ममता के रूप...
ममता के रूप...
बड़ी बहू को बुखार था, संध्या जी ने पोते को उठाकर स्कूल के लिए तैयार किया और रसोई में उसके लिए टिफिन बनाने चल दीं।
छोटी बहू ने अपनी बेटी के टिफिन के लिए पराठे सेंक लिए थे।
"बेटी दो पराठे मनु के लिए भी सेंक दे, बड़ी की तबियत ठीक नहीं है।" संध्या जी ने छोटी बहू से कहा।
"मुझे चीनू को तैयार करना है। भाभी का तो अच्छा है जब तब ही बीमार पड़ी रहती हैं बिस्किट रख दीजिए उसके टिफिन में।" कहती हुई छोटी तेजी से रसोई से बाहर चली गयी।
संध्या जी मनु के लिए पराठे बनाने लगीं। होते हैं कुछ लोग ऐसे भी जिनके दिल में अपने जाये के सिवाय किसी के लिए ममता नहीं होती।
तभी आँगन में पतरे गिरने और ढोरों के जोर से रम्भाने की आवाज सुनकर सब घबराए हुए बाहर भागे।
भैंसे जिधर बंधी थी उस तरफ के टीन के पतरे मय उनपर रखे भारी पत्थरों के साथ गिर गए थे। राजूड़ी गाय बुरी तरह से डकरा कर रस्सी तोड़ने की कोशिश कर रही थी। दूध न पी जाए इसलिए उसके बछड़े को भैसों के पाले में बांध रखा था।
संध्या के पति और बेटों ने तेजी से भागकर पतरे हटाने शुरू किए। सबकी आँखे भर आयी। बछड़े के उधर ही पतरे और पत्थर गिरे थे। क्या बच पाया होगा बेचारा।
गाय अब भी जोर-जोर से रम्भा रही थी।
सबसे पहले बछड़े के ऊपर के पतरे हटाये। कल्लो भैंस बछड़े के ऊपर झुकी हुई थी उसके कंधे से खून बह रहा था। गर्दन पर भी चोट लगी थी लेकिन उसकी गर्दन के नीचे नन्हा बछड़ा बिल्कुल सुरक्षित था।