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वड़वानल - 59

वड़वानल - 59

11 mins
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कैसल बैरेक्स के साथ ही ‘तलवार’ के चारों ओर भी भूदल सैनिकों का घेरा पड़ा था। प्लैटून कमाण्डर्स को बिअर्ड ने आदेश दिया था, ‘‘ ‘तलवार’ के चारों ओर का घेरा अधिक कड़ा होना चाहिए। किसी भी सैनिक को बाहर मत जाने देना। याद रखो। 1857 के बाद सैनिकों ने पहली बार अंग्रेज़ी सरकार को चुनौती दी है, वह इसी ‘तलवार’ से। विद्रोह के सारे सूत्र सेंट्रल कमेटी के हाथों में है, जो ‘तलवार’  में है। अन्दर उपस्थित सैनिक यदि प्रतिकार की कोशिश करें तभी जवाब देना। शान्त सैनिकों को न कुरेदना!’’

‘तलवार’ के सैनिकों को यह जानने की उत्सुकता थी कि बाहर क्या हो रहा है; और घेरा डालने वाले सैनिक भी यह जानने के लिए उत्सुक थे कि अन्दर क्या हो रहा है।

‘‘यदि हमने भूदल और हवाईदल के सैनिकों से सम्पर्क करके उन्हें विद्रोह के लिए प्रवृत्त किया होता तो आज यह घेरा न पड़ा होता!’’ दत्त अपने मन की टीस व्यक्त कर रहा था।

‘‘तुम ठीक कह रहे हो। 18 तारीख से दास, यादव, राव... ऐसे पाँच–छह सैनिक हवाई दल और भूदल के बेसेस पर जाकर सम्पर्क करने की कोशिश कर रहे थे। मगर 18 तारीख की दोपहर से ही अंग्रेज़ों ने बाहर की दुनिया का इन बेसेस से सम्पर्क काट दिया था। गेट पर गोरे सिपाहियों का पहरा था, वे किसी भी हिन्दुस्तानी को अन्दर नहीं जाने दे रहे थे; उसी प्रकार आपातकाल की झूठी गप मारकर अन्दर से किसी को बाहर भी नहीं आने दे रहे थे ।’’ गुरु ने जवाब दिया।

‘‘ये सब हमें दिसम्बर से शुरू करना चाहिए था। कम से कम शेरसिंह की गिरफ़्तारी के बाद ही सही...’’  दत्त ने कहा।

‘‘गलती तो हो गई!’’ गुरु की आवाज़ में अफ़सोस था। ‘‘अब जो सैनिक घेरा डाले हुए हैं, उनसे बात करें तो?’’   गुरु ने सुझाव दिया।

‘‘कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है। वे भी तो इसी मिट्टी के सपूत हैं। उनके मन में भी स्वतन्त्रता की आस तो होगी; हो सकता है वह क्षीण हो, हम उसे तीव्र करेंगे।’’  दत्त के मन में आशा फूल रही थी।

गुरु के साथ दत्त मेन गेट की ओर निकला।

गेट बन्द था। गेट के बाहर तीन संगीनधारी सैनिक खड़े थे। तीनों को देखकर गुरु बोला,  ‘‘मराठा रेजिमेंट के लगते हैं।’’

उन्हें गेट के पास खड़ा देखकर संगीनधारी हवलदार साळवी आगे बढ़ा। ‘‘आपस में काय को खाली–पीली झगड़ते हो भाई; अरे हिन्दू भी इसी मिट्टी का और मुसलमान भी इसी मिट्टी का। दोनों को भी इधर ही रहना है। फिर झगड़ा काय को?’’  साळवी समझाते हुए बोला।

साळवी का प्रश्न गुरु और दत्त की समझ में ही नहीं आया।

‘‘तुम्हें किसने बताया कि हिन्दू–मुसलमानों में झगड़ा हुआ है और हम एक दूसरे से लड़ रहे हैं?’’  दत्त ने अचरज से पूछा।

‘‘चालीस बरस का, रोबीले चेहरे,  घनी मूँछोंवाला सूबेदार कदम आगे आया।

उसने साळवी से पूछा,  ‘‘क्या कहते हैं रे ये बच्चे,  ज़रा समझा तो ।’’

‘‘उनमें हिन्दू–मुसलमानों का झगड़ा नहीं है,  कहते हैं,   मेजर सा’ब।’’   साळवी ने जवाब दिया।

