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प्यार दिल्ली में छोड़ आया - 10

प्यार दिल्ली में छोड़ आया - 10

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*Omnia vincit Amor: et nos cedamus Amori (Latin): प्‍यार हर चीज का स्‍वामी है, आओ, हम भी प्‍यार के आगे शीश झुकाएँ – वर्जिल 70-19BC


अठारहवाँ दिन

जनवरी २८, १९८२


आज दुनिया ‘‘दुर्घटनाओं’’ से भरी है। आज के ‘‘स्‍टेट्समेन’’ के शीर्षकों और उपशीर्षकों पर नजर डालो तो तुम समझ जाओगी कि परिस्थिति कितनी गंभीर है।

·        आगरा में ट्रेनों के टकराने से ६६ की मृत्‍यु

·        १४० लोगों को अस्‍पताल में भर्ती किया गया

·        विमान दुर्घटनाओं में ११० मरे (पेरिस में)

·        ट्रेन पटरी से उतर गई, ६० जख्मियों को बचाया गया

·        बाढ़ से ६०० व्‍यक्ति डूबे (पेरू)

·        २४० गंभीर रूप से घायल

(कटक में एक ट्रक नदी में गिर गया)।


इन दुर्घटनाओं पर शोक-संतप्‍त हुए बिना मैं नहीं रह सकता। दुनिया के मेरे साथियों, मेरी संवेदना स्‍वीकार करो।


और अब, मेरी जान, आज की डायरी! दोपहर को मैं तुम्‍हारे डिपार्टमेन्‍ट गया था। मि. वासित क्‍लास ले रहे थे। उनकी क्‍लास के खत्‍म होने तक मुझे इंतजार करना पडा़। उन्‍होंने अपनी क्‍लास 1.30 बजे समाप्‍त की। क्‍लास के फौरन बाद मैं उनकी ओर लपका। विद्यार्थी उनके कमरे में कुछ और चर्चा एवं सन्‍देह दूर करने के लिये टूटे पड़ रहे थे। तुम्‍हारे काम के बारे में बात करने के लिये मुझे सबसे पहले मौका दिया गया। मैंने अपना उद्देश्‍य स्‍पष्‍ट किया। सबसे पहला सवाल जो उन्‍होंने तुम्‍हारे बारे में किया, वह था,

‘‘उसके पिता कैसे है?’’ और “वह कब वापस आ रही है?”’ मैंने जवाब दिया, ‘‘उसके पिता की तबियत सुधर रही है, सर’’ और ‘‘वह पन्‍द्रह फरवरी के करीब वापस लौट रही है।’’

फिर मैंने तुम्‍हारे काम के बारे में पूछा। उन्‍होंने कहा कि वे सीधे तुम्‍हें ही खत लिखेंगे, क्‍योंकि मेरे द्वारा तुम तक कोई सन्‍देश पहुँचाना किसी काम का नहीं है। मैंने उनसे विनती की कि वे तुम्‍हारे लौटने से करीब सात दिन पहले तुम्‍हें लिखें, ताकि तुम जरूरत की चीजों का समय रहते इंतजाम कर सको। उन्‍होंने मुझे विश्‍वास दिलाया कि वे कल ही तुम्‍हें खत लिखेंगे। मैंने धन्‍यवाद देकर उनसे विदा ली। दो बज रहे थे। मुझे थोड़ी भूख लगी थी। मगर होस्‍टेल जाकर लंच लेने के लिये बहुत देर चुकी थी, इसलिये मैंने युनिवर्सिटी कैन्‍टीन में ही थोडा़-बहुत खाने का निश्‍चय किया।


