Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

चुटकी भर डर और ढेर सारा प्यार

चुटकी भर डर और ढेर सारा प्यार

8 mins
1.3K


अपने कमरे का दरवाज़ा खोला ही था कि फोन की घंटी बजी। हमेंशा की तरह माँ का फोन था। मैंने बैग को एक कोने में रखा और कुर्सी पर बैठ गई। एक हाथ में फोन लेकर। थोड़ा सोचा फिर हिम्मत बटोर कर फोन उठाया। उधर से माँ की आवाज़ आई।

माँ- “बेटा आ गई दफ़्तर से?”

मैं – “अभी थोड़ी देर पहले ही दाखिल हुई कमरे में। आप सुनाएं?”

माँ – “अच्छा सुन, आज कुछ लड़कों के रिक्वेस्ट आए है तेरी मॅट्रिमोनियल प्रोफाइल पर। उसको ज़रा देख लेना। और कुछ बायो-डाटा भी भेजे है पापा ने। उसमें तस्वीरे भी है। वो भी देख लेना।”

(अब तो ये सब सुनना मेरे लिए लाज़मी हो गया था। पिछले कई महीनो से, यही रुटीन तो था। दफ़्तर से आकर खाना खा कर, मॅट्रिमोनियल साइट पर अपने सपनो के दागर को ढूँढना। खैर, ये बात अलग है कि मैंने कभी उसके सपने बुने ही नहीं थे।)

(मैं... वो हूँ या शायद थी...! जिसे एक सुई के नोक मात्र भी भरोसा नहीं होता किसी पर। मुझे खुद की नज़रों और खुद के एहसास पर भी भरोसा नहीं था या है पर आज ना जाने क्यों अपना गुमनाम सा हमसफ़र ढूढ़ने का भरोसा कर बैठी हूँ। वो भी इस चका-चौंध सोशियल मीडीया की दुनिया में।)

मैं- “ठीक है माँ! मैं खाना खाकर आपको बताती हूँ।“

(और फिर फोन रख दिया)

जल्दी-जल्दी खाना खाया और बैठ गई फिर से उसी पुरानी तलाश में। मैं नहीं विश्वास करती, समाज के इस रीति-रिवाज़ पर। मुझे शादी का तात्पर्य ही नहीं समझ आया आजतक। माँ- पापा तो कहते है, शादी नहीं करेगी तो दुनिया वाले क्या बोलेंगे? बस यही पर रुक जाते है, ये नहीं बताते की क्या बोलेंगे दुनिया वाले और क्यों बोलेंगे?

शायद... जैसे हम बचपन से पढ़ाई करते है और डिग्री लेते है वैसे ही शादी भी एक डिग्री है जिसका आपकी ज़िंदगी में शामिल होना ज़रूरी होता हो। ये सारी तर्क-वितर्क सोच कर ही मैंने शादी करने के लिए हामी भरी थी। घर वाले बड़े शुक्र गुज़ार थे मेंरे इस फ़ैसले से... उन्होने भी सोचा होगा, एक मसला तो सुलझ गया।

फिर आई बात अरेंज्ड मॅरेज की... मेंरी माने तो अरेंज्ड मॅरेज ज़िंदगी का ऐसा दाव है जिसके सामने आपकी सारी चाले नाकामयाब होनी है। ये दो शख्स के बीच में ऐसी खामोशी का रिश्ता होता है जिसे अग्नि को साक्षी मान कर जोड़ दिया जाता है और सैकड़ों रिश्तेदार इस खामोश से गुमनाम रिश्ते के गवाह बन जाते है। गुमनाम तो ये सिर्फ़ उन दो शख्स के लिए होता है, बाकी सबके लिए तो यह एक पवित्र रिश्ता पति-पत्नी का होता है।

पर फिर भी, अपने इस रूढ़िवादी सोच को दरकिनार करके मैं कुछ प्रोफाइल्स देखने लगी। कुछ एक्सेपट किए तो कुछ रिजेक्ट। ऐसे 2 से 3 शख्स की प्रोफाइल देखने के बाद मैं थक गई।

रोज़ तो यही होता था मेरे साथ। पहले खुद के मन को मार कर और बहुत सारे बे-बुनियाद अरमानो को जगा कर, कंप्यूटर के सामने बैठो और फिर धीरे-धीरे बीता हुआ कल का ख़ौफ़ और आने वाले कल की ना-उमीदी, मुझे अंदर ही अंदर दबोच लेता था। मैं फिर से उस निराशा नामक दल-दल में खुद को फसी पाती थी।

आज भी वही हुआ। मैंने कंप्यूटर बंद किया और अपने उन ख्यालों से युद्ध शुरू कर दिया। ऐसा युद्ध जिसका ना तो आदि पता था मुझे, और ना ही अंत। मैं विचारों के कुरुक्षेत्र में पहुँची ही थी कि तभी फोन पर एक मेंसेज पोप-उप हुआ। माँ का मेंसेज था।

