहा। मैंने सोच लिया है क्या करना है। तुम मेरी मदद करोगे ? बिल्कुल। तुम बोलो, तो उसने कहा, अभी तो तुम पूरे समय के लिए उनकी देखभाल और खाना खिलाने के लिए किसी का इंतज़ाम कर दो। पैसे मैं भेजूँगी।
एक दृढ़ निश्चय से उसका चेहरा भरा हुआ था ! दो-तीन दिन बाद वो पति के पास चली गई। वहाँ जाकर उसने कॉलोनी में ही आठ-दस बच्चे पढ़ाने के लिए घर में ही बुलाने लगी जबकि पति और घर वालों के व्यंग रोज़ सहन करने पड़ते ! ग्रेजुएट तो वो थी ही, मनोबल से उसने बी एड भी कर लिया तो जॉब मिल गई उसे। इंटर कॉलेज़ में दो कमरे का घर लेकर माँ-पापा को वहीं ले आई। पी एच डी की भी शुरुआत उसने कर ही दिया था।
इधर पति से रिश्ते बिलकुल बिगड़ चुके थे। अपने बच्चों को लेकर वो अपने माँ पापा के पास ही चली आई। देवश बराबर एक दोस्त की तरह उसकी मदद करता रहा। लोग ताने मारते रहे लेकिन अब उसे किसी की परवाह नहीं थी।
समय के साथ पी एच डी भी पूरी हो गई नौकरी भी अच्छी मिल गई।
समय के साथ माँ पापा दुनिया में नहीं रहे !
एक बार देवेश आया उसने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा। महक बुरी तरह नाराज़ हो गई। उसने कहा, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की। क्या लोगों की बातों को सच साबित करना चाहते हो कि मेरा तुम्हारा रिश्ता ग़लत है या सारे मर्दों की तरह ये सोचते हो कि बिना तुम्हारे हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं। फिर मत आना तुम मेरे घर। मेरे ख़्याल से तुम्हें ज़्यादा ख़ुशी मिलेगी जब मैं अपने वज़ूद के साथ गर्व से सिर उठा कर रहूँगी।
पति ने भी कोशिश की, लेकिन अब वो आत्मसम्मान और अपने वज़ूद का मतलब समझ गई थी।।