‘‘पर हमें तो साहब ने ऐसा हीच बताया... झूठ बोला होगा। गोरा सा’ब बड़ा चालू! अब इधर आकर पाँच घण्टा हो गया,  मगर है क्या कहीं कोई गड़बड़? सब कुछ कैसा बेस्ट है।’’ कदम अपने आप से पुटपुटाते हुए बोला।

गुरु ने और दत्त ने उन्हें ‘नेवी डे’ से घटित घटनाओं के बारे में बताया। कदम ने सिगरेट का पैकेट निकाला और दोनों के सामने बढ़ाते हुए बोला, ‘‘हमें तो ये सब मालूम ही नहीं था।’’

‘‘आज हमारी सिगरेट पिओ! देखो ये सिगरेट कैन्टीन में एक रुपये में मिलती है,  जब कि गोरों को पाँच आने में।’’  पाँच सौ पचपन का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए दत्त बोला। महँगी सिगरेट देखकर साळवी और कदम खुश हो गए।

‘‘हमें नहीं मिलती ऐसी भारी सिगरेट,’’ कदम कुरबुराया। ‘‘ये तो सिर्फ़ सा’ब को मिलती है।’’

‘‘मतलब,  देखो! ये गोरे भूदल और नौदल में भी फर्क करते हैं ।’’  दत्त गोरों का कालापन दोनों के मन पर पोतने की कोशिश कर रहा था।

दत्त और गुरु इतनी देर तक क्या बातें कर रहे हैं, किससे बातें कर रहे हैं, यह जानने के लिए उत्सुकतावश एक–एक करके कई सैनिक गेट के पास आ गए। गाँववालों ने एक–दूसरे को पहचाना और गप्पें होने लगीं ।

‘‘दिन के तीन बजे से यहाँ खड़े हैं, मगर एक कप पनीली चाय तक नहीं मिली।’’  मराठा रेजिमेंट के चार–पाँच सैनिकों ने कदम से शिकायत की।

‘‘पिछले तीन दिनों से हमें राशन ही नहीं मिला। हमारे पास चाय, शक्कर, दूध... कुछ भी नहीं है। मगर चिन्ता न करो। हममें से दो को बाहर जाने दो, हम चाय का बन्दोबस्त करते हैं।’’  दत्त ने विनती की।

कदम किसी को भी बाहर छोड़ने को तैयार नहीं था। जब दत्त और गुरु ने इस बात की गारंटी दी कि बाहर गया हुआ सैनिक वापस लौट आएगा, तभी थोड़े से नखरे करते हुए उसने दास को बाहर जाने दिया।

दस–पन्द्रह मिनट में ही दास वापस लौट आया। उसके साथ होटल का ईरानी मालिक और उसका नौकर था। घूँट–घूँट चाय मिलने से सैनिक खुश हो गए।

‘‘अंकल,   ये चाय के पैसे लो।’’   दत्त ने पैसे आगे बढ़ाए।

‘‘ठहरो, बच्चों,  पैसे हम देते हैं।’’  कदम ने दत्त को रोका।

‘‘अरे, तुम आजादी के लिए लड़ रहे हो । सरकार के प्रोपोगेंडा पर हमारा भरोसा नहीं। तुम्हारे लिए हमें कम से कम इतना तो करने दो। कदम सा’ब ये बच्चे देश की आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं। उन्हें कुत्ते की मौत मत मारना; उन पर गोलियाँ न बरसाना। सुनो रे,  बच्चों! मेरा होटल तुम्हारा ही है। कभी भी आओ, मेरे पास जो भी है वह सब तुम्हें दूँगा।’’ ईरानी होटल मालिक ने कहा ।

‘‘अंकल हम आपके निमन्त्रण को स्वीकार करते हैं। तुम जैसे लोगों के समर्थन पर ही तो हम यह लड़ाई लड़ रहे हैं। दत्त का गला भर आया था।

ईरानी की इस उदारता से सभी भावविभोर हो गए ।

इस घटना के बाद भूदल और नौदल के सैनिकों के बीच एक अटूट सम्बन्ध का निर्माण हो गया। विद्रोह का कारण उन्हें ज्ञात हो गया था।

‘‘बच्चो! चाहे जो हो जाए, हम तुम पर बन्दूक नहीं चलाएँगे!’’ कदम ने सैनिकों को आश्वासन दिया।

