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सच्चा प्यार

सच्चा प्यार

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सुजित के फोन पर मैसेज बीप सुनाई पड़ी। वह मुस्कुराया। उसने मन ही मन सोंचा। लगता है यह भी मुझ पर फिदा हो गई। उसने मैसेज पढ़ा।

'ओके....कहाँ मिलना है ?"

सुजित कुछ क्षणों तक सोंचता रहा। उसके दिमाग में कई सारे विकल्प थे। चुनाव उसे करना था। कई अच्छे रेस्टोरेंट्स के बारे में सोंचने के बाद उसने तय किया कि उसका स्टूडियो अपार्टमेंट सबसे सही जगह है। यहाँ ठीक से जान पहचान हो सकती है। यह खयाल आते ही वह एक बार फिर मुस्कुराया। 

उसने मैसेज के उत्तर में अपने अपार्टमेंट का पता भेज दिया। उस तरफ से कुछ ही क्षणों में जवाब आया। 

"ओके.... विल कम ऐट सेवेन इन इवनिंग।"

सुजित सक्सेना एक प्रसिद्ध लेखक था। खासकर युवा वर्ग का वह चहेता था। उसके लिखे उपन्यासों का विषय प्यार और रोमांस जो होता था। 

उसके सोशल एकाउंट पर उसकी तारीफ के कई मैसेज होते थे। लोगों का कहना था कि उसे प्यार और रोमांस की बहुत अच्छी समझ है। उसकी कहानियां दिल में उतर जाती हैं। 

कई युवा प्रेमी उससे प्रेम में सफल कैसे हुआ जाए इस विषय पर मशविरा मांगते थे। इनमें अधिकांश वो लड़के होते थे जो उसके उपन्यास के नायकों की तरह चंद ही मुलाकातों में अपनी प्रेमिका को प्रेम दीवानी बना देने की इच्छा रखते थे।

सुजित को ऐसे लोगों को सलाह देना बहुत अच्छा लगता था। उसने कुछ ही दिनों पहले एक मशहूर पत्रिका में इस विषय पर एक कॉलम लिखना भी शुरू किया था। 

सुजित का लेखन करियर बहुत अच्छा चल रहा था। अब तक उसने कुल सात उपन्यास लिखे थे। इनमें से चार बेस्टसेलर थे। दो को लोगों ने खूब सराहा था। सातवां उपन्यास अभी पिछले हफ्ते ही आया था। पर सुजित को उसके बेस्टसेलर होने की पूरी संभावना थी।

उसके पहले उपन्यास पर बॉलीवुड के एक मशहूर निर्माता निर्देशक फिल्म बनाने की योजना बना रहे थे। इस बात की चर्चा सब तरफ हो रही थी। सुजित का भाव बढ़ गया था।

सुजित को आकर्षक रूप कुदरत की तरफ से मिला था। पर उसने अपनी अक्ल और वाकपटुता से उस आकर्षक व्यक्तित्व को और निखार दिया था। जब भी वह महिलाओं से बात करता तो अधिकांश उसके प्रभाव में आए बिना ना रहतीं। 

लोग सुजित को कैसेनोवा कहते थे। उसके अफेयर्स की लंबी लिस्ट उसे इस खिताब का प्रबल दावेदार बनाती थी। सुजित को भी लगता था कि वह आसानी से किसी भी लड़की को अपना दीवाना बना सकता है।

आज उसे लग रहा था कि उसकी यह सोंच सही साबित हुई है। उसे जिस लड़की का मैसेज मिला था उसका नाम निकिता सावलानी था। वह एक हिंदी दैनिक की पत्रकार थी। वह निकिता से अपनी नई किताब की प्रेस रिलीज़ पर मिला था। 

पत्रकार उससे किताब के बारे में सवाल कर रहे थे। वह उनके सवालों के जवाब दे रहा था। जब निकिता की बारी आई तो उसने एक अलग ही तरह का सवाल कर दिया।

"सर....आपके लेखन का विषय प्यार और रोमांस है। क्या आप प्यार को समझते हैं ? आपकी नज़र में रोमांस क्या है ?"

