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manisha sinha

Abstract

4.8  

manisha sinha

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कल आज और कल

कल आज और कल

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आज के घर जश्न का माहौल है। कोई ख़ास मेहमान आने वाले है। साज सजावट ,पकवान से घर जगमगा रहा है। आज ने घर फूलों से सजवाया है। दुकान से जाकर हर संभव खाने के पकवान लाए गए हैं। सभी घर में बहुत उत्सुक हैं। बड़े दिनों के इंतज़ार के बाद यह दिन आया था। आज और उसका परिवार तय समय पर तैयार होकर मेहमान का इंतज़ार करने लगे।

तभी आज के घर मुख्य दरवाज़े से फ़ोन आया, और यह सूचित किया गया कि आपसे मिलने कुछ लोग आए हैं, क्या, उन्हें आपके घर भेज दूँ ?

आज ने फ़ौरन भेजने के लिए कहा। फिर वह अपने परिवार के साथ दरवाज़े पर खड़ा उनका इंतज़ार करने लगा।

थोड़ी देर में लिफ़्ट का दरवाज़ा खुला और भूत और भविष्य अपने अपने परिवार के साथ आते हुए दिखाई दिए। आज ने परिवार सहित आगे बढ़ उनका स्वागत किया और अंदर आने को कहा।

फिर आज ने भूत और भविष्य को परिवार सहित बैठने के लिए कहा।भूत आज की भव्यता देख जहाँ अचंमभित था वही भविष्य आज को देख ख़ुद पर गर्व महसूस कर रहा था।आज भूत और भविष्य को सामने देख बड़ा उत्साहित था।भूत की भी यही प्रतिक्रिया थी।मगर भविष्य इन सब से परे अपनी ही दुनिया में गुम था।

थोड़ी देर इधर उधर की बातें होने के बाद आज ने उन्हें खाने के लिए कहा। आज और उसकी पत्नी ने दुकान से लाए व्यंजन मेज़ पर सज़ा दिए और उन्हें ख़ुद से लेकर खाने के लिए कहा।

भूत जब से आया था तब से ही थोड़ा नाराज़ बैठा था , उसे आज का यह प्रस्ताव सुनकर और ग़ुस्सा आ गया कि आप ख़ुद से ले ले। मगर भूख लगी होने के कारण पूरा परिवार चुपचाप खाना खाने लगा। भूत और उसके परिवार के चेहरे पर ग़ुस्सा साफ़ झलक रहा था। वहीं भविष्य ने बिलकुल व्यवहारिक तरीक़े से खाने से मना कर दिया। आज के कारण पूछने पर कहा—-हम सिर्फ़ अपनी मर्ज़ी का खाना खाते है या काम करते हैं।और हमें इस वक्त मन नहीं। हम किसी के कहने से कुछ नहीं करते। आज को यह बात बहुत अटपटी लगी, मगर उसने कुछ ना कही।

खैर! खाने पीने का सिलसिला ख़त्म होने के बाद तीनों फिर से बैठक रूम में आकर वह चर्चा शुरू की जिसके लिए वह आज के घर आए थे।वे समय और उसके बदलते हालात पर चर्चा करने आए थे। तभी आज ने भूत से जो उनसे उम्र में बड़ा था उन्हें अपनी बात रखने को कही।मगर भविष्य ने उन्हें टोकते हुए कहा, कि बात पहले मैं शुरू करूँगा। पहला हक़ योग्यता के हिसाब से मिलनी चाहिए, उम्र के हिसाब से नहीं। और मैं तुमसे ज़्यादा योग्य हूँ। वैसे भी तुमलोग तो बात करने लायक ही नहीं हो। सारे चीज़ों का इतना दुरूपयोग किया है कि हमारे लिए ना पीने को पानी है ना साँस लेने के लिए हवा। हमें हर वक्त मासक लगाकर रखना पड़ता है।

तभी भूत ने कड़े शब्द में इसका विरोध करते हुए कहा,पीने को पानी, हवा, रहने को जगह की कमी हमारी वजह से नहीं तुमलोगो की सोच का नतीजा है। ख़ुद को हर तरीक़े की सुख सुविधा देने की कोशिश में तुम इतने भावनाशूनय हो गए कि पता ही नहीं किसके साथ कैसे पेश आए और किसका कैसे उपयोग करें।

पहले जब किसी के घर जाते थे तो पूरा परिवार खुले बाँहों से स्वागत करता था। आज के घर आने के लिए मुझे

इजाज़त लेनी पड़ी। हम ऐसा नहीं करते थे। किसी के यहाँ जाओ तो घर के लोग ख़ुद से खाना बनाकर परोसते थे। आज ख़ुद से खाना लेकर खाओ। पानी पीने के लिए एक एक पानी की बोतल पकड़ा दिया।ना गिलास ना कुछ और बची हुई पानी को फेंक दिया।