‘‘हम ‘तलवार’ के मेन गेट का नाम बदल दें?’’  दास ने पूछा। दास का विचार सबको पसन्द आ गया और नाम बदलने की तैयारी शुरू हो गई । ऊँची सीढ़ी दीवार से लग गई, रंग के डिब्बे आ गए । गेट पर लिखा ‘तलवार’ ये नाम खरोंच–खरोंचकर मिटा दिया गया और लाल रंग में नया नाम रंगा गया, ‘आज़ाद हिंद गेट’  मानो सैनिकों ने इस नाम को खून से रंगा था। उत्साही सैनिकों ने नारे लगाना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने गम्भीर आवाज़ा में ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा’  गाना शुरू कर दिया और नारे रुक गए। सारा वातावरण गंभीर हो गया। नामकरण समारोह में भूदल के सैनिक भी शामिल हो गए।

 

21 तारीख का सूरज पूरब के क्षितिज पर आया और नौसेना के विद्रोह के तीन दिन इतिहास की गोद में समा गए: हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता के इतिहास के, कांग्रेस और लीगी नेताओं की दृष्टि में तीन नगण्य दिन! मगर नौसेना के इतिहास में और आत्मसम्मान जागृत हो चुके सैनिकों के जीवन के तीन निर्णायक दिन;  हर सैनिक के मन में अंगारे चेताने वाले तीन दिन। इन तीन दिनों का लेखा–जोखा किया जाए तो सैनिकों के हाथ में कुछ भी नहीं लगा था। हाँ, काफी कुछ गँवाना पड़ा था। मगर सैनिक हतोत्साहित नहीं हुए थे। उनके हृदय की स्वतन्त्रता का जोश अभी भी हिलोरें ले रहा था। अपने सर्वस्व का बलिदान करके अनमोल स्वतन्त्रता प्राप्त करने की उनकी ज़िद कायम थी।

देर रात तक जहाज़ों के और नौसेना तलों के सैनिक अगले दिन की योजनाओं पर चर्चा करते रहे थे। जहाज़ों और तलों के अस्त्र–शस्त्रों का अन्दाज़ा लगाया गया। सैनिकों के गुट बनाकर यह तय किया गया कि किस मोर्चे को कौन सँभालेगा। अन्यत्र आक्रमण होने की स्थिति में कितने सैनिक भेजना सम्भव होगा,  ये सैनिक कौन से हथियार ले जायें, ये भी निश्चित किया गया। परिस्थिति का जायज़ा लेने के लिए जब वे सुबह बाहर आए तो आँखें लाल–लाल और चढ़ी हुई थीं। रात की सभाओं में सैनिकों ने यह निर्णय लिया था कि चाहे कितनी ही कठिनाइयाँ आएँ,  उन्हें आखिरी दम तक लड़ना है।

सुबह कैसेल बैरेक्स के बाहर करीब दो सौ गज की दूरी पर भूदल के अस्त्र–शस्त्रों से लैस सैनिकों का हुजूम था। आज उनकी संख्या भी ज़्यादा थी। यह खबर बेस में फैल गई। सेन्ट्रल कमेटी के जो प्रतिनिधि कैसल बैरेक्स में थे, उन्होंने छत पर चढ़कर स्थिति का जायज़ा लिया और ‘तलवार’ में मौजूद कमेटी के अध्यक्ष को और सदस्यों को संदेश भेजा।

- सुपर फास्ट - 210730– प्रेषक–कैसेल बैरेक्स–प्रती - सेन्ट्रल स्ट्राइक कमेटी=अपोलो बन्दर से बैलार्ड पियर तक के परिसर को भूदल के हथियारों से लैस सैनिकों ने घेरा डालकर मोर्चे बनाना शुरू कर दिया है । कैसेल बैरेक्स पर आक्रमण होने की सम्भावना है। आदेशों की और प्रतिआक्रमण की इजाज़त की राह देख रहे हैं।

कैसेल बैरेक्स का सन्देश मिलते ही खान ने सेन्ट्रल कमेटी की मीटिंग बुलाई और कैसेल बैरेक्स से आया हुआ सन्देश सदस्यों को पढ़कर सुनाया।

‘‘अरे, फिर किस चीज़ की राह देख रहे हैं?  कह दो उनसे कि भूदल सैनिकों के गोली चलाने से पहले फुल स्केल अटैक करो, ’’  चट्टोपाध्याय ने सलाह दी ।