जब सुजित ने उसके सवाल सुने तो उसे अच्छा नहीं लगा। उसके मन में सवाल उठा। 'क्या इस लड़की को मेरे बारे में पता नहीं। इस विषय पर आधारित मेरी चार किताबें बेस्टसेलर हैं। ये लड़की मुझसे पूँछ रही है कि क्या मैं प्यार और रोमांस को समझता हूँ।'

सुजित ने तंज़ भरे लहज़े में कहा। 

"अब मेरे पाठक तो यही समझते हैं कि मुझे प्यार और रोमांस का मतलब पता है। तभी तो मेरी किताबें बेस्टसेलर हैं। लोग इस विषय में मुझसे राय लेते हैं।"

सुजित ने सोंचा था कि यह जवाब निकिता के लिए काफी होगा। वह दूसरे पत्रकार की तरफ देखने लगा। पर सवाल निकिता ने ही किया।

"सर....आपने जो कहा वह सही है। आपके पाठक आपको बहुत चाहते हैं। आप जो लिखते हैं उसे पसंद करते हैं। पर मैं ये जानना चाह रही थी कि आपकी किताबों में जो प्यार व रोमांस दिखता है क्या वही सही मायनों में प्यार है ?"

"जी बिल्कुल..... किसी को पहली बार देखते ही आपके दिल की धड़कनें बढ़ जाएं। आपकी रातों की नीदें उड़ जाएं। आप उससे मिलने को बेचैन रहें। यही सब प्यार है। अपने साथी को अपने प्यार का एहसास दिलाना । उसे तोहफे देना। चांदनी रात में एक दूसरे का हाथ थाम कर बीच या किसी रोमांटिक जगह पर टहलना। यही तो रोमांस है।"

सुजित ने बाकी सारे पत्रकारों की तरफ नज़र दौड़ाई। सब अपना सवाल पूँछने को बेचैन थे। निकिता अभी उसके जवाब से संतुष्ट नहीं थी। उसने एक और सवाल पूँछना चाहा। सुजित ने उसे टोंकते हुए कहा।

"मिस निकिता.... औरों को भी मौका दीजिए। सभी अपने पेपर की तरफ से मुझसे सवाल करना चाहते हैं। आप यदि चाहें तो मैं बाद में आपको अलग से इंटरव्यू दे दूँगा।"

निकिता चुप हो गई। बाकी पत्रकार सुजित से सवाल करने लगे। प्रेस कान्फ्रेंस समाप्त होने पर सुजित जब उठ कर हॉल से बाहर निकलने लगा तो उसने अपने सेक्रेटरी को निर्देश दिया कि वह निकिता का नंबर पता करे। 

अब तक सुजित कई लड़कियों से मिला था। उनमें से बहुत सी लड़कियों के साथ उसका अफेयर भी रहा था। पर निकिता उसे अलग तरह की लड़की लगी थी। अब तक जहाँ लड़कियां उसके आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित रहती थीं। उसकी तारीफ के पुल बांधती थीं। वहीं निकिता उसे अपने सवालों के घेरे में बांधने का प्रयास कर रही थी। वह पहली लड़की थी जो उसे यह एहसास दिलाने की कोशिश कर रही थी कि वह उस विषय को ही पूरी तरह से नहीं समझता है जिसमें सब उसे माहिर मानते हैं। 

निकिता के इस बर्ताव ने उसके मन में एक ज़िद पैदा कर दी थी कि वह किसी भी हाल में और लड़कियों की तरह निकिता को भी अपना दीवाना बना कर रहेगा। इसलिए उसने अपने सेक्रेटरी को उसका नंबर लेने को कहा था।

सेक्रेटरी ने कोशिश कर निकिता का नंबर लाकर सुजित को दे दिया था। उसने निकिता को फोन किया।

"हैलो....आप कौन ?"