‘बेटा शादी एक दिन की बात नहीं होती। ये सौदा ज़िंदगी भर का होता है। और हर इंसान को सिर्फ़ एक ही मौका मिलता है ये सौदा करने का।

मेंसेज पढ़

कर एक हल्की सी मुस्कुराहट आ गई चेहरे पर। वो

खुश की नहीं थी। वो तो व्यंगात्मक हंसी थी खुद पर! सोचा ये अच्छा है… अभी पुरानी

युद्ध ख़त्म नहीं हुआ कि माँ ने एक नये युद्ध का पैगाम भेज दिया। आख़िर वो बोलना क्या चाहती है?

जो स्पष्ट है वो सब तो मुझे भी पता है। शायद इसीलिए तो मैं ये सौदा करना ही नहीं

चाहती। मैं नहीं चाहती कि खुद को आज एक ऐसा छोटा सा घाव दूँ जो कल को मेंरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा नासूर बन जाए।

अभी मेंरा दिल, इन सारे ख्यालों से छल्ली-छल्ली हो ही रहा था कि तभी एक और मेंसेज पोप-उप हुआ। मैंने देखा ये भी माँ का ही था।

‘पापा को रिप्लाइ आज रात तक ज़रूर कर देना।’

ये मेंसेज पढ़ते ही मानो मेंरे रगों में खून का दबाव बढ़ गया हो। मैं गुस्सा हो रही थी और शायद दुखी भी। खुद के हालात पर दया आ गई मुझे। नहीं समझ रहा था की क्या करू, क्या बोलू माँ को और क्यों बोलू। उनसे बोलना तो बहुत कुछ चाहती थी पर खुद को रोक लिया।

मेंरे अंदर कुरुक्षेत्र की ज़मीन प्यासी थी, विचारों के युद्ध की। शायद इस बार कोई गीता का उपदेश नहीं होने वाला था युद्ध से पहले शुरू हो गया गिले-शिकवे का ना रुकने वाला सिलसिला।

पूछना चाहती थी माँ से - माँ! अगर बायो-डाटा और तस्वीर किसी इंसान के चरित्र की गेरेंटी देती तो आज किसी शक्स की आँखे नम ना होती अपनी शादी-शुदा ज़िंदगी की बाते करके। शायद! कभी कोई शादी टूट ती ही नहीं । अगर वो इस बात की गवाही देती की उस इंसान का आज, अभी और आने वाला कल उन कुछ पंक्तियों तक ही सीमित है, तो शायद आज कोई मासूम रात के अंधेरे में अपने अकेलेपन के किस्से तारो से नहीं बाँटता। और फिर ये चन्द पंक्तियाँ, किसी के ज़िंदगी के कितने पन्ने ही उजागर कर पाती है। ये तो वो चन्द पंक्ति होती है, जो ना जाने कितने सच और झूठ पर परदा डालने के लिए, खास तौर पर कीमती वक़्त ज़ाया करके इज़ात किया जाता है। ये ऑनलाइन इंटेरेस्ट देख के, एक्सेपट करके भला मैं कैसे जान पाउंगी सामने वाले शख्स को। आप कहते हो ना! देख कर बात करके ही राज़ी होना। माँ कुछ चन्द लम्हे किसी से गुफ़्तुगू करके ये डिसाइड करना की पूरी ज़िंदगी उसके साथ बितानी है, ये बात तो कभी मेंरे हलक के नीचे ही नहीं गई। क्या इतना आसान होता है किसी अजनबी को परखना? कुछ तस्वीरे, कुछ बाते उसके और उसके घर वालों के बारे में, और कुछ फॉरमॅलिटी वाले 'हाई-हेलो' फोन पर या फिर चाइ-कॉफी के डेट पर? उस डेट पर जिसमें दोनो के दिमाग़ में घर वालों के हज़ारों सवाल मंडरा रहे हो। सामने वाले इंसान को जान ने से ज़्यादा, दिमाग़ में ये चल रहा हो की वापस जाकर घर वालों को क्या जवाब देंगे।

“बस इतनी सी चीज़ें? क्या सच में इतना आसान होता है?"

