आफत के हाल
आफत के हाल
अभिषेक अपने पुराने दोस्तों के बीच बैठ कर बतिया रहा था, शायद 5 साल बाद सभी दोस्त मिले थे। सभी ने डिनर किया फिर थोड़े पेग वगैरह और कालीन बिछाकर बैठ गए, चाँदनी रात थी।
बातों का सिलसिला पहले तो खरगोश की चाल की भांति तेजी से बढ़ रहा था फिर एक बात अभिषेक ने अपने उन दिनों की दुर्दशा की बताई जब अभिषेक की जेब फट गयीं मतलब हालात बद से बद्तर हो गए थे।
जान से ज्यादा चाहने वाली पत्नी के मिजाज़ भी पैसों के अभाव में बदले से नजर आ रहे थे। थोड़ी सी तंगी में रिश्तेदारों ने भी हेय नज़र से देखना प्रारम्भ कर दिया। अजनबी लोगो की तो फिर बात ही क्या थी?
पत्नी ने तो तलाक तक का फैसला कर लिया था। तब तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मुझे मेरी जीवन संगिनी की बाते रह रह के याद आ रही थी, कि हम 7 जन्मों तक साथ रहेंगे। कैसी भी हो परिस्थिति हमेशा साथ रहूंगी, पत्नी तो पत्नी, मां-बाप भी कुछ उखड़े अंदाज में दिखने लगे थे।
तब मैं सोच रहा था कि एक कागज़ के नोट से दुनिया कितना प्यार करती है? उस निर्जीव छिरचिरे नोट की दीवानी आज दुनिया बनी बैठी है और एक जीते-जागते इंसान के लिए कोई हमदर्दी नहीं बची।
मैंने घर छोड़ दिया कुछ काम की तलाश में। पत्नी ने भी एेन वक़्त पर साथ छोड़ दिया। माँ-पिताजी घर में अकेले हो गए थे। तब मैंने अपने व्यवसाय को रीस्टार्ट किया और मेरा व्यवसाय कुछ ही दिनों में फिर से प्रॉफ़िट में चला गया। मेरी पत्नी को जब ये पता चला तो उसने मुझे फ़ोन पर कहा, कि कहां हो जानू तुम्हारी बहुत याद आ रही है।
तब मैंने कहा तुम तो मुझे अब याद भी नहीं हो। रोंग नंबर है मैडम, अब फ़ोन मत लगाना। और अभिषेक ने फ़ोन काट दिया और अपने माँ-बाप की सेवा संकल्प का फैसला लेते हुए अपने वैवाहिक जीवन से बहुत दूर हो गया।