निकिता ने सवाल किया। सुजित ने महसूस किया कि फोन पर उसकी आवाज़ में अलग ही खनक थी। 

"मैं सुजित सक्सेना...."

"ओह....सर आपने मुझे फोन किया ?"

"वो आपके कुछ सवालों के जवाब उस दिन रह गए थे। तो मैंने सोंचा कि क्यों ना हम कहीं मिल कर बात करें।"

कुछ देर निकिता की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। यह पहला अवसर था जब सुजित ने किसी लड़की को फोन कर मिलने की इच्छा जताई हो और उसने फौरन हाँ ना की हो।

"सर मैं सिर्फ काम के सिलसिले में लोगों से मिलती हूँ।"

यह जवाब सुजित के लिए अप्रत्याशित था। पर उसने अपने आप पर काबू रख कर कहा।

"मेरा भी वही मतलब था। यदि आप चाहें तो मैं आपको एक इंटरव्यू देकर आपके सवालों के जवाब दे सकता हूँ।"

"सर मैं अपना शेड्यूल देख कर बताती हूँ।"

एक बार फिर वह खामोश हो गई। कुछ क्षणों के बाद बोली।

"सर इस हफ्ते तो मैं बिज़ी हूँ। अगले हफ्ते में मैं आपका इंटरव्यू कर सकती हूँ। आप अपना शेड्यूल देख लीजिए।"

"ठीक है मैं अपना शेड्यूल चेक करके अगले हफ्ते बताता हूँ।"

सुजित ने कॉल काट दी। पर निकिता से बात करने के बाद उसकी ज़िद और बढ़ गई। अगले हफ्ते उसने अपनी तरफ से ना फोन किया और ना ही मैसेज। पर निकिता का मैसेज आया।

"क्या बुधवार को आपके पास समय है ?"

मैसेज मिलने के बाद भी सुजित ने फौरन कोई जवाब नहीं दिया। जब निकिता ने दोबारा उसे मैसेज किया तो उसने लिखा। 

'दिन में वक्त नहीं है। शाम को छह बजे के बाद कभी भी आ सकें तो बताएं।'

कुछ देर बाद उसी मैसेज का जवाब आया था। सुजित ने उसे अपने स्टूडियो अपार्टमेंट में मिलने के लिए बुला लिया।

निकिता सही समय पर पहुँच गई। सुजित के इस स्टूडियो अपार्टमेंट का माहौल वैसा ही रोमांटिक था जैसा वह अपनी किताबों में दर्शाता था। मद्धम रौशनी। धीमे धीमे बजता रोमांटिक संगीत। निकिता की निगाह दीवार पर लगी पेंटिंग पर गई। एक युवक और युवती एक दूसरे का चुंबन ले रहे थे।

"आप कुछ पिएंगी...."

"नो थैंक्यू.... अगर आप तैयार हों तो हम इंटरव्यू शुरू करें।"

सुजित उसके सामने बैठ गया। निकिता ने रिकॉर्डर ऑन कर सेंटर टेबल पर रख दिया।

"सर आप जो अपनी किताबों में दर्शाते हैं क्या वही सच्चा प्यार है ?"

"हाँ बिल्कुल। मैं तो यही समझता हूँ। मेरे पाठक भी मेरी राय से इत्तेफाक रखते हैं। तभी वह मेरी किताबें खरीद कर पढ़ते हैं।"

"लेकिन आपको नहीं लगता है कि प्यार एक बहुत गहरा एहसास है। आप जिसको प्यार कहते हैं उसमें वह गहराई नहीं है।"

"मैं तो वह लिखता हूँ जो लोग प्यार के बारे में बताते हैं। आपके हिसाब से जिन्हें पहली नज़र का प्यार होता है उनका प्यार सच्चा नहीं है।"

"मैं वो नहीं कह रही हूँ। पर पहली नज़र का प्यार भी जब धीरे धीरे पकता है तब वह गहरा होता है।"

सुजित को उसका यह तर्क समझ नहीं आया। उसने पूँछा।

"मतलब प्यार एक बार में नहीं धीरे धीरे होता है ?"

