कान्हा जी का आभार
कान्हा जी का आभार
आज सुनीता का अपने पति मधुकर से पियानो को लेकर फिर झगड़ा हो गया था। मधुकर को पियानो बजाना बहुत पसंद था और वह रोज़ घंटा भर रियाज़ करता था। सुनीता को यह बिल्कुल भी नहीं भाता था। वह मधुकर को उलाहना देती रहती थी कि मेरा टाइम काटकर पियानो को मेरा टाइम देते रहते हो जबकि उस एक घंटे के अलावा मधुकर ऑफ़िस से आने के बाद सारा टाइम उसी के साथ स्पेंड करता था। आज मधुकर को भी गुस्सा आ गया और वह बोला मैं कभी तुम्हारे शौक के बीच नहीं आया बल्कि तुम्हें हमेशा प्रोत्साहित ही किया। मेरे घर में रहते हुए तुम कई घंटे ब्यूटी पार्लर में बिता आती हो, कभी किटी पार्टी में चली जाती हो,कभी अपनी सहेलियों के साथ शॉपिंग के लिए चली जाती हो, और कभी अपने घर पर वीडियो कॉलिंग के लिए ज़रिए घंटों बतियाती रहती हो। मैं तो तुम्हें कभी नहीं टोकता, आखिर तुम्हें भी अपनी तरह जीने का हक है ना मैं तुमसे कभी शिकायत ही करता हूं पर मेरे एक घंटे की प्रैक्टिस पर तुम मुंह फूला लेती हो। यह मेरा भी घर है और मुझे भी अपने शौक पूरे करने का पूरा हक है। तुम पियानो को अपनी सौत बताती हो लेकिन मेरा मन जानता है कि तुम मेरी पत्नी ही नहीं प्रेयसी भी हो। किसी भी प्रकार की सौत का तो प्रश्न ही नहीं उठता पर सुनीता तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थी। वह उस कमरे से उठकर घर में बने मंदिर में आकर बैठ गई और वहां कान्हा जी की बाँसुरी वाली फोटो देखकर सोचने लगी कान्हा जी और राधा जी का प्रेम अमर है पर साथ ही उनका अपनी बाँसुरी से लगाव भी सर्वविदित है। उसे अब अपनी ग़लती का एहसास हुआ और वो कान्हा जी का आभार प्रकट करती हुई रसोई में कॉफी बनाने चली गई। और फिर ट्रे में रखकर दो कप कॉफी लेकर मधुकर के पास मंद मंद मुस्काते हुए पहुंच गई। मधुकर भी उसके बदले हुए मूड को देखकर उसकी पसंद का गाना पियानो पर बजाने लगा। अब वह दोनों ही अच्छे मूड में संगीत का आनंद ले रहे थे।