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ताती वा न लग्गे.

ताती वा न लग्गे.

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"माँ ..आप ठीक हो न ?" सुबह की सुहानी भोर में पूजा पाठ खत्म कर माधवी ने रसोई में आकर चाय रखी ही थी कि बेटी का फ़ोन आ गया।

" हाँ लाडो..ठीक हूँ। क्या हुआ ..आज अचानक सुबह सुबह ऐसे मेरा ख़्याल कैसे ?"माधवी ने हसंते हुए पूछा।

"क्यूँ ..आप रोज़ हमसे हमारी खैर ख़्वाह पूछती हो ,हर पल हमारे लिए दुआ करती हो ,तो क्या मैं नहीं पूछ सकती कि आप और पापा कैसे हो ?"

" क्यूँ नहीं लाडो ...पर आज न मेरी बेटी के पूछने के अंदाज़ से ऐसा लग रहा है कि कोई बात है ? बताओ न ! सब ठीक है न ?"

"क्या माँ, आप भी न ! सी आई डी की तरह सवाल पर सवाल।"

"लो बताओ ! अब यह भी कोई बात हुई भला ! तुम बच्चे भी न !"चाय का घूँट भरते हुए हँसते हुए माधवी ने कहा।

"अच्छा माँ ,ये बताओ कि किसी के बारे कोई बुरा सपना आये तो उसे बता देने से उसका असर कम हो जाता है न ? या फिर कोई बुरा सपना आये तो उसका उलट ही होता है ! ऐसा आप और नानी माँ कहते थे न ? "आवाज़ में मानो एक चिंता सी घिर आई थी अनिका की।

" हाँ ,कहते तो यही हैं। पर आज किसके बारे आ गया तुम्हें ऐसा सपना ? वैसे तुम न ये सपनों को इतना सीरियस मत लो। हमारे अर्धचेतन मन में बसे कुछ ख़्याल या दिन भर की बातें ही होती हैं जिन्हें हम सपनों के रूप में देखते हैं। इसलिए ज़्यादा मत सोचो ।"माधवी ने बेटी के मन के डर को कम करने की मंशा से कहा।

"हम्म..चलो मां। मैं आकर बात करती हूँ। अभी गुरूद्वारे जा रही हूँ ,उसके बाद ऑफ़िस। आकर आपसे बात करती हूँ।"

बेटी की बात सुनकर माधवी ने मुस्कुराते हुए फ़ोन रख दिया। सोचने लगी "आजकल के बच्चों के दिल की थाह पाना भी न दुश्वार ही है। न जाने किसके बारे सपना देख व्याकुल सी हो गई है। अब गुरुद्वारे जाए बगैर इसे चैन भी नहीं आएगा..!"

शाम को दामाद अनीश का फ़ोन आया कि सुबह हम गुरूद्वारे जा नहीं पाए। इसलिए अब आप साथ चलिये।आपकी बेटी ने हुक्म दिया है कि आपको और पापा को लेकर आऊं।"

तैयार होकर गुरुद्वारे पहुँच कर अनिका ने अरदास करवाई ,घर से तैयार करवाया हुआ प्रसाद भोग लगवाया।

"अनिका ,ये क्या है बेटा ? हमारे लिए अरदास ..समझी नहीं आज तो कोई खास दिन भी नहीं हमारा ?"हैरानी से कभी बेटी दामाद तो कभी पति की तरफ देख जानना चाहा।

"आप हमारे साथ हैं न तो सब दिन खास हैं माँ। हमें ज़रा सी तकलीफ़ हो जाए आप न जाने कितने व्रत पूजा करती हो। बचपन से ही हमें नज़र से बचाने के लिए आप वो" ताती वा न लग्गे "वाला मंत्र जपती आई हो। तो क्या हम आपकी सलामती के लिए कुछ नही कर सकते ?"

"पगली कहीं की ..भला माँ बाप को भी नज़र लगती है क्या !" बच्चों के इस स्नेह से अभिभूत हो माधवी ने भीगे स्वर में कहा।

"नज़र लगे न लगे, हमें आपकी हर पल ज़रूरत है माँ ! आपका हाथ हमेशा हमारे सर पर बना रहे बस यही चाहते हैं।"अनीश ने पाँव छूते हुए कहा।

माधवी को अनिका के सुबह सपने की बात का और गुरुद्वारे बुलाने का मर्म समझ आ चुका था।

अगले कुछ पलों में बेटी दामाद की खुशहाल गृहस्थी के लिए फिर से एक मन्नत और उनका स्नेह देख माधवी का "ताती वा न लग्गे" मंत्र उच्चारण भी मन ही मन में शुरू हो चुका था जिसे केवल अनिका सुन पा रही थी। उसने माँ का हाथ कस कर पकड़ लिया।

" माँ ,मुझे भी सीखा दो न ये मंत्र ...!"


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