"हाँ....प्यार एक नशा है। जो धीरे धीरे चढ़ता है फिर सर चढ़ कर बोलता है।"

सुजित ने उसकी तरफ अजीब सी नज़रों से देखा। 

"आपको अनुभव है ऐसे प्यार का।"

सुजित का सवाल सुन कर निकिता कुछ असहज हो गई।

"मानता हूँ कि बहुत व्यक्तिगत प्रश्न पूँछ लिया मैंने। पर आप जिस विश्वास से बोल रही थीं मुझे लगा आपका अपना अनुभव है।"

निकिता कुछ देर चुप रही। फिर सुजित की तरफ देख कर बोली।

"हाँ....मेरा अपना अनुभव है। पर जब ऐसा हुआ तब मैंने ध्यान ही नहीं दिया। जब उसकी गहराई समझ में आई तब तक देर हो चुकी थी।"

निकिता के चेहरे पर पीड़ा साफ देखी जा सकती थी। पहली बार सुजित को किसी की भावनाओं से फर्क पड़ा था। वह कुछ नहीं बोला। निकिता ने आगे कहा।

"पर आपके साथ शायद कभी ऐसा नहीं हुआ ?"

"आप यह कैसे कर सकती हैं ?"

"आपके कई अफेयर हुए हैं। राइट...."

"हाँ..... तो...."

"उन लड़कियों में ऐसी कौन सी लड़की है जिसकी याद आपको आती हो।"

सुजित के लिए यह सवाल अजीब था। उसने कुछ पलों तक अपने दिल में झांक कर देखा। कई नाम और चेहरे ज़ेहन में उभरे। पर किसी से कोई लगाव महसूस नहीं हुआ। निकिता सही थी। अब तक जो भी हुआ था उसे पासिंग अफेयर कहा जा सकता था पर प्यार नहीं। उसके मन में सवाल उठा। तो क्या निकिता सही है ? मुझे प्यार के बारे में सचमुच नहीं पता। लेकिन वो इतनी जल्दी हार मानना नहीं चाहता था।

"ऐसा नहीं है। मेरे मन में कई लड़कियां हैं जिनके बारे में मुझे याद है।"

निकिता सुजित की आँखों में देख रही थी। सुजित ने आँखें नीची कर लीं। 

"सर आप मुझे नहीं खुद को धोखा दे रहे हैं। आप भी समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रही हूँ।"

सुजित वैसे ही सर झुकाए बैठा रहा। निकिता उठ कर खड़ी हो गई। उसने रिकॉर्डर बंद कर दिया।

"सर जब आप उस प्यार को समझ पाएंगे जिसके बारे में मैं बात कर रही थी। तब आप अपनी किताबों में उसके बारे में लिखेंगे। तब सही मायनों में मैं आपका इंटरव्यू लूँगी।"

निकिता चली गई। सुजित वैसे ही सोफे पर सर झुकाए बैठा था। इंटरव्यू तो एक बहाना था। उसने तो सोंचा था कि वह और लड़कियों की तरह निकिता को भी प्रभावित कर लेगा। जब वह जाएगी तो उसके आकर्षक व्यक्तित्व की दीवानी बन चुकी होगी। पर हुआ इसका उल्टा। निकिता उसे अपने सवालों में उलझा कर चली गई थी। 

बहुत देर तक वह निकिता की कही बात पर विचार करता रहा। उसने कई लड़कियों के साथ अफेयर किया। उनके साथ घूमा फिरा। कुछ समय तक उनका साथ अच्छा लगा। फिर एक समय के बाद जब मन भर गया वह अलग हो गया। किसी के भी चले जाने से मन में कोई टीस नहीं उठी। 

