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बेजुबान रिश्ता

बेजुबान रिश्ता

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ठंड की धीमी धूप में समीर ठिठुरते हाथों से अखवार के पन्नों को अलट पलट रहा था , खबरें पढ़ने का मन तो नहीं था पर नीलू की चाय का इंतजार तो करना ही था। तभी गेट को जोर जोर से हिलाने की आवाज आई।

"कौन कमदिमाग है गेट पर, क्या बेल दिखाई नहीं दे रहीं "? ....चिल्लाते हुए नीलू गेट की तरफ चल दी।

सामने मलिन कपड़ों में एक बूढ़ी भिखारिन खड़ी थी जिसे देखकर नीलू ने नाक भौहें सिकोड़ लीं। और आगे जाओ कहकर अंदर की तरफ चल दी।

बूढ़ी भिखारिन फिर गेट को हिलाने लगी, इस बार नीलू का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

 "मुँह से बक नहीं सकतीं क्या? क्यों सुबह सुबह इस तरह शोर मचा रही हो? ... कहते हुए नीलू ने फिर उसे आगे जाने का इशारा किया।

तभी वहाँ समीर आ पहुंचा। 

समीर: क्या बात है नीलू?

नीलू: ये भिखारिन सुन ही नहीं रही , कहा की "जाओ आगे" , तो भी गेट बजाए जा रही है ।

समीर गेट के बाहर आया।वह बूढ़ी भिखारिन खाना खाने का इशारा कर रही थी। समीर समझ चुका था की वह बूढ़ी अम्मा गूँगी और बहरी है।वह अंदर गया और रात का कुछ खाना फ्रिज में से निकाल कर साथ ही एक दो फल लिए और अम्मा को दे दिए। उस अम्मा ने समीर के पैर पकड़ लिए। और हाथों से समीर के सर पर आशीष दे कर आगे चल दी।

एक दिन ऑफिस जाते समय समीर को वही अम्मा रास्ते में दिखी जिसे दो छोटे बच्चे परेशान कर रहे थे। समीर ने बच्चों को प्यार से समझा कर वहाँ से अलग कर दिया और अम्मा से कहा .... " तुम रोज मेरे घर आया करो, खाना लेने के लिए। 

अब रोज यही होता था , अम्मा को नीलू की नाराजगी से बचाने के लिए समीर पहले ही खाना पैक करके अलग रख दिया करता था।

एक दिन समीर को ऑफिस के काम से 7 दिन के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा। बूढ़ी अम्मा रोज की तरह खाने के लिए गेट को हिलाने लगी, नीलू ने उसे देखते ही रोज से चिल्लाते हुए कहा ..." मैं तुम्हारी नौकर नहीं हूँ जो रोज तुम्हारे लिए रोटियाँ थोपूँ "।

बूढ़ी भिखारिन को शब्द भले न सुनाई दिए पर नीलू की नाराजगी को वह भलीभांति समझ रही थी। वह चुपचाप चली गई।

शाम को नीलू सब्जीवाले से सब्जी लेने बाहर आई। मोल-भाव करने की धुन में नीलू और सब्जीवाले में बहस होने लगी। तभी पीछे से बूढ़ी अम्मा ने हाथों से इशारा किया पर न ही नीलू ने देखा न ही सब्जीवाले ने ।अचानक पीछे से लकड़ी की आवाज आई , नीलू ने पलट कर देखा, एक बड़ा साँप जो की अम्मा की लाठी से बच गया पर उसने पलट कर अम्मा को डस लिया। 

पास खेल रहे एक बच्चे ने बताया की वो साँप नीलू की तरफ ही आ रहा था। अब नीलू को सारी बात समझ आ गई थी।

उस बूढ़ी अम्मा ने नीलू की जान बचाने के चक्कर में अपनी जान गवां दी थी।

कोई रिश्ता न था पर नीलू के लिए वह अम्मा आज उसकी माँ की जगह थी क्योंकि उसने नीलू की जान बचाई थी ।

नीलू अपने गलत व्यवहार पर बहुत शर्मिंदा थी और पश्चाताप की आग में जल रही थी। 

"पता नहीं अम्मा ने रोटी का कर्ज चुकाया या नीलू को कर्जदार कर दिया।

कर्म से चलित संसार मे कौन किसका कर्जदार है,ये राज सिर्फ विधाता के पास सुरक्षित है।


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