हम ऐसा नहीं करते थे। जिसे जितनी पानी चाहिए पूछकर बड़ी इज़्ज़त से उसे देते थे।यह पानी और खाने की बात नहीं किसी को इज़्ज़त देने या समझने की बात है।

फिर भविष्य ने चिढ़ते हुए कहा—-हम अपना काम ख़ुद करते है। किसी पर आश्रित नहीं रहते।

ये आश्रित की नहीं लगाव की बात है—-भूत ने शांत होकर जबाब दिया।

यह सब बात आज सुन रहा था, उसे समझ नहीं आ रह था कि वह बीच बचाव कैसे करे।

फिर भविष्य ने तपाक से कहा कि इसे आश्रित रहना ही कहते है। मैंने तो ऐसी ऐसी मशीनें बनाई है जो चुटकियों में मेरे सारे काम कर दे और मुझे किसी की ज़रूरत भी ना हो। मैंने अपने लिए अपनी मन चाहे बच्चे डिज़ाइन किए है जो कभी कोई ग़लती नहीं करते। उनमें कोई बीमारी नहीं होती। जबतक मैं ना कहूँ वो अपनी जगह से नहीं हिलते।

तुम्हारे समय में तो हज़ारों तरह की बीमारियाँ है। बच्चे रोते है। उन्हें चुप कराने के लिए रात भर जागना पड़ता है। हमें यह सब नहीं चाहिए। सबकी अपनी ज़िंदगी है। कोई किसी के लिए अपनी क़ुर्बानी क्यों दे।हमारे समय में सब को अपने तरीक़े से जीने का हक़ है।

भूत को यह सब सुनकर बहुत दुख हो रहा था। तभी आज ने बीचबचाव करते हुए कहा कि आप सभी शांत हो जाएँ। मैंने आपसब को यहाँ इसलिए बुलाया था कि हम मिलजुल कर अपने अपने समय पर चर्चा करे मगर आप तो लड़ने लगें। कृपया शांत हो जाएँ ।

मुझे जितना कहना है उतना कहकर चुप हो जाऊँगा ,और किसी की कही बात को मन में भी ना रखूँगा। मुझ में समझदारी है,अनुशासन है, नियमितता है।हर तरीक़े से शिक्षित हूँ मैं। ना मैं किसी के काम में दख़लंदाज़ी करता हूँ ना मैं ये चाहता हूँ कि कोई मेरे में करे। मैं हर तरीक़े से सक्षम हूँ। तुम्हें अगर समझाना है तो भूत को समझाओ।

भूत बूढ़ा होने के कारण ज़्यादा बोलने की हालत में नहीं था और उपर से यह सब देखकर दुखी भी था।

उसने कहा, किसी को कुछ बोलने की ज़रूरत नहीं मैं स्वयं ही जा रहा। मैं यहां ख़ुद नहीं रहना चाहता। और भविष्य से कहा ,अगर तुम्हारे पास वह सब है तो मेरे पास प्यार लगाव, ख़ुशी ,एकजुटता, विश्वास ,त्याग भावना ,परवाह यह सब है। मगर तुम इसके मोल क्या समझोगे। इसे समझने के लिए दिल चाहिए और दिल मशीन में नहीं होते। फिर भूत ने आज की तरफ़ देखा और कहा—सब कुछ तुम्हारे हाथ में है। तुम जैसा चाहोगे , भविष्य वैसा ही होगा। इतना कह भूत ने भारी मन से विदा ली। भविष्य को मानो कोई फ़र्क़ ही नहीं पड़ा। फिर भविष्य ने भी विदा ली।

यह सब देख आज दुखी था और तय कर लिया कि अगर भविष्य को सबक़ सिखाना है उसे बिगड़ने से बचाना है तो मुझे ही ठोस क़दम उठाने होंगे।

तभी सुबह के अलार्म से विकाश की नींद खुली।वह एक बड़े कम्पनी का मालिक था।और उसके इस फ़ैसले से कि रोबोट जो आज इंसान की जगह काम पर लगाया जाए तो काम जल्दी होगें,योग्यता से होंगे की वजह से बहुत से लोगों को अपने काम से हाथ धोना पड़ा था।उसने भावना के उपर वयहवारिकता को अपनी पॉलिसी बनाई थी।

सपने ने जैसे उसे झकझोर दिया था।उसने तुरन्त ही अपनी बातों पर विचार करने के लिए फिर से मिटिंग बुलवाई और निकाले गए कर्मचारियों को फिर से काम पर रख लिया और कहा;चाहे कोई भी समय हो इंसान के मूल्यों की बराबरी कोई मशीन नहीं कर सकती।


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