मैंने जेब टटोली, तो उसमें सिर्फ एक रूपया था। मेरा हाथ बहुत तंग है! मैंने लंच के लिये आलू लिये और उसके लिये ८० पैसे दिये। विवेकानन्‍द पुतले के पास मैं आराम और उसके दोस्‍तों से मिला। हमने वहाँ एक ग्रुप फोटोग्राफ लिया। मैं दीदी (म्‍युआन की पत्‍नी) मोमो और अली (थाई मुसलमान) से मिला। वे ओखला में थाई-मनिपुरी डान्स-पिकनिक का आयोजन कर रहे थे। उन्‍होंने मुझे बहुत मनाया उनके साथ जाने के लिए। डान्‍स के लिये थाई लड़कों के साथ मणिपुरी लड़कियों की जोडि़याँ बनाई गई थी।

सुनने में तो बडा़ आकर्षक लगता है, मगर मैं ऐसी किसी पार्टी में भाग लेने का उत्‍सुक नहीं हूँ। मैंने बहाना बना दिया कि मेरे पास बहुत काम पड़ा है। अपने होस्‍टेल में जाने से पहले आराम ने एक प्‍लेट टॉमेटो-सूप पेश किया। मैं 2.30 बजे अपने होस्‍टेल पहुँचा। मैंने तुम्‍हें एक खत लिखा और 3.30 बजे उसे पोस्‍ट कर दिया। मेरा खत तुम्‍हारे काम की प्रगति के बारे में, और आम-जिन्‍दगी के बारे में था। मैंने इस महीने तुमसे कोई खत पाने की उम्‍मीद छोड़ दी है। फिर भी, मुझे उम्‍मीद है कि अगले महीने पहुँचने से पहले तुम मुझे जरूर लिखोगी।


सभी आवश्‍यक कामों को पूरा करने के बाद मैं पीठ के बल लेट गया, मगर मुझे शीघ्र ही मुँह के बल लेटना पडा़ जिससे कि अपने दिमाग में एक अनचाहे खयाल को आने से रोक सकुँ। मगर तभी आचान च्‍यूएन और सोंग्‍कोम मेरे कमरे में किसी काम से आए। मैं बिस्‍तर पर ही लेटा था। तुम मुझे आलसी कह सकती हो। मुझे यह बात साबित करनी होगी कि मैं आलसी नही हूँ, मगर तुम्‍हें तो मालूम है कि मैं थका हुआ ही पैदा हुआ था! आयान च्‍युयन और सोंग्‍कोम ने अपनी पिछली कार्यकारी जिन्‍दगी की सफलताओं को गिनाया और अपनी भावी योजनाओं के लिये प्रेरणा और प्रोत्‍साहन दिया।

मैं एक अच्‍छे श्रोता की तरह सुनता रहा क्‍योंकि मेरी पिछली सफलताएँ और भावी योजनाएँ समय और प्रयत्‍नों पर निर्भर है। जब वे चले गए तो मैं बिस्‍तर से उछलकर कुछ ब्‍लैक कॉफी ढूँढने लगा। कमरे में शक्कर नहीं है। खरीदने के लिये पैसे नहीं है। झल्‍लाहट हो रही है। 6.30 बजे सोम्रांग आया सायान और उसके गानों को टेप करने के लिये – जिससे विदेश में थाई माहौल बना सके। टेप करने के दौरान हमें खामोश रहना था, जिससे कि आवाज में कोई दखल न पड़े सोम्‍मार्ट अपनी भावनाओं को न रोक सका। वह कमरे से बाहर गया और चिल्‍लाया, ‘‘मैं जल्‍दी से भिक्षु-वस्‍त्र उतार देना चाहता हूँ!’’ फिर वह मुस्‍कुराते हुए कमरे में आया।


हम (सोम्रांग और मैं) चुपके से हँसे। कमरे का वातावरण हल्‍का-फुल्‍का हो गया सोम्‍मार्ट पढ़ रहा है, सोम्रांग भी। मैं भी अपनी डायरी में व्‍यस्‍त हूँ। मेरा आधा दिमाग उस गाने में है जो बज रहा है। एकाग्रता टूट रही है। मैं रोक ही देता हूँ। मिलूँगा तुमसे, मेरे प्‍यार।

पुनश्‍चः डिनर के बाद मैं तीन घंटे पढता रहा। अब मैं सोने जा रहा हूँ। मेरे लिये एक प्‍यारे सपने की दुआ करो, करोगी ना?’