"माँ, जानते हो आप, अब इतना आसान नहीं होता लोगो को पहचान ना! अब दुनिया बदल गया है। आपको शायद नहीं पता, पर मैं जानती हूँ ग़लत शक्स पर भरोसा करने का दर्द। क्यूंकी मेंरी ज़िंदगी ने मुझे इसका तजुर्बा भी दिया है। था एक वक़्त ऐसा, जब मैं ऐसे ही किसी अजनबी पर भरोसा कर बैठी थी। उसके साथ बिताए चन्द ऐसे लम्हे थे जिसको जी कर मुझे खुद से ही ईर्ष्या होने लगी थी। शक होने लगा था ज़िंदगी पर। कुछ वर्षों का वो रिश्ता जो मेंरे ना जाने कितने मतो को बदल दिया था। उस वक़्त मुझे लगा था, की मैं ये जिंदगी का खेल जीत गई हूँ। नादान थी ना मैं! जीत की जश्न भी मानने लगी थी। और अंत में हुआ वही, जिसका मुझे पहले से ही डर था। मेंरे नये पुराने सारे मतो को नफ़रत में बदलता हुआ वो मेंरा बीता हुआ कल बन गया।"

इस घटना ने मुझे मेंरे एहसास पर सवाल करने को मजबूर कर दिया। इसके बाद से मैंने खुद को नफ़रत के साफे में बाँध रखा है, अब जी नहीं करता इसे उतारने का। आज सोचती हूँ जब मैं वर्षों में किसी को नहीं पहचान पाई तो भला ये मॅट्रिमोनियल की साइट पर लिखे चन्द लाइन्स से कैसे पहचान पा-उंगी। कभी-कभी तो किसी को समझने के लिए पूरी एक ज़िंदगी भी कम पर जाती है, फिर मैं कैसे फोन पर किए चन्द बातो से उसे समझ पाउंगी। नहीं समझ आ रहा मुझे कुछ माँ।

ये सारे ख्यालों के द्वंद में, मैं ये तो भूल ही गई की मैं फिर से वही पुराना नफ़रत का साफा ओढ़ रही, जिसे चन्द हफ्ते पहले ही तो उतारा था। अभी चन्द दिनों पहले ही तो, मैंने अपने रंग्रेज़ के लिए थोड़े से सपने बुने थे। हां! मेंरे दिल ने कुछ अल्फ़ाज़ गुनगुनाए थे, जो इस नफ़रत से परे थे। शायद दिल का एक कोना बच गया था, जो इस नफ़रत की आग के चपरट में नहीं आया था। उसने ही गुहार लगाई थी, वो ही पलके बिछाई बैठी थी। इस ना-उम्मीदि में भी उसने उम्मीद की किरण ढूँढ ली थी। और अब उसकी दलीले शुरू हो गई... कुछ इस तरह से तुम्हारा कल तो दरवाज़े पर दस्तक दे रहा, और तुम हो जो इस साफे को लपरटे उसको करीब आने ही नहीं दे रही। क्या एक बार कोई जेवड़ खराब निकल जाए तो जौहरी जेवड़ बनाना छोड़ देता है? ये नफ़रत तुम्हारी फिद्रत नहीं।"

मैं खुद ही बँट गई थी, दो मत में। नहीं पता कौन सही कौन ग़लत। पर इतना एहसास हो रहा था की, इस नफ़रत के साफे में अब मेंरा दम भी घुटने लगा था। मैंने खुद को बोला बस अब और नहीं और कोई द्वंद नहीं । अब बंद करना होगा इस युद्ध को। निर्णय ले लिया था मेंरे दिल ने। मैंने खुद से वादा किया, और उस से भी वादा किया।

ओ मेरे रंग्रेज़! वादा इस बात का कि जब भी हमारा सामना होगा उतार फेकुंगी इस नफ़रत के साफा को, वादा इस बात का कि मेरा बीते कल को कभी आज का हिस्सा नहीं बनने दूँगी, वादा इस बात का कि इस बार ना लूँगी तुमसे कोई वादे, वादा इस बात का कि तुम्हे आज़ादी रहेगी हर ज़िद्द की चाहे वो बे-तुकी ही क्यूँ ना हो और वादा इस बात का कि अगर पिछली बार की तरह तुमने अपना रास्ता बदल लिया तब भी मैं ये नफ़रत का साफा नहीं पहनूँगी तब भी मैं प्यार करूँगी।

मैं जान गई हूँ, प्यार करना तो मेंरी फिद्रत है, फ़र्क बस ये रहेगा की कल तुम थे और आज कोई नया होगा। मैं जान चुकीं हूँ कि हमें किसी इंसान से प्यार नहीं होता बल्कि प्यार के एहसास से प्यार होता है।

फिर किसी के आने-जाने से मैं क्यों इस एहसास में घाटा या इज़ाफ़ा करूँ जब तक चलेगी साँस तब तक करूँगी प्यार। आज के युद्ध को विराम लग गया था। इस निर्णय को दिल में संजोए, मैं इस उमीद में सोने गई कि कल फिर से इस तलाश को एक नये अंज़ाम तक पहुँचाया जाएगा। दिल में ये आस जगाए जो रखना था। वादा जो किया था माँ से उनकी मनपसंद की शादी करने का!


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama