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अपना अड्डा

अपना अड्डा

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टैरेस पर खड़ा उत्तम आज गुस्से और हताशा के बीच झूल रहा था। उसे पूरी उम्मीद थी कि बॉस को उसकी प्रेज़ेंटेशन पसंद आएगी। पर हुआ ठीक उल्टा। बॉस ने बात नहीं बन रही है कह कर उसे बीच में ही रोक दिया। लेकिन नितिन की प्रेजेंटेशन की बहुत तारीफ की। जबकी उसमें कई ज़रूरी बिंदु नहीं थे। उत्तम को लग रहा था कि काम से अधिक बॉस की चमचागिरी करना सफल होता है।

उत्तम अपने गुस्से को काबू करने के लिए ऊपर आया था। वह नहीं चाहता था कि उसका फ्लैट मेट उसे इस हाल में देखे। उसे तसल्ली थी कि कल संडे है। उसे कुछ समय मिल जाएगा। तभी उसने देखा कि वह उसके सामने खड़ा है। उसका फोन आगे बढ़ाते हुए बोला।

"नीचे छोड़ आए थे। दो मिस्ड कॉल हैं।"

उसका फोन पकड़ा कर वह वापस चला गया। उत्तम ने चेक किया। उसके दोस्त आरिफ़ की कॉल थी। उसने पलट कर फोन किया। आरिफ़ ने फोन उठाते ही कहा।

"कहाँ थे ? दो बार पूरी घंटी बजी। पर तुमने उठाया नहीं।"

"बस काम से निकला था।"

"ओके....अब सुनो प्रमोद आया है। मैं और विहान गाज़ियाबाद के लिए निकल चुके हैं। तुम भी चल दो।"

प्रमोद का नाम सुनकर परेशान उत्तम के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। वह फौरन नीचे आया। बैग में कुछ कपड़े डाले और अपने फ्लैट मेट से बोला।

"मैं गाज़ियाबाद जा रहा हूँ। मंडे मॉर्निंग लौट आऊँगा।"

प्रमोद, आरिफ़, विहान और उत्तम ये चारों स्कूल के समय से पक्के दोस्त थे। ये दोस्ती कॉलेज तक साथ रही। उसके बाद सब अपनी अपनी राह पर चल दिए। लेकिन दोस्ती की डोर कमज़ोर नहीं पड़ी। फिर इंटरनेट ने भी भरपूर सहयोग दिया। 

उन चारों में प्रमोद ही एक था जिसकी मंज़िल अच्छी नौकरी पाना नहीं था। वह तो स्क्रिप्ट राइटर बनने का सपना लेकर मुंबई चला गया था। पिछले चार साल से संघर्ष कर रहा था। पर ग्रुप में कोई भी निराश होता था तो वह उसका हौसला बढ़ाता था। आज उत्तम को ज़रूरत थी तो वह खुद ही आ गया था।

मेट्रो में बैठने के बाद उसने आरिफ़ को फोन किया।

"मैं मेट्रो में हूँ। पर यह पूछना तो भूल ही गया कि हम मिलेंगे कहाँ ?"

"और कहाँ ? अपने अड्डे पर।"

"पर जब तक हम पहुँचेंगे, अंकल टी स्टॉल बंद कर देंगे।"

"प्रमोद ने बात कर ली है। तुम बस पहुँचो।"

कोई डेढ़ साल पहले वो लोग उस्मान अंकल की टी स्टॉल पर मिले थे। तब उत्तम नोएडा की अपनी जॉब छोड़ कर दिल्ली जा रहा था। आरिफ़ और विहान शुरू से गुरुग्राम में थे। पर उस समय प्रमोद उन लोगों के साथ नहीं था। 

उस्मान अंकल की टी स्टॉल ने उनकी दोस्ती का हर रंग देखा था। उनके सुख दुख साझा किए थे। आपसी राज़ सुने थे। एक आध बार की लड़ाई और रुठना मनाना देखा था। 

उत्तम जब अंकल की टी स्टॉल पर पहुँचा तो उसके तीनों दोस्त मौजूद थे। वह दौड़ कर तीनों से लिपट गया। कुछ देर तक तीनों वैसे ही खड़े रहे। जब अलग हुए तो विहान ने टोंका। 

"ये बैग लटका कर क्यों आया है ?"

"अरे कल का दिन साथ बिताएंगे। कपड़े नहीं बदलूँगा।"

आरिफ़ ने टांग खींची।

"दिल्ली की हवा लग गई। याद नहीं पहले एक ही कपड़े कितने दिनों तक पहनते थे।"

प्रमोद उत्तम का बचाव करते हुए बोला।

"तुम लोग फिर इसके पीछे पड़ गए। बदल जाता है इंसान। वरना भाई के पास एक हफ्ते का रिकॉर्ड है।"

सब हंस दिए। उत्तम भी उनमें शामिल हो गया। उन्हें हंसते देख कर उस्मान अंकल भी खुश थे। वो उन लोगों के लिए स्पेशल चाय और बन मख्खन तैयार कर रहे थे। 

चाय पीते हुए सब बातें करने लगे। उत्तम ने प्रमोद से पूँछा।

"तुम्हारा काम कैसे चल रहा है ?"


"अच्छा चल रहा है। मुझे पूरी उम्मीद है जल्दी ही कोई बड़ा ब्रेक मिलेगा। मुझे अपनी काबिलियत पर पूरा भरोसा है। कोई मुझे रोक नहीं सकता है।"

प्रमोद की बात ने उत्तम को बहुत तसल्ली पहुँचाई। वह जानता था कि उसमें काबिलियत है। उसे किसी की चमचागिरी करने की ज़रूरत नहीं। 

सभी दोस्त देर तक आपस में बात करते रहे। आज बहुत समय के बाद वो लोग मिले थे। बहुत कुछ था कहने और जानने के लिए। 

उस्मान अंकल की टी स्टॉल से वो लोग प्रमोद के होटल गए। कुछ देर बातें करने के बाद सब सो गए। 

अगले दिन रविवार को पूरा दिन ही शहर की अलग अलग जगहों में घूमते हुए पुराने दिनों को याद करते रहे। किसी ने भी कपड़े नहीं बदले थे।

अपने दोस्तों के साथ खूबसूरत समय बिता कर उत्तम मंडे मॉर्निंग दिल्ली के लिए निकल गया। आरिफ़ और विहान भी लौट गए।‌ उसी दिन शाम को प्रमोद को भी लौटना था।


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