‘‘यह निर्णय हमारे संघर्ष का भविष्य निर्धारित करने वाला होगा, इसलिए हमें सभी पहलुओं पर विचार करके ही फैसला करना होगा।’’   दत्त ने चेतावनी दी।

‘‘हम एक बार फिर कांग्रेस के नेताओं से मिल लें, ऐसा मेरा ख़याल है, ’’ मदन ने सुझाव दिया और सभी एकदम चीख़ पड़े।

‘‘ये नेता कुछ भी करने वाले नहीं हैं।’’

‘‘इसमें हमारे भाई–बन्धु नाहक मरेंगे।’’

‘‘अब हिंसा–अहिंसा के फेर से बाहर निकलो और बन्दूक का जवाब बन्दूक से दो!’’

हरेक सदस्य अपनी राय दे रहा था।

खान सबको शान्त करने की कोशिश कर रहा था,  मगर उसकी बात सुनने के लिए कोई भी तैयार नहीं था।

''Now, listen to me, I am President of the Committee,'' दो मिनट शान्त बैठा खान उठकर बोलने लगा, ''Please, all of you sit down.'' उसने सभी बोलने वालों को बैठने पर मजबूर किया।

 ‘‘हम अनुशासित सैनिक हैं, यह न भूलो और कमेटी की मीटिंग का मछली बाजार न बनाओ!’’ खान काफी चिढ़ गया था। उसका यह आवेश देखकर सभी ख़ामोश हो गए। मीटिंग में शान्ति छा गई।

‘‘दोस्तों! तुम्हारी भावनाओं को मैं समझता हूँ। घेरा डालकर जो सैनिक बैठे हैं वे भी हिन्दुस्तानी हैं, यह हमें नहीं भूलना है। मेरा ख़याल है कि किसी भी हालत में पहली गोली हमें नहीं चलानी है...।’’   खान समझा रहा था।

कैसल बैरेक्स के बाहर भूदल के सैनिक हमले की तैयारी कर रहे थे। टाउन हॉल के निकट के सैनिकों ने तो बिलकुल ‘फ़ायरिंग पोज़ीशन’ ले ली थी। सुबह साढ़े नौ बजे भूदल सैनिकों ने पहली गोली चलाई। ये गॉडफ्रे की चाल थी। इस गोली का परिणाम देखकर अगली चाल चलने का उसका इरादा था।

बैरेक्स के सैनिकों ने गोली की आवाज़ सुनी और उनके दिल से अहिंसात्मक लड़ाई का जोश काफ़ूर हो गया।

‘‘अरे, उनकी चलाई हुई गोलियाँ बिना प्रतिकार दिए, चुपचाप अपनी छाती पर झेलने के लिए हम कोई सन्त–महन्त नहीं हैं,  Let us get ready.'' मणी ने कहा।

‘‘हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे।’’   धर्मवीर चीखा। रामपाल ने सभी सैनिकों को परेड ग्राउण्ड पर फॉलिन किया।

‘तलवार’ पर जब सेंट्रल कमेटी की मीटिंग चल रही थी, तभी पहली गोली चलने का सन्देश आया और कमेटी ने इस गोलीबारी का करारा जवाब देने का निर्णय लिया और वैसा सन्देश कैसेल बैरेक्स को भेजा।

रामपाल कैसल बैरेक्स के सैनिकों को अगली व्यूह रचना के बारे में बता रहा था, ‘‘दोस्तो! हमने अहिंसक संघर्ष का मार्ग अपनाने का निश्चय किया था, मगर ब्रिटिश सरकार यदि गोलियों की ज़ुबान बोल रही है, तो हमारा जवाब भी उसी भाषा में होगा। अभी–अभी सेंट्रल कमेटी का सन्देश आया है और कमेटी ने हमें करारा जवाब देने की इजाज़त दे दी है।’’

सैनिकों को इस बात का पता लगते ही उनका रोम–रोम पुलकित हो उठा। युद्धकाल में अमेरिकन, फ्रेंच, ऑस्ट्रेलियन सैनिकों को मातृभूमि के लिए लड़ते हुए उन्होंने देखा था और हिन्दुस्तानी नौसैनिकों को उनसे ईर्ष्या होती थी। आज मातृभूमि की स्वतन्त्रता के लिए लड़ने का अवसर उन्हें मिला था। उन्होंने नारे लगाना शुरू कर दिया, ‘वन्दे मातरम्!, ‘ भारत माता की जय!’ , ‘जय हिन्द!’

