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समझौता

समझौता

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आज सुबह से स्वीटी का मन उखड़ा हुआ था क्योंकि आज सुबह-सुबह उसके पति सुबोध ने टॉवल ना मिलने का गुस्सा उस पर चिल्लाकर निकाला था।

स्वीटी के माता- पता उसे बहुत लाड़ करते थे। बचपन से उसकी सही-गलत हर ज़िद मानी जाती रही। इस कारण जिस काम को शुरू करती उसे अधूरा ही छोड़ देती। ना तो वह घर का कोई काम करती ना ही नौकरी...। कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह 8-10 जगह एक-एक महीने नौकरी कर के छोड़ चुकी थी।

ना जाने कब, कैसे, किससे उसे कृष्ण की भक्ति का जुनून चढ़ गया। बस प्रतिदिन हाथ में माला लिए मंत्र जाप करती रहती। माता-पिता को अच्छा लगा कि चलो कहीं तो उसका मन लगा।

जब उसके विवाह की बात चली तो उसने विवाह करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। जब भी उसे कोई लड़का दिखाया जाता वह उसे मोटा, पतला, पढ़ा-लिखा, कम पढ़ा, छोटा परिवार, बड़ा परिवार करके हर बार ना बोल देती। हर लड़के में कमियाँ गिनवाती और विवाह ना करने के बहाने बनाती। अंत में माता-पिता ने उसे खुद अपनी पसंद का लड़का ढूँढने को कहा।

करीब एक वर्ष बाद उसने माता-पिता को सुबोध नाम के एक बंगाली लड़के से विवाह करवाने का कहा। सुबोध कलकत्ता में रहता था और किसी कंपनी में छोटी-मोटी नौकरी करता था। मरता क्या ना करता, आखिर माता-पिता ने हाँमी भर दी।

बंगाली रीति-रिवाजों से विवाह संपन्न हुआ। विदाई हुई और मात्र एक माह में स्वीटी, सुबोध के साथ मायके लौट आई। बहुत बाद में पता चला सुबोध की नौकरी अस्थाई थी तथा उसने घर जमाई बनना स्वीकार कर लिया था। लड़की ने विवाह ही इन्हीं शर्तों पर किया था। इसीलिए सुबोध अपने माता-पिता, अपना शहर छोड़कर स्वीटी के साथ चला आया था।

अब स्वीटी के माता-पिता बुढ़ापे में, अपने छोटे से घर और सीमित आय में बेटी और जमाई दोनों को रखने को मजबूर थे।

इतना सब होता तब भी ठीक...सुबोध भी कहीं टिक कर नौकरी ही ना करता। अब स्वीटी को अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को मारना पड़ता था। जब-तब दोनों पति-पत्नी का झगड़ा होता। सुबोध बहुत गुस्सैल था, जोर-जोर से चिल्लाता, जिसकी आवाज़ें आसपास वालों को भी सुनाई देती। आखिर सब शर्तें तो स्वीटी की ही थीं।

एक-दो बार समाज के किसी कार्यक्रम में स्वीटी को एक-दो वही लड़के दिखाई दिए, जिनमें उसने छोटी-छोटी सी झूठी कमियाँ बताकर विवाह करने से इंकार कर दिया था। उन्हें सुखी देखकर अब उसे यह एहसास तो होता था कि काश उसने उस वक़्त इतने नखरे ना दिखाए होते तो वह आज की अपेक्षा काफी सुखी होती पर अब सिर्फ समस्याओं से समझौता करने के अलावा कोई चारा ना था।

कुछ समझौते पति ने किए थे और बाकी अब स्वीटी को करने थे....!


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