कई दिनों तक सुजित का मन किसी काम में नहीं लगा। उसके दिमाग में अपनी अगली किताब की रूपरेखा थी। उसने सोंचा था कि जल्द ही वह उस पर काम शुरू कर देगा। पर कई बार कोशिश करने पर भी उसका मन नहीं लगा। उसने तय किया कि वह कुछ समय के लिए छुट्टी पर जाएगा।

सुजित एक छोटे से शांत हिल स्टेशन पर छुट्टियां बिताने आया था। वह किराए की एक कॉटेज में ठहरा था। 

यहाँ उसकी दिनचर्या थी कि वह सुबह जल्दी उठ कर टहलने जाता था। सुबह सुबह प्रकृति का सानिध्य उसके दिल को सुकून पहुँचाता था। रोज़ जब वह टहल कर कॉटेज वापस आ रहा होता था तब एक चाय की दुकान पर रुक कर चाय पीता था। उसे वहाँ की चाय बहुत पसंद आती थी। 

इधर रोज़ ही उसके सेक्रेटरी का फोन आ रहा था। जो निर्माता निर्देशक उसकी किताब पर फिल्म बनाना चाहता था वह उसके साथ एक मीटिंग करना चाहता था। पर सुजित का मन अभी भी शांत नहीं हुआ था। 

लेकिन बीती रात उसके सेक्रेटरी ने फोन कर कहा कि वह लौट कर निर्माता के साथ मीटिंग कर ले नहीं तो वह किसी और प्रोजक्ट पर काम शुरू कर देगा। सुजित जानता था कि ऐसा होने पर उसे बहुत नुकसान हो जाएगा। इसलिए उसने सेक्रेटरी से कह दिया कि वह दो दिनों में लौट आएगा।

सुजित रोज़ की तरह दुकान पर चाय पी रहा था। दुकान के मालिक ने एक कप चाय और बन देकर अपने नौकर से कहा कि सामने बैठे आदमी को दे आए। सुजित ने देखा सड़क पार फुटपाथ पर एक भिखारी बैठा था। नौकर जब उसके पास गया तो उसने हाथ के इशारे से चाय और बन लेने से मना कर दिया। 

सुजित को आश्चर्य हुआ। उसने दुकान के मालिक की तरफ देखा। उसने बताया कि भिखारी और उसकी पत्नी कई सालों से पास के मंदिर की सीढियों पर रहते थे। पर पिछले महीने इसकी पत्नी मर गई। तब से पगला सा गया है। रोज़ सुबह यहाँ आकर बैठ जाता है। पहले यह और इसकी पत्नी इसी जगह बैठ कर चाय पीते थे। मुझे तरस आता है। इसलिए चाय बन भिजवा देता हूँ। 

आज भिखारी ने चाय बन नहीं लिया। उठ कर चल दिया। सुजित ने चाय के पैसे चुकाए और उस भिखारी के पीछे चल दिया। भिखारी मंदिर की सीढ़ी पर जाकर बैठ गया। उसने एक गठरी से कुछ निकाल कर चूमा। सुजित ने देखा कि वह लाल रंग की काँच की चूड़ी थी। चूमते हुए भिखारी की आँखों में आंसू थे। 

सुजित उसके पास गया। जेब से कुछ रुपए निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दिए। भिखारी ने सूनी निगाहों से उसे देखा। 

"क्या करूँगा ? खाने भर को मिल जाता है। वो तो चली गई छोड़ कर। किसके काम के हैं ये।"

उसकी बात सुजित के दिल में उतर गई। जिस प्यार की बात निकिता ने की थी आज पहली बार वह उससे रूबरू हुआ था। उसने पैसे जेब में रख लिए।

छुट्टियों से लौट कर सुजित ने एक नई किताब शुरू की। किताब जब छप कर आई तो उसने एक प्रति निकिता को भेजी। साथ में एक नोट था।

'सच्चे प्यार का एहसास दिलाने का शुक्रिया।'

किताब उसकी दूसरी किताबों से बड़ी बेस्टसेलर साबित हुई। 


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