*Nunc iuvat in teneris dominae iacuisse lacertis (Latin): तुम्‍हारे प्‍यार की नर्म बाँहों में सोना कितना प्‍यारा है – ओविद 43BC-AD C.17


उन्‍नीसवाँ दिन

जनवरी २९, १९८२


आज के अखबार में मैंने दो कॉलम पढ़े। दोनों ही ‘औरतों’ के बारे में हैं। एक है ‘गर्भपात कार्यक्रम’ और दूसरा है ‘ब्रिटेन बलात्‍कारियों पर सख्‍त’। विवरण के बारे में चर्चा नहीं करनी है, क्‍योंकि मैं अपराध-विशेषज्ञ नही हूँ। मगर एक संभाव्‍य-भाषाविद् होने के नाते मैं इन दोनों कॉलम्‍स में प्रयुक्‍त दिलचस्‍प शब्‍दावली बताता हूँ जिससे इन तकनीकी शब्‍दों के बारे में तुम्‍हें ज्ञान हो सकेः

गर्भपात कार्यक्रम

१.      MTP (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेन्‍सी – गर्भावस्‍था की चिकित्‍सकीय समाप्ति)

२.      अवैध गर्भपात

३.      स्‍त्री रोग विशेषज्ञ

४.      अनचाहा गर्भ

५.      वन्‍धीकरण


ब्रिटेन बलात्‍कारियों पर सख्‍त

१.      घटी हुई सजाएं

डेनमार्क में जो बलात्‍कारी बधियाकरण के ऑपरेशन के लिये सहमत हो जाते है उन्‍हें अक्सर कम सजा़ दी जाती है।

२.      बधियाकरण

३.      हिंस्‍त्र वृत्ति (औरतों के प्रति)

४.      बलात्‍कार का संकट

५.      बलात्‍कार या लैंगिक शोषण

६.      आन्‍तरिक जांच

७.      लैंगिक अपराध

८.      लैंगिक दुर्व्यवहार

९.      लैंगिक इतिहास

१०.  लैंगिक आक्रमण (बलात्‍कार)

११.  जेल की सजा

अदालत ने बलात्‍कारी को कम से कम दो वर्ष के कारागार की सजा सुनाई।


मुझे अत्‍यन्‍त दुख है कि दूसरे कॉलम में ‘लैंगिक’ शब्‍द इतनी बार आया है। मेरा इरादा, बेशक, वीभत्‍स बनाने का नहीं, बल्कि प्रचार करने का है; जोर देने का नहीं, बल्कि अवगत कराने का है। क्‍या मुझे समझ सकती हो? क्‍या मैं अपने आप को समझा पा रहा हूँ? यदि ‘‘हाँ’’, तो मुझे कुछ और आगे जाने दो ‘लैंगिक विज्ञान’ के बारे में नहीं, बल्कि ‘डायरी-विज्ञान’ के बारे में (‘डायरी-विज्ञान’ शब्‍द को मैंने ही अभी-अभी बनाया है और इसे किसी डिक्‍शनरी में नहीं देखा जा सकता)।


आज मैं बहुत सक्रिय नहीं हूँ। आधा दिन तो बिस्‍तर में ही गुजर गया। सुबह मैं हमारी डिपार्टमेन्‍ट लाइब्रेरी गया “Major Syntactic Structure of English” (by Stockwell et al) [अंग्रेजी की मुख्‍य वाक्‍य-संरचना – स्‍टाकवेल द्वारा लिखित] नामक पुस्‍तक लेने। डा. ए. के. सिन्‍हा ने किताब की सिफारिश की है। किताब शांति (एक मणिपुरी लडकी) ने ली हुई है। जब मैं कल और परसों उससे मिला था तो मैंने उसे किताब वापस लौटाने को कहा था। मगर उसने अभी तक लौटाई नहीं है। शायद उसने दोपहर में लौटाई होगी (मेरा खयाल है)। मगर इस किताब के बदले मैंने कुछ और किताबें लीं। ये मुझे कुछ दिनों तक व्‍यस्‍त रखेंगी, जब तक कि मेरी मनचाही किताब मुझे मिल नहीं जाती। कैम्‍पस के चौराहे पर दो भारतीय लड़कियों ने जो एम.ए. लिंग्विस्टिक्‍स कर रही है मुझे अमरूद दिया। मैंने सिर्फ इतना कहाः