‘‘हम उन्हें जवाब देने वाले हैं। मगर इसके लिए हमें पर्याप्त समय चाहिए। दूसरी बात यह, कि कैसेल बैरेक्स के बाहर के भूदल–सैनिक हिन्दुस्तानी हैं। शायद उन्हें यह भी न मालूम हो कि हम किसलिए लड़ रहे हैं। हम उनसे गोलीबारी न करने की विनती करें। मेरा ख़याल है कि वे हमारी विनती मान लेंगे और यदि ऐसा हुआ तो हमारा धर्मसंकट टल जाएगा और हमें पूरी तैयारी के लिए वक्त भी मिल जाएगा।’’   रामपाल का सुझाव सबने मान लिया।

हरिचरण, धर्मवीर और मणी ने आर्मरी खोलकर रायफलें, गोला–बारूद एल.एम.जी. रॉकेट लांचर आदि हथियार सैनिकों में बाँट दिये और हरेक को उसकी जगह बताकर मोर्चे बाँध दिये।

‘‘भाइयो,’’  रामपाल खुद अपील करने लगा,  ‘‘हमारी ये जंग आज़ादी की जंग है; केवल पेटभर खाना मिले इसलिए नहीं है,  या अच्छा रहन–सहन और ऐशो–आराम नसीब हो इसलिए नहीं है। हम लड़ रहे हैं आज़ादी के लिए। भाइयों! भूलो मत! हमारी तरह आप भी इसी मिट्टी की सन्तान हो। हमारी आपसे गुज़ारिश है कि हम पर,  अपने भाइयों पर,  गोलियों की बौछार करके भाईचारे से रहने वाले अपने पुरखों के मुँह पर कालिख न पोतें! जय हिन्द! वन्दे मातरम्!’’

यह अपील बार–बार की जा रही थी।

 

दो–चार बार इस अपील के कानों पर पड़ने के बाद कैसेल बैरेक्स के घेरे पर बैठे हुए मराठा रेजिमेन्ट के सैनिक समझ गए कि यहाँ हिन्दू–मुस्लिम संघर्ष नहीं हो रहा है। यह संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए,  आत्मसम्मान के लिए है। गोरे धोखा देकर उन्हें यहाँ लाए हैं।

‘‘सूबेदार मेजर,   अपने टारगेट पर फ़ायर करने का हुक्म दो। हमको Accurate Firing माँगता। Just on the bull!'' मेजर सैम्युअल ने सूबेदार राणे को आदेश दिया।

सूबेदार राणे ने मेजर सैम्युअल की ओर घूरकर देखा।

‘अपनी स्वतन्त्रता के लिए लड़ने वाले भाई–बन्दों पर हमला करें।’  यह कल्पना भी उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। उसकी आँखों में और दिल में उभरते विद्रोह को सैम्युअल ने भाँप लिया।

''Come on, Open Fire, open fire, you Fools...'' सेकण्ड ले. जैक्सन चिल्ला रहा था।

मराठा रेजिमेन्ट के सैनिकों ने अपने सूबेदार के मन की दुविधा को महसूस कर लिया और अपनी–अपनी राइफल्स नीचे कर लीं। यह देखकर जैक्सन का क्रोध उफ़न पड़ा और वह सैनिकों से हाथापाई करते हुए चिल्लाया, 'Come on, bastards, take aim and Fire! Otherwise...'' जैक्सन उन पर चढ़ा आ रहा है यह देखकर गरम दिमाग वाले कुछ सैनिकों ने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और बॉक्सिंग की मुद्रा में आ गए । जैक्सन को पीछे खींचते हुए मेजर सैम्युअल उस पर चिल्लाया, ‘‘बेवकूफ, ये सारी रामायण जिस बर्ताव के कारण हुई है वही तू करने जा रहा है। हट पीछे!’’

मराठा रेजिमेन्ट के सैनिक ज़ोर–ज़ोर से ‘हर–हर महादेव’ का नारा लगा रहे थे, मगर उनकी बन्दूकें ख़ामोश थीं।

मराठा रेजिमेन्ट ने कैसेल बैरेक्स पर हमला करने से इनकार कर दिया। मराठा रेजिमेन्ट को बैरेक ले जाकर नजर कैद कर दिया गया और उसके स्थान पर गोरों की प्लैटून्स आ गईं।



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