‘‘धन्‍यवाद, मुझे अच्‍छा लगा।’’

इसके बाद मैं होस्‍टेल की ओर चला। एक नेपाली लड़का, जो मेरा सहपाठी है मुझे पोस्‍ट ऑफिस में मिला। मैंने उसे अपने कमरे में आने की दावत दी और उसे सिर्फ एक ग्‍लास पानी पेश किया। देखो, मेरे कमरे में किसी का स्‍वागत करने के लिये कुछ और है ही नहीं! मैंने उसे अपने साथ लंच करने के लिये कहा, मगर वह दावत कबूल नहीं कर सका क्‍योंकि उसे 12.30 बजे आल इंडिया रेडियो पर नेपाली ड्रामे में भाग लेना था।


लंच के बाद का समय मेरा था। अपनी ही इजाजत से मैं बिस्‍तर में लेटा रहा। यदि पढा़ई में मन नहीं लग रहा हो तो सोने से ज्‍यादा बेहतर कोई और काम नहीं है। मैंने तीन घंटों तक तान दी। सोम्‍मार्ट कमरे में नहीं है। वह लाइब्रेरी में पढ़ने के लिये गया है। उसे पूछते हुए सोम्रांग दो बार आया था। प्रयून भी इसी काम के लिये एक बार आया था। सोम्रांग आजकल मार्केट की ‘‘दुर्लभ चीज’’ हो गया है। वह गरमा-गरम पकौडों की तरह बिक रहा है! हर कोई उसके पास आता है, उसका भला-साथ पाने को। ऐसा लगता है कि वह लोकप्रिय इन्‍सान है। वह खुद तकलीफ उठाकर भी औरों का मनोरंजन करता है। एक महान आदमी! आज उसके लिए एक चिट्ठी आई है, कहने में अफ़सोस होता है, कि मेरे लिये एक भी नहीं है। इस बात को मैं यहीं छोड़ देता हूँ, वर्ना इससे मेरे शांत ‘दिखाई दे रहे’ मस्तिष्‍क में खलबली मच जाएगी। हर हाल में, तुम्‍हारे वापस आने तक तो मैं इंतजार कर लूँगा। विदा, मेरी प्‍यारी।


पुनश्‍चः -

डिनर से पहले पोलैण्‍ड के संकट पर कॉमन रूम में बहस हो रही थी। वक्‍ता पोलैण्‍ड के कामगारों का पक्ष ले रहा था, बाहरी दखलंदाजी की निंदा कर रहा था, सत्‍ताधारी वर्ग की भी निंदा कर रहा था और उसने बताया कि आगामी वसन्‍त में आंदोलन फिर से शुरू हो जाएगा।

मुझे इतनी भूख लगी थी कि मैं डिनर का इंतजा़र न कर सका। मैं होस्‍टेल के कैन्‍टीन में ऑम्‍लेट और एक कप चाय के लिये गया। मैंने हौले से चाय की चुस्‍की ली और हमारे गुजरे जमाने की घटनाओं के बारे में गहराई से सोचने लगा। समुन्‍दर की एक लहर की तरह प्रसन्‍नता ने मुझे सराबोर कर दिया। एक पल बाद मैं अपने गहरे विचारों से वापस लौटा और कैन्‍टीन में ऊपर जाकर अपना एक नया खाता खोला। इसमें लिखा थाः ‘2.80 पैसे चुकाना है!’


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